इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि

  • 24 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बाह्य अंतरिक्ष संस्थान, रॉकेट प्रक्षेपण के चरण, ISRO, RISAT-2।

मेन्स के लिये:

उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि और संबद्ध चिंताएँ।

चर्चा में क्यों? 

बाह्य अंतरिक्ष संस्थान (OSI) ने उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि को प्रतिबंधित करने के लिये राष्ट्रीय और बहुपक्षीय दोनों प्रयासों का आह्वान किया है।

  • OSI विश्व के अग्रणी अंतरिक्ष विशेषज्ञों का एक नेटवर्क है जो अत्यधिक नवीन, ट्राॅसडिसिप्लिनरी रिसर्च के प्रति अपनी प्रतिबद्धता हेतु प्रयासरत है जो अंतरिक्ष के निरंतर उपयोग और अन्वेषण का सामना करने वाली बड़ी चुनौतियों का समाधान करता है।

रॉकेट लॉन्च के चरण:

  • प्राथमिक चरण:
    • रॉकेट के प्राथमिक चरण में पहला रॉकेट इंजन संलग्न है, जो रॉकेट को आकाश की ओर भेजने के लिये प्रारंभिक बल प्रदान करता है।
    • यह इंजन तब तक कार्य करता है जब तक इसका ईंधन समाप्त नहीं हो जाता, उसके बाद यह रॉकेट से अलग हो जाता है और ज़मीन पर गिर जाता है।
  • माध्यमिक चरण:
    • प्राथमिक चरण के बाद, अगला रॉकेट इंजन अपने प्रक्षेपवक्र पर रॉकेट को संचालित रखने के लिये संलग्न होता है।
    • दूसरे चरण में काफी कम कार्य होता है, क्योंकि रॉकेट पहले से ही तेज़ गति से यात्रा कर रहा है और पहले चरण के अलग होने के कारण रॉकेट का वज़न काफी कम हो गया है।
    • यदि रॉकेट में अतिरिक्त चरण हैं, तो प्रक्रिया रॉकेट के अंतरिक्ष पहुँचने तक दोहराई जाएगी।
  • पेलोड: 
    • एक बार पेलोड चाहे वह उपग्रह हो या अंतरिक्ष यान कक्षा में पहुँचता है तो रॉकेट अलग हो जाता है उसके बाद क्राफ्ट को छोटे रॉकेटों का उपयोग करके संचालित किया जाता है जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान का मार्गदर्शन करना है। मुख्य रॉकेट इंजनों के विपरीत इन युद्धाभ्यास रॉकेटों को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।

Payload-Separation

अनियंत्रित पुन: प्रवेश (Uncontrolled Re-entry):

  • एक अनियंत्रित पुन: प्रवेश चरण में रॉकेट नीचे की ओर गिरता है। इसके गिरने का मार्ग इसके आकार, अवरोहण कोण, वायु धाराओं और अन्य विशेषताओं से निर्धारित होता है।
  • गिरने के साथ ही यह विघटित भी हो जाता है। जैसे-जैसे इसके छोटे टुकड़े बाहर निकलते हैं, भूमि पर इसके प्रभाव की विभव त्रिज्या बढ़ जाती है। 
  • कुछ टुकड़े पूरी तरह से जल जाते हैं जबकि अन्य नहीं। लेकिन जिस गति से ये बढ़ रहे हैं उसके कारण मलबा घातक हो सकता है।
    • इंटरनेशनल स्पेस सेफ्टी फाउंडेशन की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 300 ग्राम से अधिक द्रव्यमान के मलबे वाले विमान का प्रभाव एक विनाशकारी परिणाम उत्पन्न करेगा, जिसका अर्थ है कि विमान पर सवार सभी लोग मर सकते हैं। 
  • रॉकेट के अधिकांश पुर्जे मुख्य रूप से महासागरों में गिरे हैं क्योंकि पृथ्वी की सतह पर भूमि की तुलना में जल अधिक है। लेकिन कई पुर्जे  भूमि पर भी गिरे हैं।

संबंधित चिंताएँ:

  • अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ रॉकेट पृथ्वी के कुछ हिस्सों पर गिरे हैं।  
  • वर्ष 2018 में रूसी रॉकेट और वर्ष 2020 तथा 2022 में चीन के लॉन्ग मार्च 5 बी रॉकेट इंडोनेशिया, पेरू, भारत और आइवरी कोस्ट के कुछ हिस्सों पर गिरे थे।  
  • स्पेसएक्स फाल्कन 9 के कुछ हिस्सों में जो वर्ष 2016 में इंडोनेशिया में गिरे थे, उनमें दो "रेफ्रिज़रेटर के आकार के ईंधन टैंक" शामिल थे।
  • यदि फिर से प्रवेश करने के चरणों में भी ईंधन बचा हुआ है, तो वायुमंडलीय और स्थलीय रासायनिक संदूषण एक और अन्य जोखिम है।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि अनियंत्रित रॉकेट के फिर से प्रवेश करने की वजह से अगले दशक में 10% दुर्घटना संबंधी जोखिम होने की संभावना है और 'ग्लोबल साउथ' के देशों के ज़्यादा प्रभावित होना आपेक्षित है।
    • संयुक्त राष्ट्र के ऑर्बिटल डेब्रिस मिटिगेशन स्टैंडर्ड प्रैक्टिसेज़ (ODMSP) के अनुसार रॉकेट के पुनः प्रवेश से हताहत होने की संभावना 0.01% से कम रखने की सलाह दी गई है। 
  • रॉकेट चरणों को हमेशा नियंत्रित पुन: प्रवेश करने के लिये कोई विश्वव्यापी समझौता नहीं है, न ही ऐसा करने के लिये कोई प्रौद्योगिकियों है।
  • उत्तरदायित्त्व समझौता 1972 में देशों को नुकसान के लिये भुगतान करने की आवश्यकता है, उन्हें रोकने की नहीं।
  • विंग-जैसे अटैचमेंट, डीऑर्बिटिंग ब्रेक, रीएंटरिंग बॉडी पर अधिक ईंधन और डिज़ाइन में बदलाव जो मलबे के उत्पादन को कम करते हैं, उपयोग की जाने वाली तकनीकों में से हैं। 

न्यूनतम क्षति

  • भविष्य के समाधानों को न केवल उपग्रहों को लॉन्च करने बल्कि उपग्रहों को फिर से प्रवेश करने के लिये भी विस्तारित करने की आवश्यकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण में हुई प्रगति ने छोटे उपग्रहों के लिये मार्ग प्रशस्त किया है, जिन्हें बड़ी संख्या में बनाना और लॉन्च करना आसान है। ये उपग्रह बड़े होने की तुलना में अधिक वायुमंडलीय खिंचाव का अनुभव करते हैं, लेकिन पुन: प्रवेश के दौरान उनके जलने की भी संभावना है।
    • भारत का 300 किलोग्राम वजनी RISAT-2 उपग्रह पृथ्वी की निम्न कक्षा में 13 वर्ष बाद अक्तूबर में पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश कर गया। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने इसे एक महीने पहले से सुरक्षित और टिकाऊ अंतरिक्ष संचालन प्रबंधन के लिये अपने तंत्र के साथ ट्रैक किया था। इसने इन-हाउस मॉडलों का उपयोग करते हुए अपने पूर्वानुमानित मार्गो का अनुपालन किया।

नोट:  

  • सोवियत संघ ने वर्ष 1957 में पहला कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपित किया।
  • कक्षा में 6,000 से अधिक उपग्रह हैं, उनमें से अधिकांश निम्न-पृथ्वी (100-2,000 किमी) और भूस्थैतिक (35,786 किमी) कक्षाओं में हैं, जिन्हें 5,000 से अधिक प्रक्षेपणों के माध्यम से भेजा गया है।
  • पुन: प्रयोज्य रॉकेट चरणों के आगमन के साथ रॉकेट लॉन्च की संख्या बढ़ रही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. दूरसंचार प्रसारण हेतु उपयोग किये जाने वाले उपग्रहों को भू-अप्रगामी कक्षा में रखा जाता है। एक उपग्रह ऐसी कक्षा में तब होता है जब:

(a) कक्षा भू-तुल्यकालिक होती है।
(b) कक्षा वृत्ताकार होती है।
(c) कक्षा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समतल होती है।
(d) कक्षा 22,236 किमी. की तुंगता पर होती है।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।  इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (वर्ष 2016)

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2