अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की तीसरी पीढ़ी: मार्क 3
- 27 Apr 2018
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा तीसरी पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Mark 3 EVMs) की शुरुआत की गई, जिसे मार्क-3 नाम दिया गया है। इस मशीन की प्रमुख विशेषता यह है कि इससे किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ (tamper-proof) नहीं की जा सकती है
प्रमुख तथ्य
- मार्क-3 ईवीएम का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
- गौरतलब है कि भारत में EVM को विदेशों से आयात नहीं किया जाता, बल्कि ये पूर्णतः स्वदेश निर्मित मशीनें हैं जिनका निर्माण भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ बंगलुरू स्थित BEL और हैदराबाद स्थित ECIL मिलकर करती हैं।
- ट्रायल के तौर पर कर्नाटक चुनाव में 1800 सेंटरों पर नई मार्क-3 ईवीएम का इस्तेमाल होगा।
- इसके अलावा वर्ष 2019 के आम चुनाव में प्रत्येक सेंटर पर इनके इस्तेमाल किये जाने की योजना है।
- चुनाव आयोग ने कहा है कि इस EVM में एक चिप लगी है, जिसे पुनः रिप्रोग्राम नहीं किया जा सकता है।
- इसके साथ ही मार्क 3 ईवीएम में केवल एक ही बार सॉफ्टवेयर कोड लिखा जा सकेगा और अगर कोई इससे छेड़छाड़ करने की कोशिश करता है तो यह मशीन खुद की बंद हो जाएगी।
- मार्क 3 ईवीएम में नियंत्रण इकाई और मतपत्र इकाई (control unit and ballot unit) केवल ईसीआईएल और बीईएल द्वारा निर्मित सॉफ्टवेयर को ही स्वीकार कर सकती है।
- इस नई मार्क-3 ईवीएम को इंटरनेट या किसी भी नेटवर्क से कंट्रोल नहीं किया जा सकता है।
- नई मार्क-3 ईवीएम में 24 बैलेट यूनिट और 384 प्रत्याशियों की जानकारी रखी जा सकती है, जबकि पहले वाली मशीन यानी मार्क 2 में सिर्फ 4 बैलेट यूनिट और 64 प्रत्याशियों की जानकारी ही रखी जा सकती थी।
पृष्ठभूमि
- 1989 से 2006 के बीच ईवीएम के पहले संस्करण मार्क 1 को तैयार किया गया था।
- मार्क-1 का अंतिम बार इस्तेमाल 2014 के आम चुनाव में किया गया था।
- 2006 से 2012 के बीच ईवीएम में रियल टाइम क्लॉक और डायनमिक कोडिंग जैसे फीचर को शामिल करते हुए इसके दूसरे संस्करण मार्क-2 को तैयार किया गया।