पुरातत्त्व में ड्रोन का उपयोग | 23 Jun 2017
संदर्भ
- इस लेख में ऐतिहासिक इमारतों के बेहतर एवं रंगीन चित्र प्राप्त करने के लिये ड्रोन तकनीक के उपयोग के बारे में बताया गया है। यह कार्य पहले की अपेक्षा अब कम समय एवं कम लागत में किया जा सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर हम देश के अनेक महत्त्वपूर्ण स्थलों के सटीक चित्र प्राप्त कर सकेंगे तथा उनकी देखभाल पहले से बेहतर कर सकेंगे।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इन दिनों मानव रहित हवाई यानों (यूएवी) को ऐतिहासिक आमेर किले के ऊपर चक्कर लगाते देखा जा सकता है। आमेर का किला जयपुर से 11 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। ऐसी ही गतिविधियाँ अरावली पहाड़ियों की पश्चिमी सीमा पर स्थित कुम्भलगढ़ के किले पर दिन में 11 बजे से 1 बजे के बीच देखी जा सकती है।
- ये ड्रोन हैं जो इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों के चारो ओर चक्कर लगाते हैं एवं उन सभी सूचनाओं को एकत्र करते हैं जिन्हें मनुष्य की आँखें देख नहीं सकती हैं।
- ड्रोन द्वारा एकत्र की गई सूचनाएँ राजस्थान सरकार को ऐतिहासिक स्मारकों की पूरी 3-डी प्रतिकृति बनाने में सहायता करेंगी। कंप्यूटर पर यह 3-डी मॉडल दोनों पहाड़ी किलों के रख-रखाव, निर्माण और नियोजन के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। ध्यातव्य हो कि ये दोनों ऐतिहासिक स्मारकें यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल हैं।
- इन ड्रोन यानों को क्विडिच इनोवेशन लैब्स द्वारा तैनात किया जा रहा है। यह तैनाती राजस्थान सरकार द्वारा स्मारकों को डिजिटाइज़ करने और उनके संरक्षण और परिरक्षण को कम करने के प्रयासों के तहत की जा रही है।
- ज्ञात हो कि पारंपरिक उपकरण सतहों पर लेजर किरणों को प्रसारित करते हैं तथा वहाँ से परावर्तित प्रकाश को रिकॉर्ड कर उस स्थल के 3-डी प्रतिविम्ब का पुनर्निर्माण करते हैं।
- ड्रोन तकनीक द्वारा किसी ऊँची दीवार के ऊपर या छत की छवि एवं वीडियो को अधिक सटीक रूप से देखा जा सकता है। हम किसी भवन के शीर्ष का 3-डी दृश्य प्राप्त कर सकते हैं, जो कि यह एक महत्त्वपूर्ण समस्या है और इसे ड्रोन से ही हल किया जा सकता है।
- इसी तरह की एक परियोजना के लिये दमन और दीव प्रशासन ने भी निविदाएं आमंत्रित की है, जिसमें दीव के किले का सर्वेक्षण करने के लिए ड्रोन और अन्य प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा। दीव के किले को पुर्तगालियों ने 1535 में बनवाया था।
- ड्रोन बनाने वाले आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक और सीईओ अंकित मेहता के अनुसार पारंपरिक लेज़र स्कैनिंग में रिजोल्यूसन की सीमाएं हैं और वह रंगीन नहीं होती है। जबकि ड्रोन इस कमी को पूरा करता है। इसके अलावा, ड्रोन सर्वेक्षण और संरक्षण कार्य के लिये अन्य आँकड़ों का चित्र भी लेता है।
प्रभावी लागत
- इन कार्यों के लिये ड्रोन के उपयोग का दूसरा बड़ा लाभ लागत एवं समय की बचत है। आमतौर पर, एक हेक्टेयर क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये ड्रोन सेवा प्रदाताओं द्वारा ₹ 1,500-2,000 की मांग की जाती है। जबकि लेज़र तकनीक के उपयोग से उतने ही कार्य की लागत कम-से-कम तीन से चार गुना अधिक होगी।
- इसके अलावा, जिस कार्य के लिये पहले 6-8 महीने लगते थे, उसी कार्य को ड्रोन के माध्यम से एक सप्ताह से कम समय में किया जा सकता है।