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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु आपदाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र निधि अपर्याप्त: ऑक्सफैम

  • 11 Jun 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:  

ऑक्सफैम इंटरनेशनल, जलवायु वित्त, पक्षकारों का सम्मेलन। 

मेन्स के लिये:  

ऑक्सफैम इंटरनेशनल रिपोर्ट ऑन क्लाइमेट फाइनेंस। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र को जलवायु संबंधी आपदाओं (सूखा, बाढ़ या वनाग्नि) के दौरान निम्न आय वाले देशों को मानवीय सहायता प्रदान करने में सक्षम होने के लिये 20 वर्ष पहले की तुलना में आठ गुना अधिक जलवायु वित्त की आवश्यकता है। 

ऑक्सफैम इंटरनेशनल: 

  • ऑक्सफैम इंटरनेशनल का गठन वर्ष 1995 में हुआ था जो स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों का एक समूह है। 
  • "ऑक्सफैम" नाम ब्रिटेन में वर्ष 1942 में स्थापित ‘अकाल राहत के लिये ऑक्सफोर्ड सहायता समिति’ (Oxford Committee for Famine Relief) से लिया गया है। 
    • इस समूह ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ग्रीस में भूख से पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिये भोजन की आपूर्ति हेतु अभियान चलाया। 
  • इसका उद्देश्य वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये कार्य क्षमता को बढ़ाना है। 
  • ऑक्सफैम का अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय नैरोबी (केन्या) में स्थित है। 

िष्कर्ष: 

  • वर्ष 2000-02 तकं संयुक्त राष्ट्र ने मानवीय सहायता के रूप 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अपील की थी तथा वर्ष 2019-2021 तक की गई अपील राशि औसतन 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई जो अभूतपूर्व 819% वृद्धि को दर्शाता है।  
  • धनी देशों द्वारा पिछले पाँच वर्षों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई अपील की 54% की पूर्ति की गई है, जिससे इन देशों को 28-33 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा हुआ है। 
  • निम्न आय वाले देशों में लोग जलवायु से संबंधित आपदाओं के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, चाहे वह सूखा, बाढ़ या वनाग्नि कुछ भी हो, क्योंकि ये आपदाएँ गरीबी एवं मौत के आँकड़ों को और अधिक प्रभावित करती हैंं। 
  • भारी वित्तीय बोझ के अलावा जलवायु संकट के कारण होने वाली क्षति में स्वास्थ्य, जैव विविधता एवं स्वदेशी ज्ञान की हानि, लिंग संबंधी मुद्दे तथा अन्य संबंधित कारक शामिल हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र को मानवीय सहायता के लिये आवश्यक प्रत्येक 2 अमेरिकी डॉलर की तुलना में अमीर देश केवल 1 अमेरिकी डॉलर ही प्रदान करते हैं। 
  • यह इस तथ्य के बावजूद है कि पृथ्वी पर 1% सबसे अमीर लोग ही सबसे गरीब लोगों की तुलना में दोगुना कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं। 
  • अफगानिस्तान, बुर्किना फासो, बुरुंडी, चाड, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, हैती, केन्या, नाइज़र, सोमालिया, दक्षिण सूडान और जिम्बाब्वे उन दस देशों में शामिल हैं, जिन्हें जलवायु वित्त की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। 
  • अमीर लोग जलवायु जोखिमों से कम प्रभावित होते हैं और मौसमी आपदाओं से सुरक्षा के मामले सक्षम होते हैं। वे अधिक सुरक्षित स्थानों पर रहते हैं और उनके पास इन सब से बचाव के लिये अधिक संपत्ति होती है। गरीब लोगों के पास कम सुरक्षा होती है, इसलिये उन्हें अधिक नुकसान उठाना पड़ता है, जो समय के साथ बढ़ता जाता है। 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक नुकसान और क्षति की आर्थिक लागत 290-580 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा तक बढ़ जाएगी। 

अनुशंसाएँ: 

  • जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और उसकी लागत का भुगतान ज़िम्मेदारी के आधार पर होना चाहिये न कि चैरिटी के आधार पर। 
  • अमीर देशों, अमीर लोगों और बड़े निगमों जिन्हें जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये, को इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये भुगतान करना चहिये। 
  • अमीर देशों से वित्त के नवीन स्रोतों को आकर्षित करने के लिये एक सुविधा की स्थापना की आवश्यकता है, जिसे वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) में पार्टियों के 26वें सम्मेलन (CoP26) में विकसित देशों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। 
  • CoP27 में सरकारों को नुकसान और क्षतिपूरक वित्त को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के वैश्विक भंडार स्रोत का एक मुख्य तत्त्व बनाने के लिये सहमत होना चाहिये। 

जलवायु वित्त: 

  • परिचय: 
    • जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो। यह ऐसे शमन एवं अनुकूलन कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे। 
      • न्यूनीकरण के लिये जलवायु वित्त की आवश्यकता है, क्योंकि उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने हेतु बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। 
      • यह अनुकूलन के लिये भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल होने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। 

जलवायु वित्त के सिद्धांत:  

  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: 
    • 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' का आशय आमतौर पर एक स्वीकृत प्रथा है, जिसके अनुसार प्रदूषण उत्पन्न करने वालों को मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने हेतु इसे प्रबंधित करने की लागत वहन करनी चाहिये। 
    • यह सिद्धांत भूमि, जल और वायु को प्रभावित करने वाले प्रदूषण के अधिकांश विनियमन को मज़बूती प्रदान करता है जिसे औपचारिक रूप से वर्ष 1992 के रियो घोषणा के रूप में जाना जाता है। 
    • इसे विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये भी लागू किया गया है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनते हैं। 
  • समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व तथा संबंधित क्षमताएँ (CBDR–RC): 
  • अतिरिक्त जलवायु वित्त आवश्यक: 
    • जलवायु परिवर्तन गतिविधियों के लिये विकास की ज़रूरतों हेतु धन के विचलन से बचने के लिये मौजूदा प्रतिबद्धताओं के लिये अतिरिक्त जलवायु वित्त होना चाहिये। 
    • इसमें सार्वजनिक जलवायु वित्त का उपयोग और निजी क्षेत्र द्वारा निवेश शामिल हैं। 
  • पर्याप्तता और सावधानी:  
    • UNFCCC के तहत घोषित लक्ष्य के रूप में जलवायु परिवर्तन के कारणों को रोकने या कम करने हेतु एहतियाती उपाय करने, वैश्विक तापमान को यथासंभव सीमा के भीतर रखने हेतु पर्याप्त कोष का होना ज़रूरी है। 
    • आवश्यक जलवायु निधियों से राष्ट्रीय अनुमानों में पर्याप्तता का एक बेहतर स्तर प्राप्त किया जा सकता है, इससे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) के संबंध में नियोजित निवेश में मदद मिलेगी। 
  • पूर्वानुमान: 
    • जलवायु वित्त के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये जलवायु वित्त पूर्वानुमान योग्य होना चाहिये। 
    • यह कार्य बहु-वर्षीय, मध्यम अवधि के वित्तपोषण चक्र (3-5 वर्ष) के माध्यम से किया जा सकता है। 
    • यह देश के राष्ट्रीय अनुकूलन और शमन प्राथमिकताओं को बढ़ाने के लिये पर्याप्त निवेश कार्यक्रम की अनुमति देता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ  

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