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तुलू भाषा

  • 09 Jan 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

तुलू भाषा

मेन्स के लिये:

संविधान की आठवीं अनुसूची

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में दक्षिण भारत के कर्नाटक और केरल राज्य के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली तुलू भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार फिर तेज़ हो गई है।

मुख्य बिंदु:

  • तुलू (Tulu) एक द्रविड़ भाषा है, जिसे बोलने-समझने वाले लोग मुख्यतया कर्नाटक के दो तटीय ज़िलों और केरल के कासरागोड ज़िले में रहते हैं।
  • केरल के कासरागोड ज़िले को ‘सप्त भाषा संगम भूमि’ के नाम से भी जाना जाता है, तुलू इन सात भाषाओं में से एक है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, तुलू भाषी (तुलू भाषा बोलने वाले) स्थानीय लोगों की संख्या लगभग 18,46,427 थी।
  • वर्तमान में भारत में तुलू भाषी लोगों की संख्या संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मणिपुरी और संस्कृत भाषी लोगों से अधिक है।
  • तुलू भाषा वर्तमान में दक्षिण भारत के तुलूनाडू क्षेत्र तक ही सीमित है।

Tulu-Language

तुलूनाडू: दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक राज्यों के तुलू बाहुल्य क्षेत्र को तुलूनाडू नाम से भी जाना जाता है। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ और उडूपी ज़िले तथा केरल के कासरागोड ज़िले का पयास्वनी या चंद्रगिरि नदी तक का उत्तरी भाग इस क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मंगलुरु, उडूपी और कासरागोड शहर तुलू सभ्यता के प्रमुख केंद्र हैं।

  • अंग्रेज़ी भाषाविद् रॉबर्ट क्लैडवेल (वर्ष1814-1891) ने अपनी पुस्तक ‘अ कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ द द्रविडियन ऑर साउथ-इंडियन फैमिली ऑफ लैंग्वेजेज़’ (A Comparative Grammar of the Dravidian or South-Indian Family of Languages) में तुलू भाषा को द्रविड़ भाषा परिवार की सबसे विकसित भाषा बताया।

आठवीं अनुसूची:

  • संविधान की आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है।
  • इस सूची में मूल रूप से 14 भाषाओं को स्थान दिया गया था परंतु 8 अन्य भाषाओं को बाद में इस सूची में जोड़ा गया।
  • इस सूची में सिंधी भाषा को वर्ष 1967 में संविधान के 21वें संशोधन अधिनियम और कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली भाषा को वर्ष 1992 में 71वें संशोधन; जबकि बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषा को वर्ष 2003 में संविधान के 92वें संशोधन से इस सूची में जोड़ा गया।

आठवीं अनुसूची में जुड़ने के लाभ:

  • आठवीं अनुसूची में जुड़ने से तुलू भाषा को साहित्य अकादमी से पहचान प्राप्त होगी।
  • तुलू साहित्य का अन्य प्रमाणित भारतीय भाषाओं में अनुवाद होगा।
  • जनप्रतिनिधि संसद तथा विधानसभाओं में तुलू भाषा का आधिकारिक रूप से प्रयोग कर सकेंगे।
  • छात्र परीक्षाओं जैसे-सिविल सेवा परीक्षा आदि में तुलू भाषा का चुनाव कर सकेंगे।

भाषाओं से भेदभाव का आरोप:

कई समुदायों द्वारा सरकार पर अपनी भाषा की अनदेखी करने का आरोप लगाया जाता रहा है।

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, आठवीं अनुसूची में शामिल संस्कृत भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या मात्र 24,821 और मणिपुरी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 17,61,079 थी।
  • जबकि इसी जनगणना में कई अन्य भाषाओं को बोलने वाले लोगों की अधिक संख्या होने के बाद भी इन भाषाओं को अभी तक इस अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है जैसे-
    • भीली अथवा भिलोड़ी (1,04,13,637 भाषा-भाषी)
    • गोंडी/गोंड भाषा (18,60,236 भाषा-भाषी)
    • गारो भाषा (11,45,323 भाषा-भाषी)
    • हो भाषा (14,21,418 भाषा-भाषी)
    • खंदेशी भाषा (18,60,236 भाषा-भाषी)
    • खासी भाषा (14,31,344 भाषा-भाषी) (वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर)

क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण:

  • अनुच्छेद 29: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण के लिये प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद के अनुसार, भारत के किसी क्षेत्र में रहने वाले नागरिक को अलग भाषा, लिपि और सभ्यता अपनाने तथा उसकी रक्षा करने का अधिकार है।

वैश्विक प्रयास:

  • वर्ष 2018 में चीन के चांग्शा (Changsha) शहर में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन- यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization-UNESCO) की Yuelu घोषणा ने अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण को नई ऊर्जा प्रदान की है।
    • इस घोषणा में समाज के समायोजित तथा बहुमुखी विकास में भाषायी विविधता के योगदान को रेखांकित किया गया है साथ ही जनजातीय और अल्पसंख्यक समूहों की सहभागिता सुनिश्चित करने एवं उनकी भाषा व सभ्यता के संरक्षण तथा विकास की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।

आगे की राह:

भारत अपनी विविधता-पूर्ण सभ्यता और अनेकता में एकता के लिये जाना जाता है। वर्तमान में देश की बहुत बड़ी आबादी क्षेत्रीय समूहों के रूप में देश के सुदूर इलाकों में निवास करती है। भाषाओं की राष्ट्रीय पहचान इन समुदायों का आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ इनकी प्रगति में भी सहायक होगी। अतः यूनेस्को की घोषणा को आगे ले जाते हुए भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना देश की समृद्धि के लिये सहायक होगा।

स्रोत: द हिंदू

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