तिब्बत-चीन विवाद और अमेरिका | 10 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

तिब्बत, चीन, तिब्बत-चीन विवाद 

मेन्स के लिये

अमेरिका-चीन संघर्ष का हालिया घटनाक्रम, तिब्बत और भारत-चीन संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने कुछ विशिष्ट अमेरिकी नागरिकों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, गौरतलब है कि इससे पूर्व अमेरिका ने भी चीन के कुछ अधिकारियों पर तिब्बत के विषय को लेकर वीज़ा प्रतिबंध की घोषणा की थी।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में घोषणा करते हुए चीन ने कहा कि यह वीज़ा प्रतिबंध उन अमेरिकी अधिकारियों पर लागू किये जाएंगे, जिन्होंने तिब्बत से संबंधित मुद्दों पर उचित व्यवहार नहीं किया है।
  • अमेरिकी अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंध अधिरोपित करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने ‘अमेरिका से तिब्बत के माध्यम से चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का आग्रह किया है।’

चीन के अधिकारियों पर अमेरिकी प्रतिबंध

  • चीन के वीज़ा प्रतिबंधों से पूर्व अमेरिका ने भी चीन के उन अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंधों की घोषणा की थी, जो तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल हैं और जो अमेरिकी राजनयिकों, पत्रकारों और पर्यटकों को तिब्बत में प्रवेश करने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
  • हालाँकि अभी तक अमेरिका के विदेश विभाग ने अमेरिकी गोपनीयता कानूनों का हवाला देते हुए चीन के उन अधिकारियों के नाम की घोषणा नहीं की है, जो अमेरिका के नए वीज़ा प्रतिबंधों से प्रभावित होंगे।
  • अमेरिका के प्रतिबंधों को लेकर चीन का कहना है कि तिब्बत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु के कारण चीन वहाँ आने वाले आगंतुकों पर कुछ विशिष्ट प्रकार के ‘सुरक्षात्मक उपाय’ लागू करता है।
  • ध्यातव्य है कि अमेरिका काफी लंबे समय से चीन पर इस प्रकार के प्रतिबंध अधिरोपित करता रहा है, इससे पूर्व अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के उल्लंघन और लाखों उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न के मुद्दे पर भी चीन पर कार्रवाई की थी।

वीज़ा प्रतिबंधों के निहितार्थ

  • तिब्बत की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य कर रहीं विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने अमेरिका के कदम की सराहना की है और इस कदम को तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया है।
  • अमेरिका और चीन दोनों ही देशों के वीज़ा प्रतिबंध ऐसे समय में आए हैं जब दोनों देशों के बीच पहले से ही व्यापार, तकनीक, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और हॉन्गकॉन्ग जैसे मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है।
  • ऐसे में यह कदम दोनों देशों के बीच तनाव को और अधिक बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
  • कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बाद से ही अमेरिका और चीन के संबंध अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गए हैं, क्योंकि चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस (COVID-19) ने अमेरिका को सबसे अधिक प्रभावित किया है।

तिब्बत के संबंध में अमेरिका का पक्ष

  • गौरतलब है कि अमेरिका सदैव ही तिब्बत के लिये अधिक स्वायत्तता का पक्षधर रहा है, हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रमुख माइक पोम्पियी ने कहा था कि ‘अमेरिका तिब्बती लोगों के मौलिक अधिकारों का समर्थन करता है।
  • ध्यातव्य है कि इसी वर्ष मई माह में अमेरिका ने चीन से तिब्बती बौद्ध धर्म के 11वें ‘पंचेन लामा' (Panchen Lama) को छोड़ने का आग्रह किया था, जिन्हें चीनी अधिकारियों द्वारा वर्ष 1995 में मात्र 6 वर्ष की उम्र में कैद कर लिया गया था।

चीन-तिब्बत विवाद

  • चीन-तिब्बत संघर्ष को अक्सर एक जातीय और धार्मिक संघर्ष के रूप में देखा जाता है। विभिन्न विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐतिहासिक रूप से तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर अलग-अलग विचार चीन-तिब्बत संघर्ष का प्रमुख कारण है।
  • जहाँ एक ओर तिब्बत के लोग मानते हैं कि बीती कई शताब्दियों में तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित रहा है, वहीं चीन का मानना है कि तिब्बत लगभग 18वीं शताब्दी में चीन के आधिपत्य में आया और 19वीं सदी के उतरार्द्ध में तब तक चीनी प्रशासन के अधीन रहा, जब तक ब्रिटेन ने तिब्बत पर आक्रमण नहीं कर दिया।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1912 से लेकर वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region-TAR) पर नियंत्रण नहीं किया था।
  • वर्ष 1950 में नवगठित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए अपनी सीमाओं पुनः स्थापित करने के प्रयास शुरू किये।
  • वर्ष 1951 में तिब्बत सरकार को औपचारिक रूप से तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देने वाले 17-बिंदु समझौते (Seventeen Point Agreement) पर हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर किया गया और चीन ने इस क्षेत्र पर अपनी सत्ता स्थापित कर दी।
    • तिब्बती लोग तथा अन्य टिप्पणीकार चीन द्वारा किये गए इस कृत्य को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में वर्णित करते हैं।
  • तिब्बत वासियों ने मार्च 1959 में चीन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया, किंतु वे इस कार्य में असफल रहे।
  • चीन ने 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह को कुचल दिया, जिसने आध्यात्मिक नेता, दलाई लामा और 80,000 से अधिक तिब्बतियों को भारत और अन्य देशों में निर्वासित होना पड़ा।
    • एक अनुमान के अनुसार, मार्च 1959 में तिब्बती विद्रोह के दौरान चीन की सेना ने 10 हज़ार से भी अधिक लोगों को बुरी तरह से मार दिया था।

विद्रोह का परिणाम 

  • वर्ष 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह के पश्चात् चीन की सरकार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती गई और तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है, इस क्षेत्र में अभी भी चीन की मनमानी जारी है।
  • वर्तमान में भी तिब्बत को समय-समय पर अशांति का सामना करना पड़ता है।

तिब्बत 

  • तिब्बत चीन के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और भारत, नेपाल, म्याँमार (बर्मा) तथा भूटान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
  • तिब्बत एशिया में तिब्बती पठार पर स्थित एक क्षेत्र है, जो लगभग 24 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है और यह चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।

Tibet

स्रोत: द हिंदू