समान नागरिक संहिता | 16 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता (UCC), राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत, हिंदू लॉ, विधि आयोग मेन्स के लिये:भारतीय राजनीति में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का महत्त्व, समान नागरिक संहिता (UCC) की चुनौतियाँ एवं महत्त्व। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) की मांग की तथा इसे धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के रूप में संबोधित किया।
समान नागरिक संहिता क्या है?
- परिचय:
- समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘‘राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’’
- हालाँकि इसका कार्यान्वयन सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
- गोवा भारत का एकमात्र राज्य है, जहाँ वर्ष 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता के अनुरूप समान नागरिक संहिता लागू है।
- समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘‘राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’’
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- अंग्रेज़ों ने भारत में एक समान आपराधिक कानून स्थापित किये, लेकिन उन्होंने पारिवारिक कानूनों को उनकी संवेदनशील प्रकृति के कारण मानकीकृत करने से परहेज़ किया।
- बहस के दौरान संविधान सभा ने समान नागरिक संहिता पर चर्चा की थी लेकिन मुस्लिम सदस्यों ने सामुदायिक व्यक्तिगत कानूनों पर इसके प्रभाव के बारे में चिंता जताई तथा धार्मिक प्रथाओं के लिये सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव रखा।
- दूसरी ओर के.एम. मुंशी, अल्लादी कृष्णस्वामी और बी.आर. अंबेडकर जैसे समर्थकों ने समानता को बढ़ावा देने के लिये समान नागरिक संहिता की समर्थन की।
- UCC पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
- मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम केस, 1985: न्यायालय ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि “अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बन कर रह गया है” और इसके कार्यान्वयन का समर्थन किया।
- सरला मुद्गल बनाम भारत संघ, 1995 और जॉन वल्लमट्टम बनाम भारत संघ, 2003: न्यायालय ने UCC को लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि तीन तलाक की प्रथा असंवैधानिक है और मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और समानता का उल्लंघन करती है।
- इसमें यह भी सुझाव दिया गया कि संसद को मुस्लिम विवाह और तलाक को विनियमित करने के लिये कानून पारित करना चाहिये।
- जोस पाउलो कॉउटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटिना परेरा केस, 2019: न्यायालय ने गोवा की प्रशंसा एक “उज्ज्वल उदाहरण” के रूप में की, जहाँ “समान नागरिक संहिता सभी पर लागू होती है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, सिवाय कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा के” और पूरे भारत में इसके कार्यान्वयन का आह्वान किया।
- विधि आयोग का रुख:
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बलबीर सिंह चौहान के नेतृत्व में 21वें विधि आयोग ने “पारिवारिक कानून में सुधार” पर एक परामर्श पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि “इस स्तर पर समान नागरिक संहिता का निर्माण न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है।”
UCC का महत्त्व क्या है?
- राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता:
- एकता को बढ़ावा देना: समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों के बीच साझा पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकीकरण और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी।
- संघर्षों में कमी: इससे विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के कारण उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और संप्रदायिक संघर्षों में कमी आएगी।
- संवैधानिक मूल्यों को कायम रखना: UCC सभी व्यक्तियों के लिये समानता, बंधुत्व और सम्मान के सिद्धांतों को सुदृढ़ करेगी।
- लैंगिक न्याय और समानता:
- समानता सुनिश्चित करना: UCC विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और भरण-पोषण में महिलाओं को समान अधिकार तथा दर्जा प्रदान करके लैंगिक भेदभाव एवं उत्पीड़न को दूर करेगी।
- यह महिलाओं को पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी प्रथाओं को चुनौती देने के लिये सशक्त करेगी, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
- समानता सुनिश्चित करना: UCC विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और भरण-पोषण में महिलाओं को समान अधिकार तथा दर्जा प्रदान करके लैंगिक भेदभाव एवं उत्पीड़न को दूर करेगी।
- कानूनी प्रणाली का सरलीकरण और युक्तिकरण:
- कानूनों को सरल बनाना: समान नागरिक संहिता विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की जटिलताओं और विरोधाभासों को समाप्त करके कानूनी प्रणाली को सुव्यवस्थित और तर्कसंगत बनाएगी।
- कानूनी ढाँचे में सामंजस्य: यह विविध व्यक्तिगत कानूनों से उत्पन्न विसंगतियों और खामियों को दूर करके सिविल और आपराधिक कानूनों में सामंजस्य स्थापित करेगी।
- सुगम्यता में वृद्धि: UCC सामान्य जनता के लिये कानूनी प्रणाली को अधिक सुगम्य और समझने योग्य बनाएगी।
- पुरानी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और सुधार:
- प्रथाओं का नवीनीकरण: समान नागरिक संहिता कुछ व्यक्तिगत कानूनों में पुरानी और प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और सुधार करेगी।
- हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करना: यह मानव अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों के विपरीत प्रथाओं, जैसे तीन तलाक, बहुविवाह और बाल विवाह को समाप्त करेगी।
UCC के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विविध व्यक्तिगत कानून: भारत के कई समुदाय विवाह, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते हैं। इन विविध प्रथाओं को एक ही संहिता में समेटना एक बड़ी चुनौती है।
- धार्मिक संवेदनशीलताएँ: विभिन्न धार्मिक समुदायों की परंपराएँ और कानून गहराई से जुड़े हुए हैं।
- वे यह भी तर्क देते हैं कि UCC अनुच्छेद 25 के तहत उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा, जो अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है।
- राजनीतिक एवं सामाजिक विरोध: UCC को प्राय: राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है। पार्टियाँ एवं नेता चुनावी विचारों के आधार पर UCC का विरोध या समर्थन कर सकते हैं, जिससे असंगत नीतियाँ और साथ ही क्रियान्वयन में देरी हो सकती है।
- सामाजिक चिंताएँ: ऐसी आशंका है कि UCC पारंपरिक प्रथाओं को बाधित कर सकती है तथा सामाजिक अशांति उत्पन्न कर सकती है।
- विधायी एवं कानूनी बाधाएँ: एक व्यापक समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिये व्यापक विधायी कार्य एवं विस्तृत कानूनी प्रारूपण के साथ-साथ विभिन्न कानूनों को संबोधित करने के लिये प्रशासनिक क्षमताओं की आवश्यकता होती है।
आगे की राह
- एकता एवं एकरूपता: समान नागरिक संहिता को भारत की बहुसंस्कृतिवाद को स्वीकार करना चाहिये और इसकी विविधता को बनाए रखना चाहिये, और साथ ही इस बात पर ज़ोर देना चाहिये कि एकता, एकरूपता से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
- भारतीय संविधान सांस्कृतिक मतभेदों को दूर करने के लिये एकीकरणवादी तथा बहुसांस्कृतिक दोनों प्रकार के दृष्टिकोणों का समर्थन करता है।
- हितधारकों के साथ चर्चा एवं विचार-विमर्श: UCC के विकास एवं कार्यान्वयन में धार्मिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों एवं सामुदायिक प्रतिनिधियों सहित व्यापक हितधारकों को शामिल करना आवश्यक है।
- यह सहभागिता सुनिश्चित करती है कि UCC विविध दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित करने के साथ-साथ सभी नागरिकों द्वारा इसे निष्पक्ष और वैध माना जाए।
- संतुलन बनाना: कानून निर्माताओं को उन प्रथाओं को हटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो संवैधानिक मानकों के साथ संघर्ष करती हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सांस्कृतिक प्रथाएँ वास्तविक समानता और लैंगिक न्याय के सिद्धांतों के साथ संरेखित हों।
- समुदायों को अलग-थलग किये बिना सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील प्रथाओं को एक समान प्रणाली में शामिल करने के लिये एक बेहतर संतुलन बनाया जाना चाहिये।
- संवैधानिक परिप्रेक्ष्य: भारतीय संविधान सांस्कृतिक स्वायत्तता का समर्थन करने के साथ ही सांस्कृतिक समायोजन का लक्ष्य रखता है, जिसमें अनुच्छेद 29(1) सभी नागरिकों की विशिष्ट संस्कृतियों की रक्षा करता है।
- समुदायों को यह आकलन करना चाहिये कि क्या बहुविवाह एवं तलाक जैसी प्रथाएँ उनके सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हैं। उनका लक्ष्य एक न्यायपूर्ण संहिता बनाना होना चाहिये, जो समानता और न्याय को बढ़ावा दे।
- शिक्षा एवं जागरूकता: यह सुनिश्चित करना कि सभी नागरिक UCC के बारे में जागरूक हों, उसे समझें और साथ ही उसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु व्यापक पहुँच एवं शैक्षणिक प्रयासों की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: संपूर्ण भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों का किस प्रकार से प्रभावी समाधान किया जा सकता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत के संविधान में निहित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से गांधीवादी सिद्धांत हैं जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में परिलक्षित होते हैं? (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. उन संभावित कारकों पर चर्चा कीजिये, जो भारत को अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने से रोकते हैं, जैसा कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में प्रदान किया गया है। (2015) |