रेत और धूल भरे तूफान का सामना करने हेतु नया वैश्विक गठबंधन | 18 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
6 सितंबर, 2019 को राजधानी दिल्ली में हुई UNCCD COP14 (United Nations Convention to Combat Desertification Conference of Parties) की बैठक में रेत और धूल भरे तूफान का सामना करने के लिये एक नए वैश्विक गठबंधन की शुरुआत की गई।
रेत और धूल भरे तूफान
- रेत और धूल के तूफानों को सिरोको (Sirocco), हबूब (Haboob), येलो डस्ट (Yellow Dust), व्हाइट स्टॉर्म (White Storms) और हारमटन (Harmattan) के रूप में भी जाना जाता है।
- यह भूमि एवं जल प्रबंधन तथा जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक प्राकृतिक घटना है।
- इन तूफानों की तीव्रता, परिमाण या एक-दूसरे के साथ संबद्धता इन्हें अप्रत्याशित और खतरनाक बना सकती है।
प्रमुख बिंदु
- UNCCD (United Nations Convention to Combat Desertification) द्वारा 45 देशों को इन तूफानों के स्रोतों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- सदस्य राज्यों के आग्रह के बाद संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रबंधन समूह (UN Environment Management Group) के माध्यम से सितंबर 2018 में बनाए गए गठबंधन की स्थापना और शुरुआती उपलब्धियों हेतु आवश्यक योगदान दिया गया है।
नवगठित गठबंधन के प्रमुख लक्ष्य:
- एक वैश्विक प्रतिक्रिया तैयार करना जिसका उपयोग संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के व्यापक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
- प्रतिक्रिया उपायों को लागू करने के लिये प्रभावित देशों और क्षेत्रों हेतु तूफान के प्रवेश बिंदुओं की पहचान के लिये एक रणनीति एवं कार्य योजना विकसित करना।
- वैश्विक, क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय स्तरों पर प्रभावित देशों एवं संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के बीच भागीदारों को संलग्न करने तथा संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक मंच प्रदान करना।
- ज्ञान, डेटा, संसाधन, सूचना और तकनीकी विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के लिये एक साझा मंच प्रदान करना।
- जोखिम में कमी, समेकित नीति, अभिनव समाधान और क्षमता निर्माण के प्रयासों एवं धन इकट्ठा करने संबंधी पहलों के लिये आवश्यक उपायों और रणनीतियों को सुदृढ़ बनाना।
- रेत और धूल भरे तूफान के शमन के लिये संयुक्त प्रतिक्रियाओं हेतु वित्तीय संसाधनों की पहचान करना तथा उन्हें एकत्रित करना।
रेत और धूल भरे तूफान के प्रभाव
- कृषि भूमि का निरंतर उपयोग, वनों की कटाई, अतिवृष्टि, जल स्रोतों की कमी और औद्योगिक गतिविधियाँ सभी रेत और धूल भरे तूफान को बढ़ावा देती हैं।
- इस प्रकार के तूफानों का मानव स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, परिवहन, जल और वायु गुणवत्ता सभी पर व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ता है।
- हाल के वर्षों में कुछ क्षेत्र विशेष में रेत और धूल भरे तूफानों की आवृत्ति एवं तीव्रता में हुई वृद्धि पर्यावरणविदों के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। रेत और धूल भरे तूफानों की वैश्विक आकलन (Global Assessment of Sand and Dust Storms) रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि वैश्विक सर पर इन तूफानों के 25 प्रतिशत भाग के लिये मानव गतिविधियाँ ज़िम्मेदार है।
- रेत और धूल भरे तूफान के महत्त्वपूर्ण संभावित चालकों में मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। इसके मुख्य कारणों में विशेष रूप से भूमि एवं जल का अस्थायी उपयोग, तेज़ गति की पवन की अत्यधिक घटनाएँ, कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक शुष्कता, सूखे की बढ़ती आवृत्ति एवं गंभीरता के साथ-साथ लंबी अवधि, आदि शामिल हैं।
भारत सहित विभिन्न देशों की पहल
- इस बैठक में चीन ने विशेष रूप से रेत और धूल भरे तूफान की तीव्रता पर संयुक्त मानकों को विकसित करने के लिये सशक्त अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया है।
- भारत ने इस विषय पर अपने राज्यों के मार्गदर्शन हुए एक योजना प्रस्तुत की।
- हालाँकि ईरान ने इस बात पर बल दिया कि रेत और धूल भरे तूफान वाले हॉटस्पॉट पर पारंपरिक और आधुनिक ज्ञान के समृद्ध समन्वय का प्रयोग करके सशक्त क्षेत्रीय पहल की जा सकती है।
‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन’
(United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD)
- वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन से प्रेरणा लेकर वर्ष 1992 में रियो में जैव-विविधता, जलवायु परिवर्तन एवं मरुस्थलीकरण के विषय पर एकजुटता प्रकट की थी। पृथ्वी शिखर वार्ता के दौरान जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और मरुस्थलीकरण का सामना करने जैसे तीन महत्त्ववपूर्ण प्रस्तावों को स्वीकार किया।
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते हैं-
- जैव विविधता पर समझौता (Convention on Biological Diversity- CBD)।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)।
- UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
- मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस दिवस को 25 साल पहले शुरू किया गया था।
- तब से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।
- 14 अक्तूबर, 1994 को भारत ने UNCCD पर हस्ताक्षर किये। भारत में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय है।