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बन्नेरघट्टा बफर ज़ोन गंभीर खतरे में

  • 11 Jun 2018
  • 7 min read

संदर्भ

कर्नाटक के 73 पर्यावरण-संवेदनशील गाँव, जिनमें से 22 'लाल सूची' में शामिल  गाँव हैं, को बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान के बफर ज़ोन से बाहर रखा गया है, जो कि बंगलूरू का सबसे बड़ा, शहरी वन क्षेत्र है। 'लाल सूची' में ऐसे गाँव शामिल हैं जो वन के नज़दीक हैं और पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं। जबकि वन के नज़दीक खनन परियोजनाओं को रोकने के लिये शहर में एक आंदोलन शुरू किया गया है| खनन परियोजनाओं के कारण पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इस राष्ट्रीय उद्यान के बफर ज़ोन पर दबाव बढ़ेगा जिससे इस पर बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है।

पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (eco-sensitive zone-ESZ)

  • सिद्धांत नोलखा ने बंगलूरू में इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट के साथ एक फैलोशिप के दौरान इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) का अध्ययन किया।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की 2016 की रिपोर्ट  जो इस क्षेत्र में गाँवों को इको-सेंसिटीविटी की पाँच श्रेणियों में रखती है, का उपयोग करते हुए  श्री नोलखा ने पाया कि इको-सेंसिटीविटी के शीर्ष दो स्तरों के 147 गाँवों में से 58 को ईएसजेड के मसौदे में शामिल किया गया था।
  • 16 और गाँव आंशिक रूप से शामिल हैं (यानी  गाँव में केवल 100 मीटर तक), जबकि 73 को बाहर रखा गया है।
  • इनमें से  शोधकर्त्ताओं ने 'लाल सूची' में 22 गाँवों को रखा। पर्यावरण और वन मंत्रालय घने आबादी वाले इलाकों में बफर ज़ोन को 100 मीटर तक कम करने की इज़ाज़त देता है  और यह उत्तरी किनारे के संदर्भ में समझ में आता है जहाँ बंगलूरू स्थित है। लेकिन, निहित हितों के अलावा पार्क के केंद्रीय और दक्षिणी सीमाओं में कम निर्माण क्षेत्र वाले गाँवों को बाहर करने का कोई तार्किक कारण नहीं है|
  • ईएसजेड में कमी को ध्यान में रखते हुए  श्री नोलखा का मानना है कि बफर ज़ोन क्षेत्र की रक्षा करने में बहुत कम मदद करेगा|
  • बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क 21 शहरी वनों में से पहला है जिस पर शोध किया गया है|
  • निष्कर्ष सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत किये जाएंगे, जो पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) के मामले की सुनवाई कर रहा है।

मानव-हाथी संघर्ष

  • अध्ययन में पाया गया है कि इस कम बफर ज़ोन को सुरक्षित करना एक चुनौती हो सकती है।
  • बीडीए का मास्टर प्लान ईएसजेड का उल्लेख करता है और यथा स्थिति बनाए रखने की सिफारिश करता है| अध्ययन के अनुसार जिन प्रमुख पारगमन परियोजनाओं की योजना बनाई जा रही है या जिन्हें लागू किया जा रहा है उन पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • कनकपुरा रोड को फोर लेन में बदलने, बन्नेरघट्टा रोड पर मेट्रो, जो कि गौडिगेर तक जाती है के चलते बिदादी और रामानगरम को जोड़ने वाली उपनगरीय सीमा में भूमि की कीमतें बढेंगी और अधिक रियल एस्टेट परियोजनाएँ दिखाई देंगी।
  • जिगानी औद्योगिक क्षेत्र इसके निकट स्थित है और बन्नेरघट्टा के नज़दीक गाँवों में सस्ते आवासों की मांग है|
  • यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासियों का समायोजन हो रहा है  और इसने जंगल से क्षेत्र को पृथक कर दिया है, जिसे हम अन्य संरक्षित क्षेत्रों में नहीं पाते हैं, जहाँ कई लोग वनों से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं|
  • इससे मानव-हाथी संघर्ष में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि वन्यजीवन के लिये  एक संगत गलियारा प्रदान करने को ईएसजेड के सिद्धांत बन्नेरघट्टा में कमज़ोर हैं।
  • ईएसजेड सिर्फ 5 किलोमीटर तक का बफर क्षेत्र नहीं है इसे रोरीच फार्म से कनकपुर तक बढ़ाया जाना चाहिये जहाँ गाँव में अक्सर हाथी आते हैं।
  • उचित बफर क्षेत्र और मार्गों की कमी के कारण आने वाले समय में फार्मों में बहुत अधिक संख्या में हाथी दिखाई देंगे, खासकर रागी कटाई के मौसम के दौरान|

इको-सेंसिटिव ज़ोन

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ईएसजेड) या पारिस्थितिक रूप से कमज़ोर (frazile) एरिया (EFA) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र होते हैं।
  • ईएसजेड घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र में ऐसे क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।

बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान 

  • बंगलूरू, कर्नाटक के पास बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1970 में हुई थी और 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था।
  • 2002 में उद्यान का एक हिस्सा, जैविक रिज़र्व बन गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
  • यह एक चिड़ियाघर, एक पालतू जानवरों का कार्नर, एक पशु बचाव केंद्र, एक तितली संलग्नक, एक मछलीघर, एक सांप घर और एक सफारी पार्क के साथ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
  • कर्नाटक का चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलूरू  और अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट (ATREE), बंगलूरू इसकी सहयोगी एजेंसियाँ हैं।
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