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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शून्य दोष, शून्य प्रभाव

  • 19 Jun 2017
  • 4 min read

संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसमें बीमार विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और लंबित पड़े संरचनात्मक सुधारों को लागू करने की दिशा में एक रोड-मैप तैयार किया गया था। आपूर्ति साइड से संबंधित सुधारों में एफ.डी.आई. क्षेत्र में सुधार, व्यापार करने को आसान बनाना (Ease of doing business), भौतिक बुनियादी ढाँचे का विकास करना और प्रतिस्पर्द्धि संघवाद को बढ़ावा देने सहित सभी इस कार्यक्रम में शामिल थे।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • मेक इन इंडिया कार्यक्रम को "शून्य दोष, शून्य प्रभाव" (ZED) के साथ संरेखित करने का प्रयास किया गया है। कार्यक्रम का ज़ेड.ई.डी. फोकस न केवल हासिल करना सबसे मुश्किल होता है, बल्कि समग्र प्रतिस्पर्द्दा को बढ़ावा देने में इसका प्रभाव सबसे टिकाऊ होगा।
  • ‘स्टेटिस्टा-दालिया अनुसंधान (Statista-Dalia Research ) द्वारा 52 देशों में सर्वेक्षण किया गया था। सर्वे में बताया कि 49 देशों में किये गए उत्पादों के सर्वेक्षण में ‘मेड इन जर्मनी’ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके बाद स्विट्ज़रलैंड और यूरोपीय संघ आते हैं। इसमे विनिर्माण क्षेत्र के गुणवत्ता में मामले में चीन को 49वें स्थान पर और भारत को मामूली बेहतर प्रदर्शन के साथ 42वें स्थान पर रखा गया है।
  • इस रैंकिंग में कोई भी अन्य एशियाई देश शामिल नहीं है। अत: भारत के लिये यह एक मौका प्रस्तुत करता है।
  • चीन द्वारा विनिर्माण क्षेत्र में काफी सुधार किया गया है लेकिन गुणवत्ता के मामले में सबसे नीचे है।
  • 'मेड इन इंडिया' में गुणवत्ता को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक अवसर भी है।
  • ‘ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग कॉम्पिटिटिवनेस इंडेक्स’ डेलॉइट टच और द काउंसिल ऑन ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस द्वारा प्रकाशित की गई है। इसमें पाँच शक्तिशाली देशों यथा मलेशिया, भारत, थाईलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम का उदय बताया है।
  • कम लागत वाली उत्पादन नौकरियाँ अब दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में स्थानांतरण हो रही हैं। अत: भारत इसका लाभ उठाने वाले संभावित देशों में से एक हो सकता है।
  • लगभग 131 लाख लोग हमारे देश में 58.5 मिलियन प्रतिष्ठानों में कार्यरत हैं। इन सूक्ष्म इकाईयों के संचालन की बाधाओं को दूर करने के लिये राज्यों को श्रम सुधारों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • अर्थव्यवस्था को बदलने के लिये एक व्यापक नीति की आवश्यकता है। वस्त्रों-निर्माण जैसे क्षेत्रों के लिये ज़ेड.ई.डी. के तहत फोकस्ड रणनीति अपनानी चाहिये। (प्रमाणीकरण, उत्पादकता, तकनीकी गहराई, ऊर्जा दक्षता और आई.पी.आर.)
  • सरकार की तत्काल चिंता रोज़गार सृजन की है। अत: ‘राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद’ और क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (QCI) को एम.एस.एम.ई. स्तर तक गुणवत्ता को बढ़ावा देना चाहिये। 
  • ध्यातव्य है कि ज़ेड.ई.डी. योजना एम.एस.एम.ई. (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र के लिये है, जो वैश्विक मानकों से मेल खाने वाले उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ावा देती है।  इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण पर उत्पादों के नकारात्मक प्रभावों को कम करना है।
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