रानी रुद्रमा देवी की मूर्तियाँ और उससे जुड़े पक्ष | 06 Dec 2017
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में तेलंगाना के वारंगल ज़िले के बोलीकुंटा (Bollikunta) गाँव से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग (Archaeological Survey of India - ASI) द्वारा दक्षिण भारत की मध्ययुगीन वीरांगना रानी रुद्रमा देवी (शासनकाल 1262–89 A.D.) की ग्रेनाइट से बनी दो मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। संभवतः इस खोज से रानी की मौत के पीछे का रहस्य उजागर हो सकता है।
मुद्दा क्या है?
- पिछले काफी लंबे समय से यह एक सवाल शोध का विषय रहा है कि 13वीं शताब्दी की साहसी काकतीय रानी (काकतीय वंश 11 से 13 शताब्दी A. D.) का अंत आखिर किस प्रकार हुआ।
- हालाँकि, इससे पहले नलगोंडा ज़िले से प्राप्त हुए एक शिलालेख में रानी के निधन स्थान के रूप में चन्दुपटला (Chandupatla) को चिन्हित किया गया था।
- लेकिन इन दोनों अनुक्रमिक मूर्तियों से प्राप्त जानकरी के अनुसार, उन्होंने एक कायस्थ मुखिया अंबादेव के साथ एक भयंकर लड़ाई में अपना जीवन खोया।
क्षतिग्रस्त अवस्था में पाई गई मूर्तियाँ
- हालाँकि ये दोनों मूर्तियाँ मानवीय उपेक्षा और प्रकृति की अनियमितताओं के कारण बहुत बुरी तरह से क्षतिग्रस्त अवस्था में हैं।
- ये मूर्तियाँ एतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। इससे न केवल उस विशेष समयकाल में घटित घटनाओं के विषय में ( युद्ध, मृत्यु, युद्ध के पश्चात् के जीवन इत्यादि के विषय में) महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होंगी।
मूर्तियों का विवरण
- पहले शिलालेख (एक आयताकार फ्रेम) में शानदार रूप से रानी रुद्रमा देवी के शाही व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व किया गया है, जिसमें घोड़े पर सवार रानी के दाहिने हाथ में तलवार है और बायीं तरफ तलवार लटकी हुई है।
- इसके अतिरिक्त रानी के ऊपर एक राजसी प्रतीक को भी चिन्हित किया गया है
- उन्होंने पुरुष योद्धा की भाँति वस्त्र धारण किये हुए है, जिसमें कमर पर बेल्ट बँधी हुई है तथा दाहिना पैर पेडल पर लटका हुआ है।
- इसके अतिरिक्त घोड़े के शरीर के आसपास एक सजा हुआ पट्टा बँधा हुआ है।
- दूसरे शिलालेख में (ऊर्ध्वाधर फ्रेम) में पूरी तरह से थकी हुई रुद्रामा देवी को चित्रित किया गया है।
- उसके दाएँ हाथ में तलवार है और उसके बाएँ हाथ में लगाम है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस स्थिति में भी घोड़े खड़े हुए हैं, परंतु उनके ऊपर सजी हुई पट्टियाँ यहाँ दिखाई नहीं दे रही हैं।
- इसके अलावा, शाही प्रतीक चिन्ह जो पहली मूर्ति में उनके ऊपर चिन्हित है, दूसरे शिलालेख में वह अनुपस्थित है, जो इस बात का प्रतीक है कि युद्ध में उसकी पराजय हुई है।
- इसके अतिरिक्त अनन्त संसार की अंतिम यात्रा को दर्शाने वाले प्रतीक चिन्हों के आधार पर एक भैंस, फ्रेम के निचले हिस्से में यम (मौत का भगवान) के वाहन को दक्षिण दिशा की ओर रुख किये हुए दर्शाया गया है।
रानी रुद्रमा देवी कौन थी?
- रुद्रमा देवी वारंगल के काकतीय वंश की रानी थी। इनका जन्म गणपति देव के यहाँ हुआ था।
- राजा गणपति के कोई पुत्र नहीं था इसलिये पिता की मृत्यु के पश्चात् रुद्रमा देवी ने शासन किया। जब इन्होने शासन संभाला उस समय वह मात्र 14 वर्ष की थी।
- उन्हें वारंगल के किले को पूरा करने, तेलंगाना में सिंचाई टैंक प्रणाली की श्रृंखला को शुरू करने, अस्पतालों की स्थापना करने और सैनिकों के प्रशिक्षण हेतु पेरीनी शिव तांडवम (Perini Shiva Tandavam) नृत्य कला का इस्तेमाल करने का श्रेय दिया जाता है।