नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

कछुआ पुनर्वास केंद्र

  • 07 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कछुआ पुनर्वास केंद्र, जलीय पारिस्थितिक तंत्र, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, भारतीय वन्यजीव संस्थान, ट्रैफिक इंडिया

मेन्स के लिये:

कछुओं का जलीय पारितंत्र में योगदान, जीव-जंतुओं से संबंधित खतरे, कछुओं की संख्या में कमी का कारण, जीव-जंतुओं के शिकार एवं व्यापार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

जनवरी, 2020 में बिहार के भागलपुर वन प्रभाग में कछुओं के लिये पहले पुनर्वास केंद्र का उद्घाटन किये जाने की योजना है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह पुनर्वास केंद्र मीठे पानी (Fresh Water) में रहने वाले कछुओं के पुनर्वास के लिये बनाया जा रहा इस तरह का पहला केंद्र है।
  • यह पुनर्वास केंद्र लगभग आधे एकड़ भूमि में फैला है तथा एक समय में लगभग 500 कछुओं को आश्रय देने में सक्षम होगा।
  • वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, बचाव दल द्वारा तस्करों से बचाए जाने के दौरान कई कछुओं के गंभीर रूप से घायल, बीमार एवं मृत पाए जाने के बाद इस तरह के केंद्र के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई।
  • यह केंद्र कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में वापस भेजने से पहले उनके समुचित रखरखाव के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। गौरतलब है कि बचाव अभियान के दौरान पाया गया कि तस्करों द्वारा कछुओं को निर्दयता पूर्वक उनके पैर बाँधकर रखा गया था या भोजन के रूप में पकाने के लिये प्रेशर कुकर में रखा गया था।
  • पूर्व में बचाए गए कछुओं को पुनर्वास केंद्र की सुविधा के अभाव में बिना किसी उपचार के नदियों में छोड़ दिया जाता था।
  • वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, विभाग पहले नदियों में छोड़े गए कछुओं पर नज़र रखने में सक्षम नहीं था लेकिन अब उन्हें प्राकृतिक आवास में छोड़े जाने से पहले उनकी उचित निगरानी की जाएगी।

पुनर्वास केंद्र को भागलपुर या पूर्वी बिहार में बनाए जाने का कारण

  • भागलपुर में गंगा नदी में पानी का प्रवाह पर्याप्त है। इसके अलावा नदी के बीच में कई बालू के टीले (Sand Banks) हैं जिसके कारण यह क्षेत्र कछुओं के लिये आदर्श प्रजनन क्षेत्र है। इसी कारण यह क्षेत्र पुनर्वास केंद्र स्थापित करने हेतु उपयुक्त है।
  • पूर्वी बिहार में पाए जाने वाले कछुए आकार में काफी बड़े होते हैं। ध्यातव्य है कि यहां लगभग 15 किलोग्राम तक के कछुए पाए जाते हैं।

कछुओं का जलीय पारिस्थितिक तंत्र में योगदान

  • कछुए नदी से मृत कार्बनिक पदार्थों एवं रोगग्रस्त मछलियों की सफाई करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • कछुए जलीय पारितंत्र में शिकारी मछलियों तथा जलीय पादपों एवं खरपतवारों की मात्रा को नियंत्रित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • इन्हें स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के संकेतक के रूप में भी वर्णित किया जाता है।

कछुओं की संख्या में कमी का कारण

  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और भारतीय वन्यजीव संस्थान की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, बांधों और बैराज, प्रदूषण, अवैध शिकार, मछली पकड़ने के जाल में फँसने, उनके घोंसले नष्ट होने के खतरों तथा आवास के विखंडन और नुकसान के कारण कछुओं के जीवन पर खतरा बना रहता है।
  • कछुओं का शिकार किये जाने के दो मुख्य कारण हैं- भोजन के रूप में उपयोग और इनका बढ़ता व्यापार।
  • समाज में एक प्रचलित धारणा कि इनका माँस शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है और शरीर को विभिन्न बीमारियों से दूर रखता है, के कारण भी कछुओं का शिकार किया जाता है। गौरतलब है कि सॉफ्ट-शेल कछुए इसी धारणा के शिकार हैं।
  • दूसरी ओर, हार्ड शेल और विशेष रूप से चित्तीदार कछुओं को भी व्यापार के लिये पकड़ा जाता है। ध्यातव्य है कि ऐसे कछुओं की दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन और जापान में अत्यधिक माँग हैं।
  • ट्रैफिक इंडिया द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 11,000 कछुओं की तस्करी की जा रही है। ध्यातव्य है कि पिछले 10 वर्षों में 110,000 कछुओं का कारोबार किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow