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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आयात शुल्क पर ट्रंप के हस्ताक्षर : वैश्विक व्यापारिक जंग के आसार

  • 16 Mar 2018
  • 9 min read

चर्चा में क्यों
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस्पात के आयात पर 25 प्रतिशत और एल्युमीनियम के आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने संबंधी आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कदम ने समस्त वैश्विक व्यापार को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है।

  • जहाँ अमेरिका के इस कदम से शुरुआती तौर पर चीन से होने वाला आयात प्रभावित होगा, वहीं भारत की भी स्थिति कुछ ख़ास नहीं है। वर्तमान में केवल दो देशों कनाडा और मेक्सिको को ही इससे छूट दी गई है।
  • इस संबंध में जारी आदेशों में स्पष्ट किया गया है कि यदि कनाडा और मेक्सिको के अलावा अन्य कोई देश इस्पात और एल्युमीनियम आयात शुल्क से छूट चाहता है, तो उसे इस संबंध में अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधियों(यूएसटीआर)के साथ बातचीत करनी होगी।

वैश्विक संदर्भ में हिस्सेदारी

  • अमेरिका प्रतिवर्ष तकरीबन 350 लाख टन का आयात करता है, इसमें से नाफ्टा देशों कनाडा और मेक्सिको की हिस्सेदारी तकरीबन 100 लाख टन की है।
  • इसी संदर्भ में अन्य देशों की बात करें तो ज्ञात होता है कि ब्राज़ील और कोरिया की हिस्सेदारी 100 लाख टन की है, जबकि शेष 150 लाख टन के निर्यात में यूरोपीय संघ- जर्मनी, ब्रिटेन और अन्य का स्थान है।

भारतीय संदर्भ में हिस्सेदारी

  • उक्त संदर्भ में बात करें तो भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। भारतीय निर्यात में मात्र 2 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका का है। अत: अमेरिका के इस फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई तात्कालिक प्रभाव नहीं होगा। 
  • भारत अमेरिका का दसवाँ बड़ा निर्यातक देश है। 2011 के बाद से अमेरिका के साथ भारतीय निर्यात में 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • इसके साथ-साथ रूस के इस्पात निर्यात में भी 140 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, हालाँकि इन दोनों की तुलना में चीन के निर्यात में कमी आई है। 

भारतीय संदर्भ में इसका क्या असर होगा?

  • विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के इस फैसले का भारत के धातु उद्योग पर सीधे प्रभाव पड़ने की संभावना कम है। हालाँकि इससे अमेरिका के बाहर वैश्विक बाज़ार में निर्यात किये जाने वाले एल्युमीनियम की मात्रा में अवश्य वृद्धि होगी जिससे भारतीय बाज़ार के प्रभावित होने की संभावना है।
  • 10 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने संबंधी इस कदम से बाज़ार की कीमतें उसी के अनुरूप तय हो जाएंगी और इसका प्रभाव आपूर्ति की ऊँची लागत के तौर पर नज़र आएगा।

वैश्विक स्तर पर होगा प्रभाव

  • अमेरिका का यह फैसला एक व्यापार युद्ध की शुरुआत के रूप में प्रतीत हो रहा है जिसका असर स्पष्ट रूप से वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर परिलक्षित होगा। वैश्विक रेटिंग एजेंसी S&P के अनुसार, इस व्यापारिक युद्ध की स्थिति का प्रभाव अमेरिकी निर्यातकों, वैश्विक व्यापार और वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर पड़ने की पूरी संभावना है।
  • इस तरह के संरक्षणवादी कदमों से वैश्विक व्यापार प्रभावित हो सकता है। 
  • इस संबंध में चीन द्वारा इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इस तरह के कदम उठाने से सामान्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली पर गंभीर असर होगा। 
  • शुल्क  संबंधी ये नियम मसौदे पर हस्ताक्षर होने के 15 दिन बाद अमल में आ जाएंगे, साथ ही आरंभ में कनाडा और मेक्सिको पर इन्हें लागू नहीं किया जाएगा। अमेरिका के इस कदम से उसके प्रमुख व्यापारिक भागीदार यूरोपीय संघ, ब्राजील, जापान, चीन की प्रतिकिया बहुत सकारात्मक प्रतीत नहीं हो रही हैं।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया की बात करें तो चीन और दूसरी आर्थिक शक्तियों की तरफ से इस फैसले के विरुद्ध कदम उठाए जाने की प्रबल आशंका है।
  • जहाँ एक ओर ब्रिटेन ने व्यापार मुद्दों को सुलझाने के लिये अमेरिका के इस कदम को गलत करार दिया है। वहीं, दूसरी ओर जापान ने भी अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क पर खेद व्यक्त किया है। 
  • इस समस्त परिदृश्य के संदर्भ में फिलहाल भारत “देखो और इंतजार करो” की रणनीति पर काम कर रहा है। आने वाले दिनों में भारतीय उत्पादों के मिश्रण में परिवर्तन होने के आसार है, इसका उद्देश्य मात्र यह है कि किसी भी स्थिति में भरतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित होने से बचाया जा सके।
  • हालाँकि यदि गौर से देखा जाए तो हम पाएंगे कि भारत स्वयं में एक बहुत बड़ा ऑटोमोबाइल केंद्र है और यहाँ इस्पात की ज़रूरत हमेशा बनी रहती है। भारत इस्पात उत्पादन की रणनीति पर काम करता है न कि निर्यात आधारित नीति पर।
  • यही कारण है कि विश्व के अन्य देशों की भाँति इस फैसले के बारे में भारतीय विरोध का स्वर अधिक मुखर नहीं है। भारत इस फैसले का सैद्धांतिक रूप में विरोध कर रहा हैं।

भारत को क्या करना चाहिये?

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अपनी अर्थव्यवस्था एवं घरेलू बाज़ार को विदेशी बाज़ार से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से भारत में एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की व्यवस्था पहले से मौजूद है, जो लगभग सभी देशों पर लागू होता है।
  • दक्षिण कोरिया और जापान के साथ भारत मुक्त व्यापार समझौते के तहत आयात-निर्यात करता है, जहाँ शून्य शुल्क की व्यवस्था की गई है। 
  • यदि इस फैसले को इस संदर्भ में देखें तो यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि भारत एंटी डंपिंग शुल्क अधिरोपित करता है, जबकि अमेरिका द्वारा किये गए फैसले से फ्लैट ड्यूटी के अधिरोपण की बात कही गई है। 

डंपिंग क्या है?

  • अर्थशास्त्र में ‘डंपिंग’ का तात्पर्य किसी भी प्रकार के अत्यधिक कम मूल्य निर्धारण से है।  प्रायः यह शब्द अब केवल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून के संदर्भ में ही प्रयोग किया जाता है, जहाँ डंपिंग की परिभाषा किसी देश के एक निर्माता द्वारा किसी उत्पाद को या तो इसकी घरेलू कीमत से नीचे या इसकी उत्पादन लागत से कम कीमत पर किसी दूसरे देश में निर्यात करने के रूप में की जाती है।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO-World Trade Organisation) की स्वीकृति से, जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (GATT-General Agreement on Tariff & Trade) का अनुच्छेद VI देशों को डंपिंग के खिलाफ कार्रवाई करने का विकल्प चुनने की अनुमति देता है।

क्या है एंटी-डंपिंग ड्यूटी?

  • यदि कोई देश, दूसरे देश में अपने उत्पादों को लागत से भी कम दाम पर बेचता है तो इसे डंपिंग कहा जाता है।
  • विदेशों से आए सस्ते माल के सामने घरेलू उद्योगों का महँगा सामान बाज़ार में पिट जाता है, जिससे घरेलू उत्पादकों को घाटा उठाना पड़ता है।
  • इसे रोकने के लिये यदि आयातक देश की सरकार, निर्यातक देश में उत्पाद की लागत और अपने यहाँ उत्पाद के मूल्य के अंतर के बराबर शुल्क लगा दे तो इसे ही डंपिंगरोधी शुल्क यानी एंटी-डंपिंग ड्यूटी कहा जाता है।
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