प्लास्टिक का प्रयोग | 20 Jul 2017

संदर्भ
वर्तमान में, प्लास्टिक का उपयोग सर्वव्यापी हो गया है। जीव-जंतुओं ने इसे अनजाने में अपने आहार का हिस्सा भी बना लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक जैसे-जैसे उपभोक्तावाद बढ़ेगा, इसकी खपत भी वैसे ही बढ़ती जाएगी। अतः हमें प्लास्टिक के उपयोग पर तत्काल एवं बड़े पैमाने पर रोक लगाने की ज़रूरत है। 

प्रमुख बिंदु 

  • प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
  • वर्तमान में, प्लास्टिक का उपयोग इतना सर्वव्यापी हो गया है कि पक्षी, जानवर और मछलियों ने अनजाने में इसे अपने आहार का हिस्सा बना लिया है। 
  • फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)  2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में प्लास्टिक उपयोग की कुल प्राकृतिक पूंजी लागत 75 अरब डॉलर है। यह बढ़ते उपभोक्तावाद और प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के साथ और बढ़ेगा। 
  • ‘द गार्जियन’ में हाल में छपे एक लेख के मुताबिक, दुनिया भर में प्रत्येक मिनट लाखों प्लास्टिक की बोतलें  खरीदी जाती हैं।
  • हालाँकि, प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। इनका आकार 5 मिमी से अधिक नहीं होता है। इनका इस्तेमाल सौन्दर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। 
  • भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है। 
  • यू.एस., कनाडा और नीदरलैंड जैसे देशों ने निजी देखभाल उत्पादों में माइक्रोबिड्स के उपयोग को रोकने के लिये नियम बना रखें हैं। भारत जितनी जल्दी ऐसे नियमों को अपनाएगा, उतना ही बेहतर होगा।
  • हमें अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक के उपयोग को कम करना चाहिये। हमें एक समाज के रूप में एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की ज़रूरत है, जो प्लास्टिक के उपयोग को कम करता हो और उसे बाहरी परिवेश में जाने से रोकता हो।