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जैव विविधता और पर्यावरण

हीटवेव से निपटने के लिये शहर का अर्बन स्वरूप

  • 30 Aug 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हीटवेव से निपटने के लिये शहर का अर्बन स्वरूप, हीटवेव, जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE)

मेन्स के लिये:

हीटवेव से निपटने के लिये शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाना

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

भारत में हीटवेव की बढ़ती घटनाएँ एक गंभीर मुद्दा बनकर उभरी हैं, जिससे शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाना अनिवार्य हो गया है।

  • जहाँ बड़े शहरों में रहने की क्षमता में सुधार के लिये जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु संघर्ष किया जा रहा है, वहीं छोटे शहर विस्फोटक वृद्धि के कगार पर हैं और  इन्हें "हीट-प्रूफ" विकास की आवश्यकता है।

किसी शहर का अर्बन स्वरूप: 

  • परिचय:
    • प्रत्येक शहर में प्राकृतिक और मानव निर्मित बुनियादी ढाँचे और उनसे उत्पन्न गतिविधियों का एक अनूठा संयोजन होता है।
    • उदाहरण के लिये अधिक घनत्व वाली इमारतें कम स्थान घेरती हैं, जिससे वाहन उत्सर्जन में कमी आती है, जो वायु को प्रदूषित कर वायु की ऊष्मा में वृद्धि करती हैं।
    • अधिक हरियाली और जल निकाय कार्बन उत्सर्जन को कम करेंगे जो परिवेश के वातावरण को ठंडा करेगा।
    • अधिक हरियाली वाले स्थानों, जल निकायों और इमारतों के इस संयोजन को शहर का अर्बन स्वरूप कहा जाता है, जो इसकी ऊष्मा के लचीलापन तथा रहने की क्षमता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • हीट रेसिलिएंस में अर्बन स्वरूप की भूमिका:
    • शहरी आकृति विज्ञान, आस्पेक्ट रेशियो (Aspect Ratio), स्काई व्यू फैक्टर (SVF), ब्लू/ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर (B/GI), फ्लोर एरिया रेशियो (FAR)/फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और स्ट्रीट ओरिएंटेशन जैसे पैरामीटर सामूहिक रूप से शहर के अर्बन स्वरूप को परिभाषित करते हैं तथा ऊष्मा के प्रति इसकी संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं।
      • वर्ष 2022 में विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) के एक अध्ययन ने पुणे, दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरू और जयपुर सहित 10 भारतीय शहरों में ऊष्मा के प्रति विविध शहरी रूपों की प्रतिक्रिया की जाँच की।
      • अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों ने भारत के शहरों में गर्मी से निपटने के संभावित कदमों पर प्रकाश डाला है।

शहरी आधारभूत ढाँचे से संबंधित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के निष्कर्ष:

  • अर्बन मोर्फोलोजी और हीट रेसिलिएंस:
    • मध्यम वर्ग की वनस्पतियों के साथ खुली ऊँचाई, खुली मध्य ऊँचाई और सघन मध्य ऊँचाई वाली आकृतियों वाले शहरी क्षेत्रों में ऊष्मा क्षेत्रों में भूमि सतह का तापमान (LST) कम होता है।
    • कम ऊँचाई वाली इमारतों के निकट विरल वनस्पति के कारण 2-4 डिग्री सेल्सियस से अधिक भूमि सतह का तापमान (LST) होता। एस्बेस्टस, गैल्वेनाइज़्ड आयरन शीट और प्लास्टिक शीट जैसी अधिक ऊष्मा का अवशोषण करने वाली सामग्री की छत के कारण कम ऊँचाई वाले औद्योगिक क्षेत्र विशेष रूप से समस्याग्रस्त हैं।
      • ऐसी बेहतर छत सामग्री, परावर्तक पेंट और हरित छतों (Green Roofs) का उपयोग करके लाभान्वित हो सकते हैं।
  • आस्पेक्ट रेशियो:
    • आस्पेक्ट रेशियो इमारत की ऊँचाई एवं सड़क की चौड़ाई का अनुपात है। शहरी सतहों द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा को प्रभावित करता है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि आस्पेक्ट रेशियो जितना अधिक होगा, LST उतना ही कम होगा। इसका मतलब यह है कि सड़क जितनी संकरी होगी, गर्मी या ऊष्मा उतनी ही कम होगी। इमारतें एक-दूसरे को छाया प्रदान करती हैं जिससे सतह सूर्य के सीधे संपर्क में कम आती है।
  • स्काई व्यू फैक्टर और हीट ट्रैपिंग:
    • SVF सड़कों और खुले स्थानों के भीतर ऊष्मा और अपव्यय को निर्धारित करता है। आकाश दृश्य कारक का मान 0 और 1 के बीच होता है। मान 1 का अर्थ है कि कोई भी नगण्य परिक्षेत्र नहीं है। उच्च SVF मान LST में उल्लेखनीय वृद्धि से जुड़े थे।
    • उच्च SVF वाले स्थानों, जिनमें राजमार्ग, सड़क, चौराहे और खुले पार्किंग स्थल शामिल हैं में तापमान में वृद्धि का अनुभव हुआ।
  • स्ट्रीट ओरिएंटेशन और सन एक्सपोज़र:
    • धूप के संपर्क में आने और हवा की गति के कारण सड़क पर गर्मी का असर पड़ता है। धूप के अधिक संपर्क के कारण उत्तर-दक्षिण उन्मुख सड़कों पर LST अधिक था।
    • पूर्व-पश्चिम अक्ष के साथ संरेखित सड़कें ठंडी थीं क्योंकि  ये धूप के सीधे संपर्क में कम आती थीं।
  • नील/हरित अवसंरचना: 
    • हरे-भरे क्षेत्र शहरी क्षेत्र के सूक्ष्म जलवायु के सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे तापमान और सापेक्ष आर्द्रता को नियंत्रित करते हैं, प्रदूषकों को अवशोषित एवं विघटित करते हैं तथा समग्र वायु गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
      • हालाँकि हरियाली के प्रकार जैसे- घास, झाड़ियाँ या सघन पत्तों वाले वृक्ष आदि के आधार पर लाभ व्यापक रूप से भिन्न होते हैं।
      • सिंगापुर ने नगरीय ताप द्वीप प्रभाव/अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट को कम करने तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रभावी वनस्पति आवरण (Effective Vegetation Cover- EVC) की गणना करने के लिये एक पद्धति विकसित की है।
    • CSE द्वारा किये गए अध्ययन में पाया गया कि EVC में 30% की वृद्धि LST को 2-4 डिग्री सेल्सियस तक कम कर देती है। कैनोपी वाले वृक्षों में EVC बेहतर होता है। सघन पत्तों वाले वृक्षों के नीचे LST उसी क्षेत्र में ताड़ के वृक्षों के नीचे के LST की तुलना में लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ठंडा होता है।

किसी शहर के अर्बन स्वरूप को अपनाने हेतु कदम:

  • अर्बन स्वरूप -आधारित कोड संदर्भ-विशिष्ट शीतलन समाधान प्रदान कर सकते हैं। ये कोड किसी शहर या आस-पास  की विशिष्ट विशेषताओं के अनुसार ज़ोनिंग नियमों को तैयार करने में मदद कर सकते हैं। ये पुराने बाज़ारों में छायादार मार्ग, मंदिर परिसर, ठंडी छतें और उच्च EVC (30%) वाले व्यापारिक ज़िले हो सकते हैं।
  • शहरों को इस अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि को शामिल करने और गर्मी के प्रति अनुकूलन में सुधार करने के लिये अपने भवन उपनियमों और मास्टर प्लान को संशोधित करना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये पुणे शहर ने जिस तरह SVF, स्थिति अनुपात, प्रभावी वनस्पति आवरण और शहरी आकारिकी पर ध्यान केंद्रित किया है, वह सभी शहरों के लिये मॉडल हो सकता है।
  • यहाँ तक कि तापमान में  1 डिग्री सेल्सियस की मामूली कमी से भी शहर की बिजली खपत में 2% की कमी हो सकती है, जो प्रभावी नियोजन के संभावित प्रभाव को दर्शाता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वर्तमान में और निकट भविष्य में भारत की ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में संभावित सीमाएँ क्या हैं?  (2010)

  1. उपयुक्त वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं। 
  2. भारत अनुसंधान एवं विकास में अधिक धन का निवेश नहीं कर सकता है। 
  3. भारत में अनेक विकसित देशों ने पहले ही प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग स्थापित कर लिये हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (a)  


मेन्स:

प्रश्न. संसार के शहरी निवास-स्थानों में ताप द्वीपों के बनने के कारण बताइये। (2013)

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