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शासन व्यवस्था

मीडिया ट्रायल

  • 27 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कंगारू कोर्ट, सीजेआई, अनुच्छेद 21 और 19, मौलिक अधिकार।

मेन्स के लिये:

मीडिया ट्रायल और इसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि मीडिया एजेंडा संचालित बहस और कंगारू कोर्ट चला रहा है, जो लोकतंत्र के लिये उचित नहीं है।

कंगारू कोर्ट

  • "कंगारू कोर्ट/समानांतर न्यायिक आपूर्ति प्रणाली" वाक्यांश का प्रयोग न्यायिक प्रणाली के खिलाफ किया जाता है जहाँ अभियुक्त के खिलाफ निर्णय आमतौर पर पूर्व निर्धारित होता है।
  • यह स्व-गठित या छद्म न्यायालय है, जिसे बिना किसी पूर्व चिंतन के निर्णय देने के उद्देश्य से स्थापित किया जाता है और आमतौर पर आरोपी व्यक्ति के संदर्भ में फैसला किया जाता है।
    • यह अभिव्यक्ति ऑस्ट्रेलिया में देखी गई लेकिन इसे पहली बार अमेरिका में वर्ष 1849 के कैलिफोर्निया गोल्ड रश के दौरान दर्ज किया गया था।
  • सोवियत संघ में स्टालिन युग के दौरान कंगारू कोर्ट आम धारणा थी, जो सोवियत ग्रेट पर्ज के "मॉस्को ट्रायल" के रूप में प्रसिद्ध।

मीडिया ट्रायल:

  • परिचय:
    • मीडिया ट्रायल एक ऐसा वाक्यांश है जो 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर टेलीविजन और समाचार पत्रों के कवरेज के प्रभाव का वर्णन करने हेतु कानून की अदालत में किसी फैसले से पहले या बाद में अपराध या बेगुनाही की व्यापक धारणा बनाने के लिये लोकप्रिय है।
    • हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिनमें मीडिया ने आरोपी के खिलाफ मीडिया ट्रायल कर न्यायालय द्वारा फैसला सुनाए जाने से पहले ही अपना फैसला सुना दिया।
  • संवैधानिकता:
    • हालाँकि मीडिया ट्रायल शब्द को कहीं भी सीधे तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह शक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मीडिया को प्राप्त है।
      • भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

मीडिया  ट्रायल के निहितार्थ:

  • न्यायिक कामकाज को प्रभावित करता है:
    • न्यायाधीशों के खिलाफ संयुक्त अभियान, विशेष रूप से सोशल मीडिया संचालित और मीडिया ट्रायल न्यायिक कामकाज को प्रभावित करते हैं।
    • न्यायालयों में लंबित मुद्दों पर मीडिया में गैर-सूचित, पक्षपातपूर्ण और एजेंडा संचालित बहस न्याय वितरण को प्रभावित कर रहा है।
  • नकली और असली में भेद न कर पाना:
    • नए मीडिया उपकरणों में व्यापक विस्तार की क्षमता है लेकिन वे सही और गलत, अच्छे तथा बुरे एवं असली व नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं।
    • मीडिया ट्रायल मामलों को तय करने में एक मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकता है।
  • गलत वर्णन:
    • मीडिया उन घटनाओं का वर्णन करने में सफल रहा है जिन्हें गुप्त रखा जाना चाहिये।
    • मीडिया परीक्षण कथित अभियुक्तों के गलत वर्णन का कारण बना है और इसने उनके कॅरियर को समाप्त करने का काम किया है, केवल इस तथ्य से कि वे आरोपी थे, भले ही उन्हें अभी तक न्यायालय द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया हो।
  • लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं:
    • मीडिया ने अपनी ज़िम्मेदारी का उल्लंघन करते हुए लोकतंत्र को पीछे ले जाने का काम किया है तथा लोगों को प्रभावित किया है और व्यवस्था को क्षति पहुँचाई है।
    • अभी भी प्रिंट मीडिया में कुछ हद तक जवाबदेही है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही शून्य है।
  • नफरत और हिंसा भड़काना:
    • पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ जनता की धारणा में हेरफेर कर सकते हैं तथा समाज में विभिन्न समुदायों के बीच नफरत, हिंसा एवं वैमनस्य पैदा कर सकते हैं।
    • वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता का अभाव समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति की ओर ले जाता है जो लोगों की धारणा और राय को प्रभावित करता है।
  • एकांतता का अधिकार:
    • वे हमारी निजता पर आक्रमण करते हैं जो अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत एकांतता के अधिकार के उल्लंघन का कारण बनता है।

भारत में मीडिया विनियमन:

  • भारत में मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र का नियंत्रण और विनियमन केबल नेटवर्क अधिनियम, 1995 तथा प्रसार भारती अधिनियम, 1990 में निहित है। इन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा प्रसार भारती द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • मीडिया विनियमन  के लिये भारत में चार निकाय हैं:
    • भारतीय प्रेस परिषद: इसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और भारत में समाचार पत्रों व समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और उनमें सुधार करना है।
    • समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण: यह न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
    • प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद: यह सभी गैर-सामाचार समान्य मनोरंजन चैनलों से संबंधित शिकायतों को देखने के लिये एक स्व-नियामक निकाय है।
    • न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA): यह निजी टेलीविजन समाचार और समसायिक घटनाओं के ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।

आगे की राह

  • मीडिया को केवल पत्रकारिता के कार्यों में संलग्न होना चाहिये और अदालत की एक विशेष एजेंसी के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये।
  • यद्यपि मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है और हमें एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ लोग समाज में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकते है।
  • मीडिया को यह समझना चाहिये कि उसकी भूमिका उन मुद्दों को उठाना है जिनका जनता सामना कर रही है। मीडिया उनकी आवाज़ बन सकता है जो अपनी बात नहीं रख सकते। मीडिया को फैसला नहीं सुनाना चाहिये क्योंकि भारत में इस उद्देश्य के लिये न्यायपालिका है।
  • मीडिया को अदालत के मामलों में दखल न देकर अपनी नैतिकता, सामाजिक ज़िम्मेदारी और विश्वसनीयता को बनाए रखना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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