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यूएस' रो बनाम वेड केस 1973

  • 06 May 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये: यूएस' रो बनाम वेड केस 1973, भारत में गर्भपात संबंधी कानून

मेन्स के लिये: गर्भपात, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दों, लिंग के संबंध में बहस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजनीतिक पत्रकारिता कंपनी पोलिटिको द्वारा दी गई एक जानकारी से पता चला है कि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1973 के ऐतिहासिक फैसले रो बनाम वेड, 1973 को पलटने का निर्णय लिया है, जिसने गर्भपात को संवैधानिक अधिकार बना दिया था।

रो बनाम वेड फैसला क्या था?

  • वर्ष 1973 में रो बनाम वेड के ऐतिहासिक फैसले में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने गर्भपात के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बना दिया, जो दुनिया भर में गर्भपात कानूनों के लिये एक बेंचमार्क स्थापित हो गया।
  • इस मामले में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने कई राज्यों में गर्भपात को अवैध बनाने वाले कानूनों को रद्द कर दिया और फैसला सुनाया कि गर्भपात को भ्रूण की व्यवहार्यता के बिंदु तक अनुमति दी जाएगी, यानी वह समय जिसके बाद भ्रूण गर्भ के बाहर जीवित रह सकता है।
    • रो के फैसले के समय भ्रूण की व्यवहार्यता लगभग 28 सप्ताह (7 महीने) थी, अब विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि दवाइयों की प्रगति ने इस सीमा को 23 या 24 सप्ताह (6 महीने या थोड़ा कम) तक ला दिया है।
  • भ्रूण की व्यवहार्यता को अक्सर उस बिंदु के रूप में देखा जाता है जिस पर महिला के अधिकारों को अजन्मे भ्रूण के अधिकारों से अलग किया जा सकता है।
  • दुनिया भर में गर्भपात कानून इस समय-सीमा पर भरोसा करते हैं लेकिन गर्भपात का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह एक मनमानी समय-सीमा है जिसे कानूनों के माध्यम से अदालत ने अपनाया है।

गर्भपात संबंधी बहस क्या है?

  • गर्भपात पर बहस प्रेरित गर्भपात की नैतिक, कानूनी और धार्मिक स्थिति को लेकर चल रही है।
  • कई पश्चिमी देशों में बहस में शामिल पक्ष स्व-वर्णित ‘प्रो-चॉइस’ और ‘प्रो-लाइफ’ एक आंदोलन है।
    • प्रो-चॉइस गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये महिला की पसंद पर ज़ोर देती है।
    • इसके विपरीत प्रो-लाइफ स्थिति माँ और भ्रूण दोनों की मानवता पर ज़ोर देती है, इसमें यह तर्क दिया जाता है कि भ्रूण कानूनी संरक्षण के योग्य मानवीय व्यक्ति है।
  • जनता की राय को प्रभावित करने तथा अपनी स्थिति के संदर्भ मे कानूनी समर्थन प्राप्त करने के लिये प्रत्येक आंदोलन के अलग-अलग परिणाम हैं।
  • बहुत से लोग मानते हैं कि गर्भपात अनिवार्य रूप से मानवीय व्यक्तित्व की शुरुआत, भ्रूण के अधिकारों और शारीरिक अखंडता से संबंधित एक नैतिक मुद्दा है।

वर्तमान मामला क्या है?

  • वर्तमान मामला गर्भपात पर मिसिसिपी कानून को चुनौती देने से संबंधित है।
  • वर्ष 2018 में मिसिसिपी राज्य ने 1973 के फैसले को सीधी चुनौती देते हुए 15 सप्ताह के बाद अधिकांश गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • वर्ष 2019 में मिसिसिपी में "हार्टबीट" नामक गर्भपात कानून पारित किया गया था, जो कि एक और भी अधिक प्रतिबंधात्मक उपाय था, इसने भ्रूण की हृदय गतिविधि का पता चलने के बाद (लगभग छह सप्ताह) अधिकांश गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • "हार्टबीट" में कहा गया है कि भ्रूण के ह्रदय की धड़कन का पता चलने के बाद गर्भपात करने वाले चिकित्सकों के मेडिकल लाइसेंस रद्द हो सकते हैं।
    • कानून में बलात्कार या अनाचार के कारण गर्भधारण के लिये कोई अपवाद मौजूद नहीं है।
  • इस कानून को भी एक ज़िला जज ने खारिज़ कर दिया था और फरवरी 2020 में न्यू ऑरलियन्स में 5वीं ‘सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स’ ने इस फैसले पर सहमति जताई थी।

निर्णय का प्रभाव:

  • चूँकि अमेरिका में गर्भपात के अधिकार की रक्षा करने वाला कोई संघीय कानून नहीं है, इसलिये ‘रो’ को पलटने से गर्भपात कानून पूरी तरह से राज्यों पर निर्भर हो जाएगा।
  • संक्षेप में ‘रो बनाम वेड’ की जाँच और संतुलन की अनदेखी तथा व्यक्तिगत एजेंसी को अक्षम करने से मामला अब महिलाओं के अधिकारों के प्रतिमान के भीतर प्रतिस्थापित नहीं किया जाएगा।
  • यह मानव अधिकारों के बड़े ढाँचे को भी प्रभावित कर सकता है, यह गरीबों एवं हाशिये पर स्थित लोगों को और दूर कर देगा।

भारत में गर्भपात संबंधी कानून:

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात एक अपराध है।
    • हालाँकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (MTP) और इसका संशोधन केवल अपराधीकरण को अपवाद की स्थिति प्रदान करता है।
  • MTP अधिनियम, 1971 गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है।
  • लेकिन केवल विशेष श्रेणी की गर्भवती महिलाओं जैसे कि बलात्कार या अनाचार से प्रभावित के लिये (वह भी दो पंजीकृत डॉक्टरों की मंज़ूरी के साथ) वर्ष 2021 में एक संशोधन के माध्यम से गर्भपात की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया था।
  • भ्रूण की विकलांगता के मामले में गर्भपात की कोई समय-सीमा नहीं है, लेकिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा स्थापित विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक मेडिकल बोर्ड द्वारा इसकी अनुमति दी जाती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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