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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्यूबा: एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित

  • 15 Jan 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के विदेश विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों हेतु बार-बार सहायता प्रदान करने और आतंकवादियों को सुरक्षित बंदरगाह उपलब्ध कराने पर क्यूबा को एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित किया है।

Cuba

प्रमुख बिंदु:

देशों पर प्रतिबंधों के लिये प्रावधान: 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश विभाग ने किसी भी देश को प्रतिबंधित करने के लिये निम्नलिखित चार श्रेणियाँ निर्धारित की हैं:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता पर प्रतिबंध।
    • रक्षा निर्यात और बिक्री पर प्रतिबंध।
    • दोहरे उपयोग की वस्तुओं के निर्यात पर कुछ नियंत्रण।
    • ऐसे देशों और व्यक्तियों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो नामित देशों के साथ व्यापार में संलग्न हैं।
  • वर्तमान में इस सूची में चार देश शामिल हैं: सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया और क्यूबा
    • क्यूबा को वर्ष 2015 में इस सूची से हटा दिया गया था परंतु उसे फिर से इस सूची में शामिल कर लिया गया है।

क्यूबा आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित: USA ने क्यूबा पर निम्नलिखित आरोप लगाए हैं- 

  • वेनेजुएला की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप।
  • क्यूबा के लोगों का दमन।
  • अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का समर्थन करना।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप।

यूएसए-क्यूबा संबंध:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा के बीच’ 60 वर्षों से अधिक समय तक तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित सरकार ने वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो की सरकार का तख्तापलट कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था।
  • पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और राउल कास्त्रो ने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिये कई कदम उठाए, जिनमें राजनयिक संबंधों को बहाल करना, राजनयिक यात्राएँ और व्यापार का विस्तार करना शामिल है।
  • ट्रंप प्रशासन ने पर्यटन और अन्य वाणिज्यिक क्षेत्रों पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करके पिछले समझौतों की शर्तों को उलट दिया है।

हवाना सिंड्रोम:

  • वर्ष 2016 के उत्तरार्द्ध में हवाना (क्यूबा की राजधानी) में तैनात USA के राजनयिकों और अन्य कर्मचारियों ने अजीब सी आवाज़ें सुनने तथा शारीरिक संवेदनाओं के बाद इस बीमारी को महसूस किया।
  • इस बीमारी के लक्षणों में मितली, तीव्र सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, नींद की समस्या आदि शामिल हैं, जिन्हें हवाना सिंड्रोम (Havana Syndrome) के रूप में जाना जाता है। अमेरिका ने क्यूबा पर इस बीमारी को फैलाने का आरोप लगाया था लेकिन क्यूबा ने इस बीमारी के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया।

तनावपूर्ण संबंधों के ऐतिहासिक कारण:

  • क्यूबा की क्रांति:  संयुक्त राज्य अमेरिका-क्यूबा के अशांतप्रिय संबंधों की जड़ें शीत युद्ध से संबंधित हैं। वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो और क्रांतिकारियों के एक समूह ने हवाना (क्यूबा की राजधानी) की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने संयुक्त राज्य समर्थित फुलगेन्सियो बतिस्ता की सरकार को उखाड़ फेंका।
  • क्यूबा मिसाइल संकट: 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1961 में क्यूबा के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिये और  फिदेल कास्त्रो शासन को उखाड़ फेंकने के लिये गुप्त अभियान शुरू किया।
    • क्यूबा मिसाइल संकट उस समय शुरू हुआ जब अमेरिकी एजेंसियों द्वारा क्यूबा की सरकार का तख्तापलट करने के प्रयास (जिसे 'बे ऑफ पिग्स आक्रमण' के नाम से भी जाना जाता है) के बाद क्यूबा ने सोवियत संघ को गुप्त रूप से अपने द्वीप पर परमाणु मिसाइलों को स्थापित करने की अनुमति दी।
    • अंत में निकिता ख्रुश्चेव के नेतृत्त्व में सोवियत संघ ने अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी द्वारा क्यूबा पर आक्रमण न करने और तुर्की से अमेरिकी परमाणु मिसाइलों को हटाने की प्रतिज्ञा के बदले क्यूबा से रूस की मिसाइलों को वापस लाने पर सहमति व्यक्त की।. 
  • सोवियत संघ से व्यापार: क्यूबा की क्रांति के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिदेल कास्त्रो की सरकार को मान्यता दी परंतु नए प्रशासन द्वारा सोवियत संघ के साथ व्यापार में वृद्धि, अमेरिकी स्वामित्व वाली संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण और संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात पर करों में वृद्धि किये जाने के कारण अमेरिका ने क्यूबा पर आर्थिक दंड लगाना शुरू कर दिया।
  • कैनेडी सरकार द्वारा लागू प्रतिबंध (1962): क्यूबा से चीनी (Sugar) आयात में कटौती करने के बाद अमेरिका ने क्यूबा के लिये अपने सभी निर्यातों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा पूर्ण आर्थिक प्रतिबंध में बदल दिया गया, इसमें कठोर यात्रा प्रतिबंध भी शामिल थे। 

भारत का रुख:

  • आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त करने का समर्थन: हाल ही में जब अमेरिका ने वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में क्यूबा की सदस्यता का विरोध किया, तो संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में उन सभी देशों के साथ भारत भी खड़ा हुआ जिन्होंने क्यूबा के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका की अन्यायपूर्ण और लंबे समय से चली आ रही आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त करने की मांग की थी। 
  • अमेरिकी नाकेबंदी की आलोचना: संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा के खिलाफ इस घेराबंदी का निरंतर बने रहना वैश्विक जनमत के खिलाफ है और यह बहुपक्षवाद तथा संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा का रुख: 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने क्यूबा के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाई गई आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय नाकेबंदी को समाप्त करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए इस संदर्भ में वर्ष 1992 से प्रतिवर्ष एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।  

आगे की राह

  • द्विपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करना: वाशिंगटन द्वारा क्यूबा के खिलाफ नाकाबंदी को फिर से शुरू करना किसी भी देश के खिलाफ लागू एकतरफा प्रतिबंधों की सबसे अन्यायपूर्ण और लंबी प्रणाली प्रतीत होती है। द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने की तत्काल आवश्यकता है।
  • लोकतंत्र की आत्मा का सम्मान करना: क्यूबाई आप्रवासियों (Immigrant) और लोगों की एक बड़ी आबादी की मूल जड़ें संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं, अतः दोनों देश लोकतंत्र और अंतर्राष्ट्रवाद की भावना के लिये सुलह की दिशा में प्रयास करें।
  • भारत के लिये: भारत के संबंध दोनों देशों के साथ अच्छे हैं। अगर अमेरिका और क्यूबा के बीच तनाव बढ़ता है तो भारत के लिये रिश्तों को तर्कसंगत रूप से संतुलित बनाए रखना ज़रूरी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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