भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 13 अरब डॉलर तक पहुँचा | 15 Jul 2017
संदर्भ
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार जून 2017 में भारत का व्यापार घाटा 12.95 अरब डॉलर पर पहुँच गया है, जबकि जून 2016 में वस्तुओं का व्यापार घाटा 8.1 अरब डॉलर था।
प्रमुख बिंदु
- 2017 में वस्तुओं का निर्यात 4.39% बढ़ा जबकि आयात में 19% की बढ़ोतरी हुई।
- जून में आयात किये जाने वाले प्रमुख कमोडिटी समूह में उच्च वृद्धि देखी गई, जिनमें पेट्रोलियम, कच्चे तेल और उत्पाद (12.04%), इलेक्ट्रॉनिक सामान (24.22%), मोती, कीमती और अर्द्ध-मूल्यवान पत्थर (86.31%), मशीनरी, विद्युत और गैर-विद्युत सामान (7.02%) और सोने में (102.99%) की वृद्धि दर्ज की गई।
- जून माह में तेल का आयात 12.04 प्रतिशत बढ़कर 8.12 अरब डॉलर हो गया है।
- आर्थिक मामलों के जानकारों कहना है कि भारत का निर्यात एक मज़बूत प्रवृत्ति दिखाने के बाद मूक वृद्धि का संकेत दे रहा है। हालाँकि इंजीनियरिंग क्षेत्र ने जून में भी अपनी जीवंतता कायम रखी है।
- भारतीय वित्तीय बाज़ार में वैश्विक तरलता के भरपूर बहाव से भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धा पर एक प्रकार की काली छाया पड़ती दिख रही है।
व्यापार घाटा : अर्थ एवं कारण
- व्यापार घाटे का अर्थ निर्यात की तुलना में आयात की अधिकता से है। जब किसी राष्ट्र का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है, तो वह व्यापार घाटे की स्थिति में चला जाता है।
- ज़ाहिर है जब आयात अधिक होगा तो विदेशी मुद्रा, विशेष रूप से डॉलर, में भुगतान होने के कारण देश में विदेशी मुद्रा (डॉलर ) की कमी होगी। जब विदेशी मुद्रा में भुगतान होती है, तो उसकी मांग भी बढ़ती और रुपया उसके मुकाबले कमज़ोर होता है।
- रुपए के कमज़ोर होने से उसकी कीमत में गिरावट आती है। ऐसी परिस्थिति में आयातकों को विदेशों से माल के आयात के लिये अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। इस तरह आयात महँगा हो जाता है। इसके विपरीत निर्यातकों को फायदा होता है।
- गौरतलब है कि भारत में कच्चे तेल की माँग का एक बड़ा भाग आयात से पूरा किया जाता है। कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है।
- जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो उसका प्रभाव भारत के व्यापार घाटे पर पड़ता है।
- इसी तरह भारत में सोने का आयात भी बड़े पैमाने पर किया जाता है जिसके लिये भी डॉलर की आवश्यकता पड़ती है।