शासन व्यवस्था
भारत में रोज़गार की स्थिति
- 04 Nov 2019
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प्रीलिम्स के लिये:
संगठित क्षेत्र, असंगठित क्षेत्र, संविदात्मक रोज़गार
मेन्स के लिये:
भारत में रोज़गार की स्थिति, संगठित क्षेत्र और संविदात्मक रोज़गार के मध्य संबंध
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2004 से वर्ष 2017 के मध्य देश के कुल रोज़गार में मात्र 4.5 करोड़ की वृद्धि हुई है।
- इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि देश में रोज़गार में मात्र 0.8 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर देश की कुल जनसंख्या में होने वाली वृद्धि इससे तकरीबन दोगुनी है।
- इस अध्ययन की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें ‘बेरोज़गारी’ के स्थान पर ‘रोज़गार’ पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु
- 13 वर्ष की अवधि में रोज़गार में जो 4.5 करोड़ की वृद्धि हुई है, उसमें से लगभग 4.2 करोड़ की बढ़ोतरी शहरों में और शेष ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिली है।
- आँकड़े बताते हैं कि इस अवधि में पुरुष रोज़गार में तो 6 करोड़ की वृद्धि हुई है, परंतु महिला रोज़गार में 1.5 करोड़ की गिरावट दर्ज की गई।
- जहाँ एक ओर वर्ष 2004 में कुल 11.15 करोड़ महिलाएँ कार्यरत थीं, वहीं 13 वर्ष बाद मात्र 9.67 करोड़ महिलाएँ ही रोज़गार में कार्यरत पाई गईं।
- ध्यातव्य है कि भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, परंतु अध्ययन में पाया गया कि युवा रोज़गार वर्ष 2004 में 8.14 करोड़ से घटकर वर्ष 2017 में 5.34 करोड़ हो गया। हालाँकि अन्य सभी आयु वर्गों के रोज़गार में बढ़ोतरी देखने को मिली।
- अध्ययन के अनुसार, देश में निरंतर हो रहे स्कूली सुधारों का काफी प्रभाव पड़ा है और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोज़गार में वर्ष 2004 के मुकाबले वर्ष 2017 में तकरीबन 82 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
- गौरतलब है कि प्राइमरी, सेकेंडरी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट और उससे भी उच्च शिक्षा तक के अन्य सभी वर्गों के रोज़गार में बढ़ोतरी देखने को मिली है, परंतु अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि तेज़ी से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था निरक्षरों और अधूरी प्राथमिक शिक्षा वाले लोगों को पीछे छोड़ रही है, क्योंकि 13 वर्ष की अवधि में इस वर्ग के लिये रोज़गार 20.08 करोड़ (वर्ष 2004) से घटकर 14.2 करोड़ (वर्ष 2017) तक पहुँच गया।
- असंगठित क्षेत्र की अपेक्षा संगठित क्षेत्र में रोज़गार दर में वृद्धि काफी तेज़ रही। देश के कुल रोज़गार में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2004 के 8.9 फीसदी से बढ़कर 2017 में 14 फीसदी हो गई।
- अध्ययन के अनुसार, देश के असंगठित क्षेत्र का भी विकास हुआ है। हालाँकि इसकी विकास दर अपेक्षाकृत धीमी थी, परंतु अर्थव्यवस्था में इसकी कुल हिस्सेदारी वर्ष 2004 में 37.1 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2017 में 47.7 प्रतिशत हो गई।
- संक्षेप में आँकड़े दर्शाते हैं कि जो लोग गरीब, निरक्षर और अकुशल हैं वे तेज़ी से अपनी नौकरियाँ खो रहे हैं।
संगठित क्षेत्र
- संगठित क्षेत्र में रोज़गार की शर्तें निश्चित और नियमित होती हैं तथा कर्मचारियों को सुनिश्चित कार्य व सामाजिक सुरक्षा मिलती है।
- इसे एक ऐसे क्षेत्र के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जो सरकार के साथ पंजीकृत होता है और उस पर कई अधिनियम लागू होते हैं। गौरतलब है कि स्कूल और अस्पताल संगठित क्षेत्र मे ही आते हैं।
- संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार सुरक्षा प्राप्त है और उन्हें कुछ निश्चित घंटों के लिये ही कार्य करना होता है।
असंगठित क्षेत्र
- असंगठित क्षेत्र में मुख्यतः स्व-नियोजित श्रमिकों, वेतनभोगी मज़दूरों और संगठित क्षेत्र के उन कर्मचारियों को शामिल किया जाता है, जो असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 की अनुसूची- II में उल्लेखित कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित किसी अधिनियम के तहत नहीं आते।
संगठित क्षेत्र का उदय और संविदात्मक रोज़गार
(Contractual Employment)
- सामान्यतः यह माना जाता है कि संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग किसी विशेष अनुबंध के तहत कार्य करते हैं।
- रोज़गार अनुबंध के कारण ही रोज़गार सुरक्षा, न्यूनतम मज़दूरी, समान कार्य के लिये समान वेतन, सुरक्षित काम करने की स्थिति आदि का प्रश्न उठता है।
- ध्यातव्य है कि अनुबंध के अभाव में कोई भी कर्मचारी उचित सामाजिक न्याय की अपेक्षा नहीं कर सकता।
- गैर-अनुबंध वाले रोज़गार में वेतन की दर अपेक्षाकृत काफी कम होती है और शायद इसीलिये असंगठित क्षेत्र कर्मचारियों को बिना अनुबंध किये ही रोज़गार प्रदान करता है।
- हालाँकि NSSO के आँकड़े भारत में संगठित क्षेत्र के एक पूर्णतः विपरीत परिदृश्य को प्रदर्शित करते हैं। आँकड़े बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में देश का संगठित क्षेत्र भी बिना अनुबंध के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान कर रहा है। वर्ष 2011 से 2017 के बीच यह पैटर्न सबसे अधिक देखने को मिला है।
- अनुबंध से गैर-अनुबंध की यह स्थिति भारत की अर्थव्यवस्था के लिये बिल्कुल भी अच्छी नहीं है, क्योंकि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को और अधिक औपचारिक बनाना चाहता है परंतु ऐसी स्थिति में यह संभव नहीं है।
संविदात्मक रोज़गार
संविदात्मक रोज़गार ऐसा रोज़गार है जिसमें किसी कर्मचारी को काम करने से पहले अनुबंध की शर्तों पर हस्ताक्षर करने और उस पर अपनी सहमति व्यक्त करने की आवश्यकता होती है।