अमेरिका ने भारत को निगरानी सूची से जोड़ा | 17 Apr 2018

चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने पिछले हफ्ते 31 मार्च को वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर बताया कि शेष दुनिया के साथ भारत का व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो गया। प्रतिक्रिया स्वरूप अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत को उन देशों की निगरानी सूची (monitoring list) में जोड़ा है, जिनकी विदेशी मुद्रा और आर्थिक नीतियाँ पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा बारीकी से नज़र रखी जाएगी। 

विदेशी विनिमय दर (foreign exchange rate)

विदेशी मुद्रा की प्रति इकाई की घरेलू मुद्रा में कीमत, विदेशी विनिमय दर कही जाती है। विनिमय दर दो देशों की मुद्राओं के विनिमय के अनुपात को व्यक्त करती है। कुछ अर्थशास्त्री इसे घरेलू करेंसी का बाहरी मूल्य भी कहते हैं।

क्राउथर के शब्दों में, “विनिमय दर एक देश की मुद्रा की इकाइयों को मापती है जिसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में दूसरे देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले प्राप्त किया जाता है”।

प्रमुख बिंदु 

  • ध्यातव्य है कि भारत के अलावा निगरानी सूची (monitoring list) में चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और स्विटज़रलैंड शामिल हैं।
  • अमरीकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट एक मुद्रा मैनिपुलेटर निर्धारित करने के लिये तीन मानदंडों का इस्तेमाल करता है: 
  • पहला अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर हो।
  • दूसरा वर्तमान जीडीपी का 3% चालू खाता अधिशेष हो और तीसरा एक वर्ष में देश के जीडीपी का 2% विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद हो।
  • अमरीकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट के अनुसार भारत ने इन तीन में से दो मापदंडों को पूरा किया है अतः इसे मुद्रा मैनिपुलेटर (currency manipulator) की श्रेणी में रखा गया है।
  • अमेरिका में भारत का निर्यात उन क्षेत्रों में केंद्रित है जो भारत की वैश्विक विशेषज्ञता विशेषकर फार्मास्यूटिकल और आईटी सेवाओं को दर्शाते हैं।
  • जबकि भारत में अमेरिका द्वारा निर्यात में महत्त्वपूर्ण सेवा व्यापार श्रेणियों, विशेष रूप से यात्रा और उच्च शिक्षा के साथ होता है।
  • विदेशी मुद्रा बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा बार-बार हस्तक्षेप का मतलब है कि भारत ने 2017 के पहले तीन तिमाहियों में विदेशी मुद्रा की खरीद में वृद्धि की है। 
  • चौथी तिमाही में खरीद में तेज़ गिरावट के बावजूद, विदेशी मुद्रा की शुद्ध वार्षिक खरीद 2017 में 56 अरब डॉलर तक पहुँच गई, जो जीडीपी के 2.2 प्रतिशत के बराबर है।
  • चालू खाता घाटा एक बड़े और निरंतर माल व्यापार घाटा द्वारा संचालित किया गया है, जिसके बदले में स्वर्ण और पेट्रोलियम आयात में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि हुई है।
  • भारत के नीति परिवर्तन द्वारा सीमित सोने के आयात और वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट से (2014 से तेल के संतुलन को कम करने के बाद) वस्तुओं के व्यापार घाटे में पिछले कुछ सालों में गिरावट आई है।

केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप ज़रूरी क्यों?

  • विनिमय दर में अस्थिरता को कम करने के लिये और विदेशी मुद्रा भंडार के संग्रहण या इन भंडारों का प्रबंधन करने के लिये केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करते हैं।
  • वे यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं कि उनकी मुद्राएं न तो अत्यधिक मूल्यवान या अधोवाही (overvalued or undervalued) हैं।
  • यदि मुद्रा अतिभारित (overvalued) है, तो यह निर्यात में किसी देश की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को नुकसान पहुँचा सकती है, जबकि एक अधोमूल्य मुद्रा (undervalued) का मुद्रास्फीति पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
  • उदाहरण के लिये, जब मुद्रा की सराहना होती है, तो एक केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदकर बाज़ार में हस्तक्षेप करता है। 
  • जबकि मुद्रा के मूल्यह्रास से निपटने के लिये केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बेचता है।
  • इस प्रकार का हस्तक्षेप विदेशी मुद्रा बाज़ार की अपेक्षाओं का प्रबंधन करने के लिये भी किया जाता है।