नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु संयुक्त राष्ट्र की योजना | 20 May 2022
प्रिलिम्स के लिये:अक्षय ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण उपाय, संयुक्त राष्ट्र, ग्रीनहाउस गैसें मेन्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा की भविष्य की संभावना, भारत सरकार की योजना एवं नीति, संबद्ध चुनौती और चिंता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया कि ग्रीनहाउस गैस सांद्रता, समुद्र में उच्च तापमान, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और समुद्र के अम्लीकरण ने पिछले वर्ष नए रिकॉर्ड बनाए हैं।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, चरम मौसमी घटनाओं के कारण मृत्यु, बीमारी, प्रवास और आर्थिक नुकसान की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2020 तक चरम मौसम की घटनाओं में दोगुनी वृद्धि हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये पांँच सूत्री योजना शुरू की है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का आग्रह:
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिये बौद्धिक संपदा सुरक्षा बढ़ाने का समर्थन किया।
- नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के लिये आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार किया जाना चाहिये, क्योंकि ये कुछ विकसित देशों के हाथों में ही केंद्रित हैं,जबकि वर्तमान में उच्च स्तर के प्रदूषण की घटनाएँ बढ़ रही हैं जिसके नकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने राज्यों से आग्रह किया कि वे अपनी ऊर्जा मांग और आपूर्ति को ऐसे तरीकों से पुनर्गठित करें जो नवीकरणीय ऊर्जा के पक्ष में हों ताकि सौर एवं पवन परियोजनाओं को गति प्रदान की जा सके।
- राज्यों द्वारा जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को हटा दिया जाना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश को सालाना कम-से-कम 4 ट्रिलियन डॉलर बढ़ने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।
जीवाश्म ईंधन से बचाव:
- जीवाश्म ईंधन के जलने से खतरनाक रसायन जैसे-सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें वातावरण में उत्सर्जित होती हैं।
- सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा करते हैं: पानी में SO2 एवं NO2 के त्वरित विघटन के परिणामस्वरूप अम्लीय वर्षा होती है।
- प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम किया जाना चाहिये और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- ज़ीवाश्म ईंधन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की घटनाओं में वृद्धि करता है जो अंततः चरम मौसमी घटनाओं की ओर ले जाता है।
- ज़ीवाश्म ईंधन निष्कर्षण ने मुख्य निष्कर्षण स्थल के अलावा सड़कों, पाइपलाइनों, प्रसंस्करण सुविधाओं और अपशिष्ट भंडारण जैसे बुनियादी ढांँचे की स्थापना के लिये भूमि के बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया।
स्टेट ऑफ द क्लाइमेट रिपोर्ट 2021:
- परिचय:
- स्टेट ऑफ द क्लाइमेट रिपोर्ट, 2021 विश्व मौसम विभाग द्वारा प्रकाशित की गई है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- वर्ष 2021 में तापमान पूर्व-औद्योगिक काल (वर्ष 1850-1900) के औसत की तुलना में 1.11 (±0.13 °C) डिग्री सेल्सियस अधिक आंँका गया है।
- वर्ष 2015 से 2021 तक के पिछले सात वर्षों ने अब तक के सर्वाधिक गर्म वर्ष होने का रिकॉर्ड बनाया है।
- औसत समुद्री जल स्तर वर्ष 2021 में रिकॉर्ड ऊंँचाई पर पहुंँच गया। वर्ष 2013-2021 की अवधि में यह औसतन 4.5 मिलिमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है।
- संघर्ष, चरम मौसमी घटनाओं तथा कोविड-19 महामारी और आर्थिक झटकों के मिश्रित प्रभाव ने विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा में सुधार की दिशा में दशकों की प्रगति को कमज़ोर कर दिया।
- जीवाश्म ईंधन के दहन में निरंतर वृद्धि के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ रही है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर चरम मौसमी घटनाओं में शामिल हैं:
- तूफान या चक्रवात: तेज़ हवा, भारी बारिश।
- धूल भरी आंँधी: तेज़ हवाएंँ, शुष्क परिस्थितियाँ।
- बाढ़: भारी बारिश।
- ओलावृष्टि: ठंडा या गर्म तापमान, बारिश, बर्फ।
- बर्फीला तूफ़ान: बर्फीली बारिश।
- बवंडर: बादल, तेज़ हवा, बारिश, ओले।
- बर्फीला तूफ़ान: भारी बर्फ, बर्फ, ठंडा तापमान।
- जोखिम और प्रभाव:
- खाद्य सुरक्षा चुनौतियांँ:
- कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई, वर्ष 2019 के 650 मिलियन लोगों से बढ़कर यह संख्या वर्ष 2020 में 768 मिलियन हो गई।
- ग्लोबल वार्मिंग ने कम विकसित देशों में खाद्य असुरक्षा के मुद्दों को बढ़ा दिया है।
- मानवीय प्रभाव और जनसंख्या विस्थापन:
- शरणार्थी, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग तथा राज्यविहीन लोग अक्सर जलवायु और मौसम संबंधी खतरों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
- बहुत से कमज़ोर व्यक्ति जो विस्थापित हो जाते हैं, वे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बस जाते हैं, जहाँ वे कई बार जलवायु और मौसम संबंधी खतरों के संपर्क में आते रहते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु प्रभाव:
- पारिस्थितिक तंत्र एक अभूतपूर्व दर से गिरावट दर्ज कर रहा है, मानव कल्याण संबंधी नीतियाँ उनकी क्षमता को सीमित कर रही हैं और उन्हें लचीला बनाने के लिये उनकी अनुकूली क्षमता को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जलवायु संवेदनशील प्रजातियों पर भी पड़ रहा है। इस बात के प्रमाण हैं कि तापमान के प्रति संवेदनशील पौधों में वसंत ऋतु से पहले ही पत्तियों का आना शुरू हो जाता है और बाद में शरद ऋतु में वे अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं
- खाद्य सुरक्षा चुनौतियांँ:
कमियाँ:
- स्वच्छ ऊर्जा सस्ता स्रोत नहीं है: यदि हम शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें पहले अक्षय ऊर्जा को मध्यम आय वाले और गरीब देशों के लिये सस्ता बनाना होगा।
- अमेज़न, अफ्रीका और दक्षिणी एशिया जैसे क्षेत्रों में कार्बन डाइऑक्साइड का त्वरित संचय।
- कार्बन कटौती की प्रतिबद्धता राष्ट्रों द्वारा हासिल नहीं की जाती है। भारत को छोड़कर अन्य राष्ट्र स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु बैठक में ली गई कार्बन कटौती प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।
आगे की राह
- क्षेत्रों की पहचान: अक्षय संसाधन विशेष रूप से वायु हर जगह स्थापित नहीं की जा सकती, उन्हें विशिष्ट स्थान की आवश्यकता होती है।
- इन विशिष्ट स्थानों की पहचान, उन्हें मुख्य ग्रिड के साथ एकीकृत करना और शक्तियों का वितरण- इन तीनों का संयोजन ही भारत को आगे ले जाएगा।
- जीवाश्म ईंधन सब्सिडी: यह सुनिश्चित करने के लिये कि केवल आवश्यक मात्रा में ऊर्जा की खपत हो, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में सुधार किया जाना चाहिये।
- अक्षय ऊर्जा उत्पादन में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?(2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: C व्याख्या:
प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: D
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