हिन्दू कानून के तहत शादी ‘पवित्र बंधन’ है, अनुबंध नहीं | 01 Feb 2017

सन्दर्भ

दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि हिन्दू कानून के तहत शादी एक ‘पवित्र बंधन’ है न कि यह कोई अनुबंध है” जिसमें एक दस्तावेज को अमल में लाकर प्रवेश किया जा सकता है| अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला की उस याचिका को खारिज़ करते हुए की जिसमें उसने उसे कानूनी रूप से विवाहित पत्नी घोषित करने से इनकार करने वाले एक आदेश को चुनौती दी थी|

फैसले का आधार

  • जस्टिस प्रतिभा रानी ने करार को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी का आधार मानने से इनकार कर दिया| अदालत ने कहा है कि हिंदू लॉ के तहत शादी एक संस्कार है, जबकि मुस्लिम लॉ के तहत शादी एक करार है| ऐसे में हिंदू लॉ के तहत रीति-रिवाज और संस्कारों को अपनाए बगैर महज दस्तावेजों पर किये गए अनुबंध को विवाह नहीं माना जा सकता है|
  • अदालत के अनुसार हिंदू शादी तभी मान्य होगी जब इसे पूरे विधि विधान से संपन्न किया जाए, जबकि इस मामले में महिला ने महज एक शपथपत्र के आधार पर खुद को दिल्ली सरकार के एक कर्मचारी की पत्नी बताते हुए उसकी मौत के बाद अनुकंपा नौकरी का हकदार होने का दावा किया था| हालाँकि उस महिला ने स्वीकार किया कि हिंदू होने के नाते पारंपरिक तरीके से शादी का अनुष्ठान पूरा नहीं किया था|

निष्कर्ष

  • विदित हो कि देश की उच्च अदालतों ने वैयक्तिक कानूनों के संबंध में कई सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय दिये हैं| न्यापालिका ने लिवइन रिश्ते में रह रहे जोड़ों को पति-पत्नी का दर्जा देने से लेकर भरण-पोषण का अधिकार देने तक तमाम अहम् फैसले किये हैं|
  • लेकिन पर्सनल लॉ बनाम समान नागरिक संहिता की तेज होती बहस के बीच वैयक्तिक कानून की पेंचीदगी बढ़ती जा रही है| अतः संसद को इस संबंध में उपयुक्त कानून बनाकर वैयक्तिक कानून की पेंचीदगी को समाप्त करने की ज़रूरत है|