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भारतीय अर्थव्यवस्था

US फेडरल रिज़र्व दर में कटौती

  • 03 Aug 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य फेडरल रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद पहली बार अपनी ब्याज दरों में एक चौथाई कटौती की घोषणा की है। इस कटौती के संबंध में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि US फेडरल बैंक की हॉकिश (Hawkish) (ब्याज दर में वृद्धि की स्थिति) मौद्रिक नीति के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था विकास की दिशा में आगे बढ़ रही थी।

प्रमुख बिंदु

  • फेडरल बैंक ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त की साथ ही अमेरिकी मुद्रास्फीति को कम करने और लागत को कम करने जैसे प्रमुख कारणों की वजह से ब्याज दरों में कटौती का निर्णय लिया है। ]
  • बैंक ने यह भी रेखांकित किया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस वर्ष के पहले छह महीनों में बेहतर गति से आगे बढ़ी है।
  • बैंक के अनुसार, ब्याज दर में कटौती वैश्विक विकास के निहितार्थ और मुद्रास्फीति को कम करने के मद्देनज़र किया गया है।
  • केंद्रीय बैंक ने यह भी इंगित किया कि इस प्रकार की नीतियों से अमेरिकी आर्थिक विस्तार को बरकरार रखा जाएगा।

क्या यह कटौती, नीति में बदलाव का संकेत है?

  • केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव के कारण हुई। राष्ट्रपति अर्थव्यवस्था की विकास गति को बढ़ाने के लिये दरों में कटौती की माँग कर रहे थे। इसके विपरीत केंद्रीय बैक आर्थिक आँकड़ों का पालन करते हुए राष्ट्रपति के दबावों का विरोध कर रहा था।
  • फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (The Federal Open Market Committee-FOMC) बैंक के अंतर्गत एक 10 सदस्यीय पैनल है जो नीतिगत दरों को निर्धारित करता है। ब्याज दरों के निर्धारण के दौरान केवल 2 सदस्यों ने कटौती का विरोध किया।

भारत जैसी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव

  • सैद्धांतिक रूप से, अमेरिका में दर में कटौती का प्रभाव विशेष रूप से ऋण बाज़ार के नज़रिये से उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के लिये सकारात्मक होना चाहिये। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उच्च मुद्रास्फीति होती है इसलिये ब्याज दर अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों की तुलना में अधिक होती है।
  • अमेरिका में ब्याज दर कम होने के कारण निवेशक वहाँ से उधार लेकर उस पैसे को उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत में निवेश करेंगे ताकि उन्हें अधिक ब्याज प्राप्त हो सके।
  • ब्याज दरों में कटौती से अमेरिका में विकास को गति मिलेगी, साथ ही वैश्विक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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