अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग पर रोक
- 16 Apr 2020
- 8 min read
प्रीलिम्स के लियेविश्व स्वास्थ्य संगठन, COVID-19 मेन्स के लियेWHO की फंडिंग रोकने के कारण और इसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाने के पश्चात् हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने WHO को दी जाने वाली फंडिंग (Funding) पर रोक लगाने की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने WHO की फंडिंग को कुछ समय के लिये रोकने की धमकी दी थी।
- अमेरिका का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब कोरोनावायरस संपूर्ण विश्व को काफी बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कोरोना संक्रमण के कुल मामले 20 लाख के पार जा चुके हैं, इसके अतिरिक्त तकरीबन 134000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
- ज्ञात हो कि 500 मिलियन डॉलर के साथ अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है और मौजूदा समय में अमेरिका ही कोरोनावायरस महामारी से सर्वाधिक प्रभावित है। नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक अमेरिका में कोरोनावायरस संक्रमण के लगभग 600000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और तकरीबन 28000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
कारण
- अमेरिका के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने में विफल रहा है और संगठन ने वायरस के बारे में चीन के ‘दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण संभवतः वायरस ने और अधिक गंभीर रूप धारण कर लिया है।
- विदित हो कि अमेरिका ने कई अवसरों पर कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कुप्रबंधन और वायरस के प्रसार को रोकने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं। अमेरिका का मत है कि WHO यथासमय और पारदर्शी तरीके से वायरस से संबंधित सूचना एकत्र करने और उसे साझा करने में पूरी तरह से विफल रहा है।
प्रभाव
- विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी के इस महत्त्वपूर्ण समय पर फंडिंग को रोकना न केवल वैश्विक निकाय के कामकाज को प्रभावित करेगा बल्कि मानवता को भी चोट पहुँचाएगा।
- अमेरिका WHO की कुल फंडिंग में 15 प्रतिशत का योगदान देता है और अमेरिका द्वारा फंडिंग को रोकना WHO की कार्यप्रणाली को तो प्रभावित करेगा ही बल्कि यह संपूर्ण विश्व की स्वास्थ्य प्रणाली को भी प्रभावित करेगा।
- साथ ही इसके कारण वैश्विक स्तर पर महामारी के विरुद्ध हो रहे प्रयास भी कमज़ोर होंगे।
- कई निम्न और मध्यम-आय वाले देश जो मार्गदर्शन तथा सलाह के अतिरिक्त परीक्षण किट और मास्क जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिये WHO पर निर्भर हैं, पर भी अमेरिका के इस निर्णय का प्रभाव पड़ेगा।
‘अमेरिका प्रथम’ नीति
- कई विश्लेषक अमेरिका के इस निर्णय को अमेरिका की ‘अमेरिका प्रथम’ (America First) नीति का हिस्सा मान रहे हैं।
- ध्यातव्य है कि जब से राष्ट्रपति ट्रंप ने पदभार संभाला है, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक संस्था यूनेस्को (UNESCO), जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक समझौते और ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र की माइग्रेशन संधि का भी विरोध कर रहे हैं।
- इसके अतिरिक्त ट्रंप प्रशासन ने वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund) के वित्तपोषण में और वर्ष 2018 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था के वित्तपोषण में कटौती की घोषणा की थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का वित्त पोषण मुख्य रूप से सदस्य-देशों, लोकोपकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों द्वारा किया जाता है।
- WHO द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, संगठन को 35.41 प्रतिशत फंड सदस्य-देशों (जैसे अमेरिका) के स्वैच्छिक योगदान से, 9.33 प्रतिशत फंड लोकोपकारी संगठनों के योगदान से और लगभग 8.1 प्रतिशत संयुक्त राष्ट्र के संगठनों के योगदान से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त शेष फंडिंग कई अन्य माध्यमों से आती है।
- सदस्य देशों द्वारा दिये जाने वाले स्वैच्छिक योगदान में भारत की तकरीबन 1 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
WHO द्वारा फंड का प्रयोग
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा इस धन राशि का प्रयोग स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिये WHO ने अपने वित्तीय वर्ष 2018-19 के कुल बजट का 19.36 प्रतिशत पोलियो उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रमों पर खर्च किया गया था, इसके अतिरिक्त आवश्यक स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं की बढ़ती पहुँच पर संगठन ने 8.77 प्रतिशत खर्च किया था।
आगे की राह
- विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप का दावा पूरी तरह से सत्य नहीं है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) व्यक्तिगत रूप से किसी भी देश में जाकर जाँच नहीं कर सकता है और वह पूर्ण रूप से सदस्य-राज्यों द्वारा साझा की गई सूचना पर निर्भर करता है।
- दावे के विपरीत WHO लगातार सदस्य-देशों से आग्रह करता रहा है कि वे अपनी परीक्षण पद्धति में तेज़ी लाएँ और अधिक-से-अधिक लोगों को ट्रेस करने, क्वारंटाइन करने की व्यवस्था करें।
- अपनी असफलताओं के लिये पूर्ण रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन को ज़िम्मेदार ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं है और यह निर्णय अमेरिका को अपनी प्रशासनिक विफलताओं को छिपाने में मदद नहीं कर सकता है।
- मुसीबत के समय में दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराने के स्थान पर सभी हितधारकों को एक मंच पर आकर इस समस्या का हल खोजने का प्रयास करना चाहिये, ताकि लगातार बढ़ रही मौतों और संक्रमण की संख्या को कम किया जा सके।