शासन व्यवस्था
देशद्रोह की सीमा का निर्धारण: SC
- 02 Jun 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेIPC की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 मेन्स के लियेदेशद्रोह कानून की प्रासंगिकता और उसकी आलोचना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दो तेलुगू (भाषा) न्यूज़ चैनलों को आंध्र प्रदेश सरकार की जबरन कार्रवाई से बचाते हुए कहा कि यह देशद्रोह की सीमा को परिभाषित करने का समय है।
- वर्तमान में ब्रिटिश युग की भारतीय दंड संहिता (IPC) में सुधारों का सुझाव देने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित आपराधिक कानूनों में सुधार समिति, पहली बार ‘हेट स्पीच’ को परिभाषित करने का प्रयास कर रही है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- न्यूज़ चैनलों ने राज्य सरकार पर राज्य में कोविड-19 महामारी की मीडिया कवरेज और रिपोर्टिंग में बाधा डालकर भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद-19 प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार, मत और विश्वास को मौखिक, लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय से उसके पिछले आदेश का उल्लंघन करने के मामले में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध अवमानना कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह शिकायत करने वाले नागरिकों पर मुकदमा चलाने और उन्हें गिरफ्तार करने संबंधी किसी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कार्यवाही को तत्काल बंद करे।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- देशद्रोह कानून का अनुचित उपयोग
- सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के विषय में शिकायत करने वाले आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं और नागरिकों के विरुद्ध देशद्रोह कानून के अनुचित उपयोग को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।
- यहाँ तक कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान चिकित्सा पहुँच, उपकरण, दवाएँ और ऑक्सीजन सिलेंडर की मांग करने वाले लोगों के विरुद्ध भी देशद्रोह कानून का उपयोग किया जा रहा है।
- ‘देशद्रोह’ की व्याख्या
- वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की जानी आवश्यक है।
- IPC की धारा 153A: यह धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के विरुद्ध कार्य करने वाले कृत्यों को दंडित करता है।
- IPC की धारा 505: यह ऐसी सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को अपराध बनाता है, जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है।
- विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के समाचार, सूचना और अधिकारों को संप्रेषित करने के अधिकार के संदर्भ में, चाहे वे देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित शासन के लिये आलोचनात्मक ही क्यों न हो।
- वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की जानी आवश्यक है।
- मीडिया के अधिकार
- न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार किया कि मीडिया को देशद्रोह कानून से प्रभावित हुए बिना एक प्रचलित शासन के विषय में महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को प्रसारित करने का अधिकार है।
देशद्रोह (IPC की धारा 124A)
- भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के अनुसार, देशद्रोह एक प्रकार का अपराध है।
- IPC की धारा 124A देशद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें कोई व्यक्ति भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न करता है।
- देशद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस खंड के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
देशद्रोह के लिये दंड
- देशद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। देशद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- इस कानून के तहत आरोपी व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोका जा सकता है।
- आरोपित व्यक्ति को पासपोर्ट रखने की अनुमति नहीं होती है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में उपस्थित रहना होगा।
आगे की राह
- IPC की धारा 124A राष्ट्र विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में उपयोगी है। हालाँकि सरकार से असहमति और उसकी आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में परिपक्व सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों को सुनिश्चित करने और पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिये करना चाहिये।
- राजद्रोह की परिभाषा को संकुचित किया जाना चाहिये, जिसमें केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को ही शामिल किया जाए।
- देशद्रोह कानून के मनमाने प्रयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।