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भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय समावेशन सूचकांक

  • 26 Sep 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ वार्षिक प्रदर्शन समीक्षा बैठक के बाद वित्तीय समावेशन सूचकांक (Financial Inclusion Index) लॉन्च किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Services- DFS), वित्त मंत्रालय एक वार्षिक वित्तीय समावेशन सूचकांक जारी करेगा जो औपचारिक वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के बास्केट तथा उन सेवाओं जिनमें बचत, प्रेषण, क्रेडिट, बीमा और पेंशन उत्पाद शामिल हैं, तक पहुँच और उनके उपयोग का एक मापक होगा।
  • सूचकांक में तीन मापक आयाम होंगे-
  1. वित्तीय सेवाओं तक पहुँच
  2. वित्तीय सेवाओं का उपयोग
  3. गुणवत्ता।
  • यह एकल समग्र सूचकांक वित्तीय समावेशन के स्तर पर समष्टि नीति (Macro Policy) की योजनाओं का मार्गदर्शन करेगा।
  • इंडेक्स के विभिन्न घटक आंतरिक नीति बनाने के लिये वित्तीय सेवाओं के मापन में भी मदद करेंगे।
  • वित्तीय समावेशन सूचकांक का उपयोग विकास संकेतकों में सीधे एक समग्र उपाय के रूप में किया जा सकता है।
  • यह G20 देशों के वित्तीय समावेशन संकेतकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा।
  • यह शोधकर्त्ताओं को वित्तीय समावेशन और समष्टि अर्थव्यवस्था (macro economy) की अन्य परिवर्ती राशियों के प्रभाव का अध्ययन करने में भी सुविधा प्रदान करेगा।
  • यह सूचकांक जनवरी, 2019 में जारी किया जाएगा।

वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) 

  • ‘वित्‍तीय समावेशन' एक ऐसा मार्ग है जिस पर सरकारें आम आदमी को अर्थव्‍यवस्‍था के औपचारिक माध्‍यम में शामिल करके उन्हें आगे बढाने का प्रयास करती हैं ताकि यह सुनिश्‍चित किया जा सके कि अंतिम छोर पर खड़ा व्‍यक्‍ति भी आर्थिक विकास के लाभों से वंचित न रहे तथा उसे अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल किया जाए।
  • ऐसा करके गरीब आदमी को बचत करने एवं विभिन्‍न वित्‍तीय उत्‍पादों में सुरक्षित निवेश करने के लिये प्रोत्‍साहित किया जाता है तथा उधार लेने की आवश्‍कता पड़ने पर वह उन्‍हीं औपचारिक माध्‍यमों से उधार भी ले सकता है।
  • ऋण, भुगतान और धन-प्रेषण सुविधाएँ तथा मुख्यधारा के संस्थागत खिलाड़ियों के लिये उचित और पारदर्शी ढंग से वहनीय लागत पर बीमा सेवा आदि कुछ प्रमुख वित्तीय सेवाएँ हैं।

वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • भारत में मोबाइल बैंकिंग का विस्तार
  • बैंकिंग कॉरस्पॉन्डेट (BC) योजना
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
  • वरिष्‍ठ पेंशन बीमा योजना

वित्तीय समावेशन के लाभ

आम आदमी को अर्थव्यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल किये जाने से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं। 

  • जहाँ एक ओर इससे समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को उनकी ज़रूरतों तथा भविष्‍य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्‍न वित्तीय उत्‍पादों जैसे - बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन आदि के उपयोग से देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्‍त करने के लिये प्रोत्‍साहन प्राप्‍त होता है।
  • वहीं दूसरी ओर, इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्‍त होती है।
  • इसके फलस्‍वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय दृष्‍टि से अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍यधारा में शामिल लोग ऋण सुविधाओं का आसानी से उपयोग कर पाते हैं, फिर चाहे वे संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हों अथवा असंगठित क्षेत्र में, शहरी क्षेत्र में रहते हों अथवा ग्रामीण क्षेत्र में।
  • वित्तीय समावेशन से सरकार को सब्‍सिडी तथा कल्‍याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेरा-फेरी पर रोक लगाने में भी मदद मिलती है, क्‍योंकि इससे सरकार उत्‍पादों पर सब्‍सिडी देने की बजाय सब्‍सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है।

वित्तीय समावेशन के अभाव में होने वाले नुकसान

  • वित्‍तीय समावेशन का अभाव समाज एवं व्‍यक्‍ति दोनों के लिये हानिकारक होता है। जहाँ तक व्‍यक्‍ति का संबंध है, वित्‍तीय समावेशन के अभाव में, बैंकिंग सुविधा से वंचित लोग अनौपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ने के लिये बाध्‍य हो जाते हैं, जहाँ ब्‍याज दरें अधिक होती हैं और प्राप्‍त होने वाली राशि काफी कम होती है।
  • चूँकि अनौपचारिक बैंकिंग ढाँचा कानून की परिधि से बाहर है, अत: उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच उत्‍पन्‍न किसी भी विवाद का कानूनन निपटान नहीं किया जा सकता।
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