विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज सूचकांक | 26 Oct 2019

प्रीलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज सूचकांक

मेन्स के लिये:

विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज सूचकांक निष्कर्ष मानक, इसका महत्त्व, भारत में स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (PHD Chamber of Commerce and Industry) ने शिक्षा क्षेत्र (विश्वविद्यालयों) और उद्योगों के बीच इनपुट-आउटपुट संबंधों का आकलन करते हुए विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज (University-Industry Linkages- UILs) सूचकांक जारी किया है।

Indurstry Index

निष्कर्ष:

  • भारत का विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज सूचकांक 10 के पैमाने पर 4.7 के समग्र स्कोर के साथ मध्य श्रेणी (Moderate) स्थिति में रहा।
  • कर्नाटक, केरल और गुजरात इस सूचकांक में शीर्ष स्थान पर रहे और उनका स्कोर क्रमशः 7.8, 7.3 और 6.7 रहा।
  • पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों का प्रदर्शन औसत जबकि पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों का प्रदर्शन खराब (Poor) श्रेणी का रहा।

क्षेत्रक:

  • यह सर्वेक्षण विकास, अनुसंधान, नवाचार और क्षमता निर्माण के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष 10 निम्नलिखित क्षेत्रों की पहचान करता है-
    • कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ
    • कृषि और खाद्य प्रसंस्करण
    • पर्यटन
    • वस्त्र
    • सूचना प्रौद्योगिकी और संबंधित सक्षम सेवाएँ
    • ऊर्जा (Power)
    • ऑटो घटकों (Component)
    • सीमेंट
    • दवा और फार्मास्यूटिकल्स
    • हस्तशिल्प और हथकरघा (Handicrafts and Handlooms)

वैश्विक परिदृश्य:

  • अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के विश्लेषण से पता चलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का बेह डोल अधिनियम (Bayh Dole Act) 1980 के दशक में लागू किया गया था जो विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज को मज़बूत करने के लिये सबसे अच्छा मॉडल है।
  • यह अधिनियम विश्व के कई अन्य देशों जैसे जर्मनी, जापान, चीन, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया द्वारा लागू किया गया है।
  • इनमें से अधिकांश देशों ने इसे अच्छी तरह से विकसित किया है जिससे विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच रणनीतिक साझेदारी में बढ़ोतरी हुई है।
  • भारत ने अभी भी इस क्षेत्र में सीमित विकास किया है, साथ ही संबंधित मानकों का पूर्णतः निर्धारण नहीं किया जा सका है।

विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज अनुसंधान में भारत की स्थिति:

  • भारत विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज के अंतर्गत अभी प्रारंभिक अवस्था में है। हालाँकि भारत के शीर्ष शिक्षण संस्थानों ने पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षाकृत अच्छा कार्य किया है, लेकिन अभी भी समग्र स्तर पर कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • विश्व के अन्य देशों जैसे दक्षिण कोरिया, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान की तुलना में भारत में अभी भी अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का बहुत कम हिस्सा खर्च किया जाता है।
  • भारत में दिनोंदिन बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन विकास के अनुपात में इनका अनुसंधान में योगदान सीमित है।
  • बहु-राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कराए जाने वाले अनुसंधान कार्यों की प्रवृत्ति मूलतः परियोजना-आधारित (Project-Based) होती है इस कारण इन अनुसंधानों का दीर्घकालिक स्तर पर देश को लाभ नहीं मिल पाता है।
  • वर्ष 2008 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) ने अनुसंधान कार्यों में जहाँ $ 250 बिलियन व्यय किया,वहीं इसके विपरीत भारतीय विश्वविद्यालयों को कुल 12 बिलियन रुपए का अतिरिक्त अनुदान प्रदान किया गया। स्पष्ट है कि भारत को अपनी अनुसंधान क्षमता को बढ़ाने के लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

भारत के इस क्षेत्र में अन्य देशों से पीछे रहने के कारण:

  • भारत में विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज अनुसंधान से संबंधित कोई विशेष कानूनी प्रावधान नहीं है।
  • सार्वजनिक-वित्त पोषित बौद्धिक संपदा का संरक्षण और उपयोग (Protection and Utilization of Public-Funded Intellectual Property- PUPFIP) विधेयक तथा उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान विधेयक (Higher Education and Research Bill) संसद में लंबित थे जिन्हें अब संसद से वापस ले लिया गया है।
  • PUPFIP विधेयक संयुक्त राज्य अमेरिका के बेह डोल अधिनियम के अनुरूप बनाया गया था।
  • भारत में अभी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्टार्टअप और इनक्यूबेटर्स का अभाव है इसके अतिरिक्त नीतियों तथा योजनाओं हेतु वित्त आवंटन की मात्रा भी सीमित है।

विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज अनुसंधान का महत्त्व:

  • विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग और विश्वविद्यालय के मध्य सहयोग है जिसका उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देना है।
  • यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- कौशल विकास, नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने एवं स्टार्ट-अप आदि के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • यह तकनीकी प्रगति में योगदान करने के साथ ही देश में आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।

स्रोत: लाइवमिंट