भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह | 12 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:UNMOGIP, यूएनएससी, यूएनसीआईपी, कराची समझौता, शिमला समझौता। मेन्स के लिये:UNMOGIP पर विवाद का मुद्दाा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अर्जेंटीना के रियर एडमिरल गुइलेर्मो पाब्लो रियोस को भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) के मिशन प्रमुख और मुख्य सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया है।
संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP):
- इसकी स्थापना जनवरी 1949 में हुई थी।
- कश्मीर में प्रथम युद्ध (1947-1948) के बाद, भारत ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का ध्यान आकर्षित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से संपर्क किया।
- इसी क्रम में जनवरी 1948 में, UNSC ने विवाद की जाँच और मध्यस्थता हेतु भारत और पाकिस्तान (UNCIP) के लिये तीन सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आयोग की स्थापना करते हुए, संकल्प 39 को अपनाया।
- अप्रैल 1948 में, इसके संकल्प 47 द्वारा, UNCIP को UNMOGIP के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह के कार्य:
- जुलाई 1949 के कराची समझौते ने संयुक्त राष्ट्र स्तर के सैन्य पर्यवेक्षकों की भूमिका को मज़बूत किया और जम्मू और कश्मीर में स्थापित युद्धविराम रेखा के पर्यवेक्षण की अनुमति दी।
- वर्ष 1948 में UNCIP की देखरेख में पहले भारत-पाक सशस्त्र संघर्ष के बाद, पाकिस्तान और भारत दोनों के सैन्य प्रतिनिधियों ने कराची में मुलाकात की और 27 जुलाई 1949 को कराची समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इसने कश्मीर में एक संघर्ष-विराम रेखा (CFL) की स्थापना की।
- युद्धविराम की निगरानी हेतु UNMOGIP के पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (PAK) में छह फील्ड स्टेशन और भारतीय प्रशासित कश्मीर (IAK) में चार फील्ड स्टेशन हैं।
- UNMOGIP 17 दिसंबर, 1971 के युद्धविराम समझौते के सख्त पालन से संबंधित घटनाओं का निरीक्षण करने और संयुक्त राष्ट्र महासचिव को रिपोर्ट करने के लिये इस क्षेत्र में बना हुआ है।
UNMOGIP भारत के लिये विवादास्पद
- भारत आधिकारिक तौर पर कहता है कि UNMOGIP की भूमिका वर्ष 1972 के शिमला समझौते से आगे निकल गई है जिसने नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना की थी।
- शिमला समझौते में भारत और पाकिस्तान युद्धविराम रेखा को नियंत्रित करने और किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के बिना अपने विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल करने के लिये सहमत हुए।
- कश्मीर और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद अब काफी हद तक भारत का आंतरिक मामला है।
- वर्ष 1972 के बाद से भारत पाकिस्तान के खिलाफ शिकायतों के साथ UNMOGIP में नहीं गया है।
- वर्ष 2014 में भारत ने अनुरोध किया कि UNMOGIP कश्मीर में संचालन बंद कर दे और विदेश मंत्रालय (MEA) ने वर्ष 2017 में दोहराया कि UNMOGIP के पास कश्मीर की स्थिति की निगरानी करने का कोई अधिकार नहीं है।
- दूसरी ओर पाकिस्तान भारतीय तर्क को स्वीकार नहीं करता है और UNMOGIP से सहयोग चाहता है।
- इन भिन्न नीतियों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने UNMOGIP के पास कथित भारतीय संघर्ष विराम उल्लंघनों के खिलाफ शिकायतें दर्ज करना जारी रखा है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 47
- परिचय:
- यह कश्मीर विवाद के समाधान से संबंधित है।
- इसके अनुसार, पाकिस्तान को अपने उन नागरिकों को वापस लेना था जो लड़ाई के उद्देश्य से और भविष्य में घुसपैठ को रोकने के लिये राज्य में प्रवेश कर चुके थे।
- इस प्रस्ताव के माध्यम से पुनर्गठित पाँच सदस्यीय UNMOGIP ने भारत और पाकिस्तान से कानून व्यवस्था की बहाली के बाद जनमत संग्रह कराने का आग्रह किया।
- भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) का उद्देश्य कराची समझौते के तहत जुलाई 1949 में जम्मू-कश्मीर में स्थापित संघर्ष विराम रेखा (CFL) की निगरानी करना था।
- UNMOGIP को UN के नियमित बजट के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
- भारत ने प्रस्ताव 47 को नकार दिया।
- भारत का तर्क था कि प्रस्ताव में पाकिस्तान द्वारा किये गए सैन्य आक्रमण को नज़रअंदाज़ किया गया, साथ ही दोनों देशों को एक समान राजनयिक आधार पर रखना पाकिस्तान के आक्रामक रवैये को खारिज़ करता है।
- कश्मीर के महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित विलय पत्र (IoA) को प्रस्ताव में नज़रअंदाज कर दिया गया था।
- संकल्प 47 पर पाकिस्तान का रुख:
- इसने कश्मीर में भारतीय बलों की न्यूनतम उपस्थिति पर भी आपत्ति जताई, जैसा कि संकल्प द्वारा अनिवार्य है।
- यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में प्रभावी पार्टी के लिये राज्य सरकार में समान प्रतिनिधित्व चाहता था।