अरब सागर में असामान्य चक्रवात | 10 Sep 2024
प्रिलिम्स के लिये:अरब सागर, असना, चक्रवात, अल नीनो, दक्षिणी महासागर मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ, जलवायु परिवर्तन और चक्रवात गतिशीलता पर इसका प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अगस्त माह के दौरान अरब सागर में असना नामक एक अप्रत्याशित चक्रवाती घटना घटी, जिसने असामान्य उत्पत्ति और विकास के कारण महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया।
- उत्तरी हिंद महासागर जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल है, वैश्विक महासागरीय क्षेत्रों की तुलना में चक्रवातों के मामले में सामान्यतः कम सक्रिय है। हालाँकि असना के उभरने से इस क्षेत्र में चक्रवातों के निर्माण/साइक्लोजेनेसिस पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है।
नोट: चक्रवातों के निर्माण से तात्पर्य वायुमंडल में चक्रवाती परिसंचरण की वृद्धि या प्रबलता से है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः चक्रवातों का निर्माण होता है तथा मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं।
उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवात के निर्माण में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?
- महासागरीय सुरंगें (Oceanic Tunnels): हिंद महासागर में अद्वितीय महासागरीय सुरंगें हैं, जो इसे प्रशांत और दक्षिणी महासागरों से जोड़ती हैं।
- प्रशांत सुरंग (इंडोनेशियाई थ्रूफ्लो) हिंद महासागर के ऊपरी 500 मीटर तक गर्म जल लाती है, जिससे अरब सागर में समुद्र की सतह का तापमान (SST) बढ़ जाता है, जिससे संवहन और नमी की उपलब्धता में वृद्धि हो सकती है।
- गर्म समुद्री सतह की पवने चक्रवात के विकास के लिये ऊर्जा प्रदान कर सकती है, लेकिन अन्य कारकों के कारण इसका प्रभाव कम हो सकता है।
- दक्षिणी महासागर सुरंग 1 किलोमीटर गहराई से नीचे ठंडा जल लाती है, जो निचली महासागर परतों को स्थिर कर सकती है और गर्म सतह के जल के ऊर्ध्वाधर मिश्रण को सीमित कर सकती है।
- ठंडा जल समुद्र सतही तापमान को भी कम कर सकता है तथा चक्रवात निर्माण के लिये उपलब्ध ऊर्जा को सीमित कर सकता है, जिससे चक्रवाती गतिविधियाँ संभवतः दब सकती हैं।
- प्रशांत सुरंग (इंडोनेशियाई थ्रूफ्लो) हिंद महासागर के ऊपरी 500 मीटर तक गर्म जल लाती है, जिससे अरब सागर में समुद्र की सतह का तापमान (SST) बढ़ जाता है, जिससे संवहन और नमी की उपलब्धता में वृद्धि हो सकती है।
- मानसून-पूर्व और मानसून-पश्चात् चक्रवात: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को घेरने वाले उत्तरी हिंद महासागर में दो अलग-अलग चक्रवाती मौसम होते हैं, मानसून-पूर्व (अप्रैल से जून) तथा मानसून-पश्चात् (अक्तूबर से दिसंबर), जबकि अन्य क्षेत्रों में आमतौर पर एक ही चक्रवाती मौसम होता है।
- इस क्षेत्र की विशिष्ट जलवायु और समुद्र संबंधी परिस्थितियाँ, जिनमें मानसूनी परिसंचरण तथा आकस्मिक मौसमी पवनों के परिवर्तन शामिल हैं, इन द्वैत चक्रवाती मौसमों में योगदान करते हैं।
- मानसून-पूर्व चक्रवाती मौसम में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों में ऊष्मा एवं बढ़े हुए संवहन के कारण चक्रवात की व्युत्पत्ति हो सकती है।
- मानसून-पश्चात् चक्रवाती मौसम (अक्तूबर-दिसंबर) में पूर्वोत्तर मानसून और शुष्क महाद्वीपीय पवनें अरब सागर को ठंडा कर देती है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना कम हो जाती है, जबकि बंगाल की खाड़ी चक्रवातों के लिये अधिक अनुकूल रहती है।
- हालाँकि जलवायु परिवर्तन हिंद महासागर में चक्रवातों के स्वरूप और प्रबलता को परिवर्तित कर रहा है।
नोट:
अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में चक्रवात की घटना कम होती है, क्योंकि यहाँ ऊर्ध्वाधर पवन का बहाव अधिक होता है और संवहनीय गतिविधि कम होती है।
- मानसून से पूर्व तेज़ी से उष्मीय प्रभाव के बावजूद, मानसून के दौरान शीत और लगातार निम्न तापमान चक्रवाती गतिविधि को कम करते हैं।
- हाल ही में उष्मीय प्रवृत्ति दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करती है, लेकिन अरब सागर में चक्रवाती सक्रियता कम होती है।
जलवायु परिवर्तन हिंद महासागर को किस प्रकार प्रभावित करता है?
- तीव्र उष्मीयता: जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर तीव्रता से गर्म हो रहा है। प्रशांत महासागर में बढ़ती उष्मीयता और दक्षिणी महासागर से आने वाली गर्म जलधारा इस प्रवृत्ति में योगदान करती है।
- वैश्विक जलवायु परिवर्तनों से प्रेरित वायुमंडलीय पवनों तथा आर्द्रता में परिवर्तन, हिंद महासागर की उष्मीयता को और तीव्र करते हैं।
- वैश्विक प्रभाव: महासागर की तीव्र उष्मीयता के कारण प्रशांत महासागर की ऊष्मा अवशोषी क्षमता और उत्तरी अटलांटिक महासागर में भारी जल के निक्षेपण (डूबोने की क्षमता) प्रभावित हो रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन के दौरान महासागरों के गर्म होने के लिये हिंद महासागर एक समाशोधन गृह (क्लियरिंग हाउस) की तरह कार्य कर रहा है (यह वैश्विक जलवायु परिवर्तनशीलता को नियंत्रित करता है और समग्र ताप संतुलन में योगदान देता है)।
- साइक्लोजेनेसिस प्रभाव: तीव्र तापमान वृद्धि और उससे संबंधित जलवायु परिवर्तन चक्रवात निर्माण, आवृत्ति एवं व्यवहार को प्रभावित करते हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रति क्षेत्र की अद्वितीय प्रतिक्रिया को उजागर करता है।
चक्रवात असना
- वर्ष 1981 के बाद से अगस्त माह में उत्तरी हिंद महासागर में आने वाला पहला चक्रवात होने के नाते, चक्रवात असना एक दुर्लभ चक्रवात है, जिसने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है।
- असना नाम, जिसका अर्थ है "स्वीकार किया जाने वाला या प्रशंसा योग्य", पाकिस्तान द्वारा दिया गया है।
- मज़बूत भूमि-आधारित निम्न दबाव प्रणालियाँ आमतौर पर असना जैसे चक्रवातों का स्रोत होती हैं, जो बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनते हैं और भारत में मूसलाधार मानसूनी वर्षा करते हैं।
- यह प्रणाली गर्म अरब सागर में प्रवेश करने पर चक्रवात में परिवर्तित हो गई, जिसे भूमंडलीय ऊष्मीकरण एवं क्षेत्रीय मौसम पैटर्न ने बढ़ावा दिया, जिससे असना को तीव्र होने के लिये आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हुई, लेकिन अंततः चक्रवात के परिसंचरण में प्रवेश करने वाली शुष्क रेगिस्तानी हवा के कारण यह समाप्त हो गई।
- जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर में चक्रवातों की संभावना अधिक अप्रत्याशित हो रही है, वैश्विक तापमान वृद्धि, अल-नीनो और जल के अंदर ज्वालामुखी विस्फोट जैसे कारक भारत में चरम मौसम की घटनाओं में योगदान दे रहे हैं, जहाँ अप्रत्याशित वर्षा प्रणाली के कारण मानसूनी तीव्रता द्वारा अनियमित होता जा रहा है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. उत्तर हिंद महासागर में चक्रवात निर्माण में योगदान करने वाले कारकों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की व्याख्या कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसका क्या कारण है? (2015) (a) समुद्री पृष्ठों के ताप निम्न होते हैं उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवात मुख्यतः दक्षिण चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही सीमित रहते हैं। क्यों? (2014) |