अंतर्राष्ट्रीय संबंध
स्पाइडर सिल्क की उपयोगिता
- 21 Aug 2017
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चर्चा में क्यों ?
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हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने मकड़ी के रेशम से बने दिल के ‘मांसपेशीय उत्तक’ (muscles tissue) बनाए हैं। दरअसल, पिछले कई वर्षों से वैज्ञानिक मकड़ी के रेशम यानी स्पाइडर सिल्क पर अनुसन्धान कर रहे हैं।
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उल्लेखनीय है कि यदि एक समान भार के स्टील और स्पाइडर सिल्क की तुलना की जाए तो स्पाइडर सिल्क अधिक मज़बूत माना जाता है।
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स्पाइडर सिल्क के अनुप्रयोगों की व्यापक संभावनाओं के बावजूद हम इस दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं कर पाए हैं क्योंकि इसका प्रसंस्करण करना आसान नहीं है और इसे अन्य पदार्थों के साथ जोड़ना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
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हाल ही में फेम्टोसेकंड लेज़र पल्स (femtosecond laser pulse) का इस्तेमाल कर आईआईएसईआर (IISER) मोहाली के शोधकर्त्ताओं ने इन चुनौतियों का हल ढूँढ लिया है। वे मकड़ी के रेशम को काटने और और फिर उसे जोड़ने में सफल हुए है। उनके इस शोध को ‘नेचर मैटेरियल’ (nature material) में प्रकाशित किया गया है।
क्या है स्पाइडर सिल्क ?
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मकड़ियाँ तरह-तरह के रेशमी तंतुओं के उत्पादन में दक्ष होती है। इन रेशमी तंतुओं का उपयोग ये मकड़ियाँ केवल शिकार फंसाने के लिये ही नहीं करतीं बल्कि अपने बिलों के द्वार को ढकने तथा इनकी भीतरी दीवारों पर नरम स्तर के निर्माण के लिये भी करती हैं।
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मकड़ियाँ हमारे पर्यावरण में कीट-पतंगों की संख्या को नियंत्रित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती ही हैं, साथ ही इनके द्वारा उत्पादित बारीक रेशमी तंतुओं का उपयोग ऑप्टिकल उपकरणों के क्रॉस हेयर्स के निर्माण में भी किया जाता है।
स्पाइडर सिल्क की व्यापक उपयोगिता क्यों ?
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मकड़ियों के कताई उपांगों से तरल रेशम निकलता है जिसके प्रोटीन्स के अणु इस प्रकार व्यवस्थित हो जाते हैं कि तरल रेशम ठोस रेशमी तंतु में परिवर्तित हो जाता है।
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समान मोटाई वाले स्टील के तंतु की तुलना में यह लगभग पाँच गुना अधिक मज़बूत होता है तथा लचीला इतना कि तनाव बढ़ने पर इसकी लंबाई 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ सकती है फिर भी यह नहीं टूटता। ये तंतु जल-प्रतिरोधी भी होते हैं एवं -40 डिग्री के कम तापमान पर भी नहीं टूटते हैं।
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इस तंतु में स्फटिकीय (crystalline) तथा लचीलेपन (elasticity) का गुण एक साथ होता है। ये दोनों गुण इसके एक अणु में भी पाए जाते हैं। स्फटिकीय गुण इसे मज़बूती देता है तो लचीलापन तनाव बढ़ने पर इसे टूटने से बचाता है।
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जब इस पर भार देने के कारण तनाव बढ़ता है तो इसकी संरचना में प्रयुक्त प्रोटीन्स के अणुओं के बीच के बंध (bonds) स्वत: खुलते जाते हैं तथा किसी स्प्रिंग की तरह इसकी लंबाई बढ़ती जाती है। भार हटा लेने पर ये बंध स्वत: जुड़ने लगते हैं एवं तंतु पुन: अपने पुराने आकार में वापस आ जाता है।
निष्कर्ष
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इन तंतुओं के इन्हीं अनूठे गुणों के कारण वैज्ञानिक इनमें उपयोगिता की अनगिनत संभावनाएँ देख रहे हैं। सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान से लेकर रक्षा विज्ञान, यहाँ तक कि प्रक्षेपास्त्रों तक में इस तंतु का उपयोग किया जा सकता है।
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लेकिन यह तभी संभव है जब हम स्पाइडर सिल्क का भलीभाँति प्रसंस्करण कर पायेंगे और ऐसे में आईआईएसईआर (IISER) मोहाली के शोधकर्त्ताओं की यह उपलब्धि महत्त्वपूर्ण है।