जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022 | 02 Dec 2022
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022, अनुसूचित जनजाति, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, ट्राइफेड (TRIFED)। मेन्स के लिये:जनजातियों से संबंधित नवीनतम सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन (Bharat Rural Livelihood Foundation- BRLF) द्वारा जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022 जारी की गई, जिसके बारे में संगठन का दावा है कि यह वर्ष 1947 के बाद से अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है।
- संघ और राज्य सरकारों के सहयोग से नागरिक समाज की कार्रवाई का विस्तार करने के लिये, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त समाज के रूप में BRLF की स्थापना की थी।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- जनजातीय आबादी:
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का जनजातीय समुदाय देश की जनसंख्या का 8.6% हैं। परंतु आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी वे देश के विकास के पदानुक्रम में सबसे निचले पायदान पर हैं।
- देश के 80% जनजातीय समुदाय मध्य भारत में हैं।
- 257 अनुसूचित जनजातीय ज़िलों में से, 230 (90%) ज़िले या तो वनक्षेत्र या पहाड़ी अथवा रेगिस्तानी क्षेत्र में आते हैं।
- जनजातीय समुदाय सबसे ज़्यादा वंचित:
- बात चाहे स्वच्छता, शिक्षा, पोषण की हो या पीने के पानी तक पहुँच की, स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी आदिवासी सबसे ज़्यादा वंचित हैं।
- जनजातीय क्षेत्रों में अशांति और संघर्ष:
- जनजातीय क्षेत्रों में भी अशांति और संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। यह एक कारण है कि कई सरकारी कल्याणकारी योजनानाएँ और नीतियाँ इन क्षेत्रों में शुरू नहीं हो पा रही हैं। इस क्षेत्र का संकट दोनों पक्षों को प्रभावित करता है।
- सबसे कठोर स्थानों परम विस्थापन :
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के स्वदेशी समुदायों को जलोढ़ मैदानों और उपजाऊ नदी घाटियों से दूर पहाड़ियों, जंगलों और शुष्क भूमि जैसी देश की सबसे कठोर परिस्थितियों में विस्थापित कर दिया गया है
- 1980 में वन संरक्षण अधिनियम:
- 1980 में वन संरक्षण अधिनियम के लागू होने के बाद, संघर्ष को पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय आदिवासी समुदायों की ज़रूरतों के बीच देखा जाने लगा, जिससे लोगों और जंगलों के बीच दूरियाँ बढ़ने लगी हैं।
- वर्ष 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार स्थानीय लोगों की घरेलू आवश्यकताओं को पहली बार स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई थी।
- नीति में आदिवासियों के प्रथागत अधिकारों की रक्षा करने और वनों की सुरक्षा बढाने के लिये आदिवासियों को जोड़ने पर ज़ोर दिया है। लेकिन जनोन्मुखी दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा आंदोलन ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खा पाया है।
- सुझाव:
- जनजातीय समुदायों के लिये नीतियाँ बनाने के लिये उनकी विशेष विशेषताओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।
- ऐसे कई आदिवासी समुदाय हैं जो अलगाव पसंद करते हैं। वे शर्मीले हैं और वे बाहरी दुनिया से संपर्क नही रखते हैं। देश के नीति निर्माताओं और नेताओं को इस विशेषता को समझने और फिर आदिवासियों के कल्याण की दिशा में काम करने की आवश्यकता है ताकि वे उनसे बेहतर तरीके से जुड़ सकें।
जनजातियों से संबंधित सरकारी पहल:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न :प्रश्न: भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत आदिवासी भूमि का खनन के लिये निजी पक्षकारों को अंतरण अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न. आप उन आँकड़ों की व्याख्या कैसे करते हैं जो दिखाते हैं कि भारत में जनजातियों में लिंगानुपात अनुसूचित जातियों के लिंगानुपात की तुलना में महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल है? (मुख्य परीक्षा, 2015) |