मानव तस्करी रिपोर्ट | 03 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं मेन्स के लिये:मानव तस्करी से संबंधित मुद्दे और इससे निपटने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी मानव तस्करी रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप मानव तस्करी के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है और मौजूदा तस्करी-रोधी प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है।
- मानव तस्करी जिसे व्यक्तियों की तस्करी भी कहा जाता है, आधुनिक समय की दासता का रूप है जिसमें श्रम, यौन शोषण के उद्देश्य से बल या धोखे से व्यक्तियों का अवैध परिवहन शामिल है तथा ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को आर्थिक लाभ होता है।
प्रमुख बिंदु:
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- भारत तस्करी को खत्म करने के लिये न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं कर पाया है, जबकि इसे खत्म करने के लिये सरकार लगातार आवश्यक प्रयास करती रही, साथ ही जब बंधुआ मजदूरी की बात आती है तो ये प्रयास अपर्याप्त प्रतीत होते हैं।
- चीनी सरकार व्यापक रूप से जबरन श्रम करवाने में लगी हुई है, इसमें दस लाख से अधिक उइगर, कज़ाख, किर्गिज़ और अन्य मुसलमानों को निरंतर सामूहिक रूप से हिरासत रखना शामिल है।
तस्करी में वृद्धि के कारण:
- तस्करी के जोखिम का सामना कर रहे व्यक्तियों की बढ़ती संख्या, अवैध तस्करीकर्त्ताओं की प्रतिस्पर्द्धी संकटों का लाभ उठाने की क्षमता और महामारी पर प्रतिक्रिया प्रयासों के लिये संसाधनों के विपथन/डायवर्जन आदि का सम्मिलन मानव तस्करी के फलने-फूलने एवं विकसित होने के लिये एक आदर्श वातावरण के रूप में परिणत हुआ है।
देशों का वर्गीकरण:
- यह वर्गीकरण किसी देश की अवैध व्यापार समस्या की भयावहता पर आधारित नहीं है बल्कि मानव तस्करी के उन्मूलन के लिये न्यूनतम मानकों को पूरा करने के प्रयासों पर आधारित है।
- देशों को त्रि-स्तरीय प्रणाली के आधार पर नामित किया गया है:
- टियर 1 में वे देश शामिल हैं जिनकी सरकारें पूरी तरह से तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम (Trafficking Victims Protection Act- मानव तस्करी पर अमेरिका का कानून) के न्यूनतम मानकों का पालन करती हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बहरीन और दक्षिण कोरिया टियर 1 में शामिल कुछ देश हैं।
- टियर 2 में वे देश आते हैं जिनकी सरकारें तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम के न्यूनतम मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं करती हैं, लेकिन उन मानकों के अनुपालन के तहत खुद को लाने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही हैं।
- टियर 2 वॉचलिस्ट वाले वे देश हैं जहाँ तस्करी के पीड़ितों की संख्या महत्त्वपूर्ण स्तर पर है या अत्यधिक बढ़ रही है।
- भारत को टियर 2 श्रेणी में रखा गया है।
- टियर 3 में वे देश हैं जिनकी सरकारें न्यूनतम मानकों का पूरी तरह पालन नहीं करती हैं और ऐसा करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं कर रही हैं।
- अफगानिस्तान, म्याँमार, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, उत्तर कोरिया, ईरान, रूस, दक्षिण सूडान, सीरिया और तुर्कमेनिस्तान इस श्रेणी में आते हैं।
- यमन जैसे कुछ "विशेष मामले" भी हैं, जहाँ नागरिक संघर्ष और मानवीय संकट के कारण जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
- टियर 1 में वे देश शामिल हैं जिनकी सरकारें पूरी तरह से तस्करी पीड़ित संरक्षण अधिनियम (Trafficking Victims Protection Act- मानव तस्करी पर अमेरिका का कानून) के न्यूनतम मानकों का पालन करती हैं।
भारत में प्रासंगिक कानून:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24
- अनुच्छेद 23: यह मानव तस्करी और बेगार (बिना भुगतान के जबरन श्रम) को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 24: यह 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कारखानों और खदानों जैसे खतरनाक स्थानों में रोज़गार पर रोक लगाता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा:
- IPC की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने हेतु व्यापक उपाय प्रदान करती हैं, जिसमें शारीरिक शोषण या किसी भी रूप में यौन शोषण, गुलामी, दासता या अंगों को जबरन हटाने सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
- धारा 372 और 373 वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से लड़कियों को बेचने और खरीदने से संबंधित है।
- अन्य विधान:
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA) व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी की रोकथाम हेतु प्रमुख कानून है।
- महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित अन्य विशिष्ट कानून बनाए गए हैं जैसे- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये एक विशेष कानून है।
- राज्य सरकारों ने इस मुद्दे से निपटने के लिये विशिष्ट कानून भी बनाए हैं (उदाहरण के लिये पंजाब मानव तस्करी रोकथाम अधिनियम, 2012)।
भारत द्वारा उठाए गए अन्य कदम
- मानव तस्करी के अपराध से निपटने के लिये राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न निर्णयों को संप्रेषित करने और कार्रवाई पर अनुवर्ती कार्रवाई करने हेतु गृह मंत्रालय (MHA) में वर्ष 2006 में एंटी-ट्रैफिकिंग नोडल सेल की स्थापना की गई थी।
- मानव तस्करी रोधी इकाई (AHTU): गृह मंत्रालय ने एक व्यापक योजना 'स्ट्रेंथनिंग लॉ एनफोर्समेंट रिस्पांस इन इंडिया अगेंस्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स' (2010) के तहत देश के कई ज़िलों में AHTU की स्थापना के लिये फंड जारी किया है।
- AHTU की प्राथमिक भूमिका पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के लिये कानून प्रवर्तन और अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ संपर्क करना है।
- संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: भारत ने (वर्ष 2011 में) अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTOC) की पुष्टि की है, जिसमें अन्य लोगों के बीच विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और दंडित करने के लिये एक प्रोटोकॉल है।
- सार्क कन्वेंशन: भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और इसका मुकाबला करने हेतु सार्क कन्वेंशन की पुष्टि की है।
- द्विपक्षीय तंत्र: महिलाओं और बच्चों में मानव तस्करी की रोकथाम, बचाव, पुनर्प्राप्ति, प्रत्यावर्तन और तस्करी के पीड़ितों के पुन: एकीकरण के लिये भारत व बांग्लादेश के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर जून 2015 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- न्यायिक संगोष्ठी: यह उच्च न्यायालय स्तर पर आयोजित की जाती हैं।
- इसका उद्देश्य मानव तस्करी से संबंधित विभिन्न मुद्दों के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाना और त्वरित अदालती प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
- क्षमता निर्माण: सरकार द्वारा पूरे देश में क्षेत्रीय स्तर, राज्य स्तर और ज़िला स्तर पर पुलिस अधिकारियों तथा अभियोजकों के लिये 'मानव तस्करी का मुकाबला' करने हेतु विभिन्न प्रशिक्षण (TOT) कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं।
आगे की राह
- पीड़ितों की रक्षा करने और अपराधियों को न्याय दिलाने हेतु सभी देशों का समर्थन करने के लिये तकनीकी सहायता बढ़ाने और सहयोग को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- मानव तस्करी के खतरे से निपटने के लिये गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ पुलिस का क्षमता निर्माण आवश्यक है।
- आंतरिक रूप से प्रशासन में या पुलिस या गैर-सरकारी संगठनों जैसी एजेंसियों के बीच या विभिन्न देशों के बीच भी उचित डेटा साझाकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- न्यायमूर्ति वर्मा समिति, 2012 ने लापता बच्चों की जनगणना की सिफारिश की थी।
- सरकार को कुछ निवारक कदम उठाने की ज़रूरत है, जैसे
- तस्करी के अपराध के बारे में बच्चों को शिक्षित करने हेतु उनके स्कूली पाठ्यक्रम में इन विषयों को शामिल करना।
- लोगों को एक समाज के रूप में जागरूक करना अर्थात् यदि कोई व्यक्ति किसी भी संदिग्ध गतिविधि के साथ सामने आता है, तो संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना देनी चाहिये।