निरंतर तीसरी ला नीना घटना | 29 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना, अल नीनो, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)। मेन्स के लिये:भारत पर अल नीनो और ला नीना का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञान ब्यूरो (BOM) ने भविष्यवाणी की थी कि ला नीना की लगातार तीसरी घटना हो सकती है जिससे विभिन्न देशों में असामान्य मौसमी प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्ष 2022 ला नीना की एक विस्तारित अवधि है, ऐसा वर्ष 1950 के दशक (जब इस घटना को रिकॉर्ड करना शुरू किया गया था) के बाद पहली बार हुआ है। वर्ष 1973-76 और वर्ष 1998-2001 लगातार ला नीना वर्ष थे।
ला नीना और अल नीनो:
- सामान्य स्थिति:
- सामान्य अवस्था में अर्थात् अल नीनो और ला नीना न होने की स्थिति में व्यापारिक पवनें उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह पर पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, जो गर्म नम पवन और गर्म सतह के जल को पश्चिमी प्रशांत की ओर लाती हैं तथा मध्य प्रशांत महासागर को अपेक्षाकृत ठंडा रखती हैं।
- पश्चिमी प्रशांत महासागर में गर्म समुद्री सतह का तापमान वायुमंडल में गर्मी और नमी को पंप करता है।
- वायुमंडलीय संवहन के रूप में जानी जाने वाली प्रक्रिया से यह गर्म हवा वायुमंडल में ऊपर उठती है और यदि हवा पर्याप्त रूप से नम है तो विशाल क्यूम्यलोनिम्बस बादल बनता है और वर्षा होती है।
- सतह पर पश्चिम की ओर बढ़ने वाली हवा के साथ पश्चिम में उठने और पूर्व में गिरने वाली हवा के पैटर्न को वाकर सर्कुलेशन कहा जाता है।
- सामान्य अवस्था में अर्थात् अल नीनो और ला नीना न होने की स्थिति में व्यापारिक पवनें उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह पर पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, जो गर्म नम पवन और गर्म सतह के जल को पश्चिमी प्रशांत की ओर लाती हैं तथा मध्य प्रशांत महासागर को अपेक्षाकृत ठंडा रखती हैं।
- ला नीना:
- स्पेनिश भाषा में ला नीना का अर्थ होता है छोटी लड़की। इसे कभी-कभी अल विएखो, एंटी-अल नीनो या "एक शीत घटना" भी कहा जाता है।
- ला नीना घटनाएँ पूर्व-मध्य विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में औसत समुद्री सतही तापमान से निम्न तापमान का द्योतक हैं।
- इसे समुद्र की सतह के तापमान में कम-से-कम पाँच क्रमिक त्रैमासिक अवधि में9°F से अधिक की कमी द्वारा दर्शाया जाता है।
- जब पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में जल का तापमान सामान्य की तुलना में कम हो जाता है तो ला नीना की घटना देखी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में एक उच्च दाब की स्थिति उत्पन्न होती है।
- प्रभाव:
- यूरोप: यूरोप में, अल नीनो शीत ऋतु में तूफानों की प्रवृत्ति को कम करता है।
- ला नीना उत्तरी यूरोप (विशेष रूप से यूके) में हल्की ठंड, दक्षिणी/पश्चिमी यूरोप में अत्यधिक ठंड और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में बर्फबारी के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- उत्तरी अमेरिका: इस महाद्वीप में भी ऐसी स्थितियों को देखा जा सकता है। इसके व्यापक प्रभावों में शामिल हैं:
- भूमध्यरेखीय क्षेत्र, विशेष रूप से प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में तेज हवाओं का प्रवाह।
- कैरेबियन और मध्य अटलांटिक क्षेत्र में तूफान के लिये अनुकूल परिस्थितियों की उत्पत्ति।
- अमेरिका के विभिन्न राज्यों में तूफान की घटनाएँ।
- दक्षिण अमेरिका: ला नीना दक्षिण अमेरिकी देशों पेरू और इक्वाडोर में सूखे का प्रमुख कारण बनता है।
- इसका आमतौर पर पश्चिमी दक्षिण अमेरिका के मछली पकड़ने के उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- पश्चिमी प्रशांत: पश्चिमी प्रशांत में, ला नीना विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्र महाद्वीपीय एशिया और चीन में भूस्खलन की दर/ तीव्रता को बढ़ा देता है।
- इससे ऑस्ट्रेलिया में भी भारी बाढ़ आती है।
- पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और सोमालियाई तट से दूर के क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि होती है।
- यूरोप: यूरोप में, अल नीनो शीत ऋतु में तूफानों की प्रवृत्ति को कम करता है।
- अल नीनो:
- अल नीनो एक जलवायु प्रणाली है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के तापमान में असामान्य रूप से वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) नामक एक बड़ी घटना का "उष्ण चरण" है।
- इसकी दर ला नीना की तुलना में अधिक होती है।
- प्रभाव:
- महासागर पर प्रभाव: अल नीनो समुद्र की सतह के तापमान, उसकी धाराओं की गति, तटीय मत्स्य पालन एवं ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण अमेरिका और उससे संलग्न अन्य क्षेत्रों के स्थानीय मौसम को भी प्रभावित करता है।
- वर्षा में वृद्धि: गर्म सतही जल के ऊपर संवहन से वर्षा में वृद्धि होती है।
- इससे दक्षिण अमेरिका में वर्षा में भारी वृद्धि होती है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और समतल मैदानों में कटाव की दर बढ़ जाती है।
- बाढ़ एवं सूखे के कारण होने वाले रोग: बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक खतरों से प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के रोग पनपते हैं।
- अल नीनो जैसी जलवायु प्रणाली से संबंधित बाढ़ विश्व के कुछ हिस्सों में हैजा, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारी फैला सकती है, जबकि इसकी वजह से सूखा प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों में आग लग सकती है जो श्वास संबंधी रोगों का प्रमुख कारण बन सकती है।
- सकारात्मक प्रभाव: कभी-कभी इसका सकारात्मक प्रभाव भी नजर आता है, उदाहरण के लिये अल नीनो, अटलांटिक क्षेत्र में तूफान की घटनाओं को कम करता है।
- दक्षिण अमेरिका में: जहाँ अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका में वर्षा होती है वहीं इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में यह सूखा का कारण बनता है।
- इन सूखे में जलाशय सूख जाते हैं और नदियों में कम पानी होता है जिससे क्षेत्र की जल आपूर्ति को खतरा हो जाता है। सिंचाई के लिये पानी पर निर्भर कृषि क्षेत्र को भी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में: ये हवाएँ सतह के गर्म पानी को पश्चिमी प्रशांत की ओर धकेलती हैं, जहाँ यह एशिया और ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक सीमा स्थित है।
- इंडोनेशिया में उष्ण व्यापारिक पवनों के कारण इक्वाडोर की तुलना में समुद्र की सतह सामान्य रूप से लगभग5 मीटर ऊँची और 4-5 °F गर्म होती है।
- गर्म पानी के पश्चिम की ओर बढ़ने के कारण इक्वाडोर, पेरू और चिली के तटों पर ठंडे पानी सतह से ऊपर की ओर उठते हैं। इस प्रक्रिया को अपवेलिंग के रूप में जाना जाता है।
- अपवेलिंग ठंडे, पोषक तत्त्वों से भरपूर पानी को यूफोटिक ज़ोन, समुद्र की ऊपरी परत तक बढ़ाता है।
- अल नीनो एक जलवायु प्रणाली है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के तापमान में असामान्य रूप से वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):
- ला नीना और अल नीनो के संयुक्त चरणों को अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) कहा जाता है और यह पूरी पृथ्वी पर वर्षा के पैटर्न, वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण और वायुमंडलीय दबाव को प्रभावित करता है।
निरंतर तीसरे ला नीना के प्रभाव:
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ला नीना की स्थिति वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर पर बनी हुई है।
- भारत पर प्रभाव:
- चरम मौसम:
- भारत मौसम विज्ञान भारत (IMD) ने भविष्यवाणी की है कि भारत के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा हो सकती है।
- पश्चिमी घाटों पर औसत या औसत से कम वर्षा हो सकती है।
- उत्तर भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा सामान्य से कम है।
- पश्चिमी हिमालय में हिमपात सामान्य से कम है।
- मैदानी इलाकों में सर्दियों का तापमान सामान्य से कम होता है।
- उत्तर भारत में लंबे समय तक सर्दी का मौसम (विस्तारित सर्दियाँ )।
- पूर्वोत्तर मॉनसून के दूसरे भाग के दौरान अधिक वर्षा।
- कृषि पर नकारात्मक प्रभाव:
- अगर इस दौरान वर्षा हुई तो किसानों की खरीफ की फसल बर्बाद होने का खतरा रहेगा।
- चूँकि खरीफ फसलों की कटाई सितंबर-अंत या अक्टूबर की शुरुआत में शुरू होती है और इससे ठीक पहले की कैसी भी वर्षा फसलों के लिये हानिकारक साबित होगी।
- फसल के साथ बेमौसम वर्षा होने पर किसानों को दोहरा नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
- अगर इस दौरान वर्षा हुई तो किसानों की खरीफ की फसल बर्बाद होने का खतरा रहेगा।
- चरम मौसम:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्स के लिये: प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर:B व्याख्या:
प्रश्न. सूखे को इसके स्थानिक विस्तार, अस्थायी अवधि, धीमी शुरुआत और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभाव को देखते हुए आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सितंबर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में अल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधि पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)) |