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जैव विविधता और पर्यावरण

नगरीय ऊष्मा द्वीप

  • 18 May 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नगरीय ऊष्मा द्वीप, ग्रीनहाउस गैसें एवं ग्रीनहाउस प्रभाव, जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभाव, नासा का पारितंत्र स्पेसबोर्न थर्मल रेडियोमीटर एक्सपेरिमेंट (ECOSTRESS)।

मेन्स के लिये:

नगरीय ऊष्मा द्वीप का कारण और प्रभाव, जलवायु परिवर्तन का परस्पर संबंध, हीट वेव एवं नगरीय ऊष्मा द्वीप।

चर्चा में क्यों? 

हाल में भारत के कई हिस्से भीषण गर्मी की लहरों का सामना कर रहे हैं। शहरी क्षेत्र ऐसे स्थान हैं जिनका तापमान ग्रामीण क्षेत्रों के तापमान की तुलना में अधिक है। इसी  घटना को "नगरीय ऊष्मा द्वीप" कहा जाता है।

  • विशेषज्ञों के अनुसार, ये तापमान विसंगतियाँ अत्यधिक शहरीकृत और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के तापमान में भिन्नता के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में खुले और हरे भरे स्थानों की उपलब्धता के कारण हैं।

नगरीय ऊष्मा द्वीप:

  • नगरीय ऊष्मा द्वीप को स्थानीय और अस्थायी घटना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक शहर के भीतर कुछ क्षेत्र अपने आसपास के क्षेत्र की तुलना में अधिक तापमान का अनुभव करते हैं।
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप का निर्माण मूल रूप से कंक्रीट से बने शहरों की इमारतों और घरों के कारण होता है जिसके कारण उत्सर्जित ऊष्मा आसानी से वायुमंडल में नहीं पहुँच पाती है।
    • नगरीय ऊष्मा द्वीप मूल रूप से कंक्रीट से बने प्रतिष्ठानों के बीच ऊष्मा के एकत्र होने से प्रेरित होता है।
    • तापमान में यह भिन्नता 3 से 5 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकती है।

ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों के अधिक गर्म होने का कारण:

  • यह देखा गया है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में हरे-भरे क्षेत्रों में कम तापमान का अनुभव होता है।
  • नगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में वृक्षारोपण, खेत, जंगलों और पेड़ों के रूप में अपेक्षाकृत अधिक हरा-भरा आवरण होता है। यह हरित आवरण अपने परिवेश में गर्मी को नियंत्रित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • वाष्पोत्सर्जन वह प्रक्रिया है जिसे पौधे तापमान को नियंत्रित करने के लिये करते हैं।  
  • नगरीय क्षेत्रों में नगरीय ऊष्मा द्वीप का मूल कारण निम्नलिखित हैं:
    • गगनचुंबी इमारतों, सड़कों, पार्किंग स्थलों, फुटपाथों और सार्वजनिक परिवहन पारगमन लाइनों के बार-बार निर्माण ने नगरीय ऊष्मा द्वीप की घटनाओं को तेज़ कर दिया है।
  • यह काले या किसी गहरे रंग के पदार्थ के कारण होता है। 
    • नगरों में आमतौर पर कांँच, ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से निर्मित इमारतें होती हैं, ये सभी गहरे रंग की सामग्री हैं, जिसका अर्थ है कि यह सामग्री उच्च ऊष्मा को आकर्षित और अवशोषित करती है।

अर्बन हीट आइलैंड का कारण: 

  • निर्माण गतिविधियों में कई गुना वृद्धि: साधारण शहरी आवासों के जटिल बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं विस्तार के लिये डामर और कंक्रीट जैसी कार्बन अवशोषित सामग्री की आवश्यकता होती है जो बड़ी मात्रा में तापमान को अवशोषित करते हैं, अत: इस कारण शहरी क्षेत्रों की सतह के औसत तापमान में वृद्धि होती है।
  • गहरे रंग की सतह: शहरी क्षेत्रों में निर्मित भवनों की बाहरी सतह को सामान्यतः काले या गहरे रंग से रंग दिया जाता है जिस कारण अल्बेडो अर्थात् पृथ्वी से सूर्य की ऊष्मा का परावर्तन कम हो जाता है और गर्मी का अवशोषण बढ़ जाता है।
  • एयर कंडीशनिंग: तापमान को नियंत्रित करने के लिये एयर कंडीशनिंग का प्रयोग किया जाता है जिसके लिये बिजली संयंत्रों हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो अधिक प्रदूषण का कारण बनता है। इसके अलावा एयर कंडीशनर वायुमंडलीय हवा के साथ ऊष्मा का आदान-प्रदान करते हैं जो स्थानीय स्तर पर हीटिंग उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार यह एक कास्केड प्रभाव (Cascade Effect) है जो शहरी ऊष्मा द्वीपों के विस्तार में योगदान देता है।
  • शहरी निर्माण शैली: ऊँची इमारतें और संकरी सड़कें हवा के संचलन में बाधा उत्पन्न करती हैं जिससे हवा की गति धीमी हो जाती है जो प्राकृतिक शीतलन प्रभाव को कम करता है। इसे अर्बन कैनियन इफेक्ट (Urban Canyon Effect) कहा जाता है।
  • बड़े पैमाने पर परिवहन प्रणाली की आवश्यकता: परिवहन प्रणाली और जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर उपयोग शहरी क्षेत्रों में तापमान को बढ़ाता है। 
  • वृक्ष और हरित क्षेत्र की कमी: वृक्ष और हरित क्षेत्र वाष्पीकरण एवं कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की क्रिया को कम करते हैं तथा ये सभी प्रक्रियाएँ आसपास की हवा के तापमान को कम करने में मदद करती हैं। 
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप में कमी के उपाय: 
  • हरित आवरण के तहत क्षेत्र में वृद्धि करना: वृक्षारोपण और हरित आवरण के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास शहरी क्षेत्रों में गर्मी की उच्च स्थिति को कम करने के लिये प्राथमिक आवश्यकता है।
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप को कम करने के लिये ‘पैसिव कूलिंग’: पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों को बनाने के लिये व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
    • आईपीसीसी रिपोर्ट प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइनों का संदर्भ देती है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक सुविधाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है।
  • ऊष्मा शमन के अन्य तरीकों में उपयुक्त निर्माण सामग्री का उपयोग करना शामिल है। 
    • ऊष्मा को प्रतिबिंबित करने और अवशोषण को कम करने के लिये छतों को सफेद या हल्के रंगों में रंगा जाना चाहिये।
    • टेरेस प्लांटेशन और किचन गार्डनिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

भारत के नगरीय ऊष्मा द्वीप के संदर्भ में नासा का विश्लेषण:

  • नासा के अनुसार, दिल्ली के शहरी भागों में नगरीय ऊष्मा द्वीप की अधिक घटनाएंँ हो रही हैं।
    • दिल्ली के आसपास के कृषि क्षेत्रों की तुलना में शहरी भागों का तापमान काफी अधिक है।
  • नासा के इकोसिस्टम स्पेसबोर्न थर्मल रेडियोमीटर एक्सपेरिमेंट (इकोस्ट्रेस) द्वारा ली गई तस्वीर ने दिल्ली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लाल धब्बे, साथ ही पड़ोसी शहरों जैसे- सोनीपत, पानीपत, जींद और भिवानी के आसपास छोटे लाल धब्बों का खुलासा किया है।
    • इकोस्ट्रेस रेडियोमीटर से युक्त उपकरण है जिसे नासा द्वारा 2018 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजा गया था।
    • इकोस्ट्रेस मुख्य रूप से पौधों के तापमान का आकलन करने के साथ-साथ उनकी जल की आवश्यकताओं और उन पर जलवायु के प्रभाव को जानने का कार्य करता है।
  • इकोस्ट्रेस के आंँकड़ों में ये लाल धब्बे नगरीय ऊष्मा द्वीप के अधिक तापमान, जबकि शहरों के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में कम तापमान की घटनाओं का संकेत देते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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