भारतीय इतिहास
वैकोम सत्याग्रह
- 06 Apr 2023
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:वैकोम सत्याग्रह के नेतागण, सत्याग्रह के कारक मेन्स के लिये:महत्त्व, वैकोम सत्याग्रह में महिलाओं की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 में वैकोम सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में केरल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने संयुक्त रूप से इसके शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया।
वैकोम सत्याग्रह:
- पृष्ठभूमि:
- त्रावणकोर में कुछ सबसे कठोर, परिष्कृत और निर्दयी सामाजिक मानक एवं रीति-रिवाज़ थे जो एक सामंती, सैन्यवादी और क्रूर सरकार की रियासत थी।
- एझावा और पुलाय जैसी निचली जातियों को अपवित्र माना जाता था तथा उन्हें उच्च जातियों से दूर रखने के लिये विभिन्न नियम बनाए गए थे।
- इनमें केवल मंदिर में प्रवेश पर ही नहीं बल्कि मंदिरों के आसपास की सड़कों पर चलने पर भी प्रतिबंध था।
- त्रावणकोर में कुछ सबसे कठोर, परिष्कृत और निर्दयी सामाजिक मानक एवं रीति-रिवाज़ थे जो एक सामंती, सैन्यवादी और क्रूर सरकार की रियासत थी।
- नेतागणों का योगदान:
- वर्ष 1923 में माधवन ने अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति की काकीनाडा बैठक में इस मुद्दे को एक प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद जनवरी 1924 में केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति द्वारा गठित कॉन्ग्रेस अस्पृश्यता समिति ने इसे आगे बढ़ाया।
- माधवन, के.पी. केशव मेनन जो केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति के तत्कालीन सचिव थे और कॉन्ग्रेस नेता एवं शिक्षाविद के. केलप्पन (जिन्हें केरल के गांधी के नाम से भी जाना जाता है) को वैकोम सत्याग्रह आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है।
- सत्याग्रह के अग्रणी कारक:
- ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा समर्थित ईसाई मिशनरियों ने अपनी पहुँच का विस्तार किया था और एक दमनकारी व्यवस्था के चंगुल से बचने के लिये कई निम्न जातियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
- महाराजा अयिल्यम थिरुनाल ने कई प्रगतिशील सुधार किये।
- इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण सभी के लिये मुफ्त प्राथमिक शिक्षा के साथ एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत थी, यहाँ तक कि यह शिक्षा निम्न जातियों के लिये भी उपलब्ध थी।
- सत्याग्रह की शुरुआत:
- 30 मार्च, 1924 को सत्याग्रहियों ने वर्जित सार्वजनिक सड़कों पर जुलूस निकाला। जुलूस को उस जगह से 50 गज की दूरी पर रोक दिया गया था जहाँ सड़कों पर (वैकोम महादेव मंदिर के आसपास) चलने के खिलाफ उत्पीड़ित समुदायों को चेतावनी देने वाला बोर्ड लगाया गया था।
- गोविंद पणिक्कर (नायर), बाहुलेयान (एझवा) और कुंजप्पु (पुलैया) ने खादी वस्त्र एवं खादी की टोपी पहनकर निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन किया।
- पुलिस के रोकने पर तीनों लोग विरोध में सड़क पर बैठ गए जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया।
- इसके बाद प्रतिदिन तीन अलग-अलग समुदायों के तीन स्वयंसेवकों को निषिद्ध सड़कों पर चलने के लिये भेजा गया।
- इस प्रकार एक सप्ताह के भीतर आंदोलन के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- महिलाओं की भूमिका:
- पेरियार की पत्नी नागम्मई और बहन कन्नमल ने लड़ाई में अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
- गांधीजी का आगमन:
- गांधीजी ने मार्च 1925 में वैकोम जाकर विभिन्न जाति समूहों के नेताओं के साथ कई चर्चाएँ कीं तथा महारानी रीजेंट से उसके वर्कला शिविर में मुलाकात की।
- गांधीजी और डब्ल्यू.एच. पिट (त्रावणकोर के पुलिस आयुक्त) के बीच परामर्श के बाद 30 नवंबर, 1925 को वैकोम सत्याग्रह को आधिकारिक तौर पर वापस ले लिया गया।
- सभी कैदियों की रिहाई तथा सड़कों तक पहुँच प्रदान करने के लिये एक समझौता हुआ।
- मंदिर प्रवेश उद्घोषणा:
- वर्ष 1936 में त्रावणकोर के महाराजा द्वारा ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश उद्घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए, जिसने मंदिरों में प्रवेश पर सदियों पुराने प्रतिबंध को हटा दिया।
- महत्त्व:
- देश भर में बढ़ती राष्ट्रवादी भावनाओं और आंदोलनों के बीच इसने सामाजिक सुधार के कार्यों को आगे बढ़ाया।
- यह त्रावणकोर में गांधीवादी अहिंसक विरोध का तरीका अपनाने वाला पहला आंदोलन था।
- सामाजिक दबाव, पुलिस कार्रवाई और यहाँ तक कि वर्ष 1924 में प्राकृतिक आपदा के दौरान भी 600 से अधिक दिनों तक बिना रुके यह आंदोलन जारी रहा।
- वैकोम सत्याग्रह के दौरान जातिगत बंधन टूट गए, जो अभूतपूर्व कार्य था।
निष्कर्ष:
- वर्ष 1917 तक भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने सामाजिक सुधार करने से इनकार कर दिया लेकिन गांधी के उदय और निम्न जाति समुदायों एवं अछूतों की बढ़ती सक्रियता के चलते सामाजिक सुधार जल्द ही कॉन्ग्रेस और गांधी की राजनीति का केंद्रबिंदु बन गया।