लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

शासन व्यवस्था

जम्मू-कश्मीर में दो सार्वजनिक छुट्टियाँ रद्द

  • 04 Jan 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर में हुए वर्तमान बदलाव

मेन्स के लिये:

सरकार के कार्य एवं आम जनमानस पर उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जम्मू-कश्मीर में सरकार ने दो मौजूदा सार्वजनिक छुट्टियों को रद्द कर दिया है और उनके स्थान पर एक नई छुट्टी की शुरुआत की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 5 दिसंबर और 13 जुलाई का सार्वजनिक अवकाश रद्द कर दिया है।
    • ध्यातव्य है कि 5 दिसंबर को शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक, पूर्व जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री) की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
    • 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि 13 जुलाई, 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर निरंकुश डोगरा शासक के विरोध में इकट्ठा हुए 22 कश्मीरियों को मार दिया गया था।
  • सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 26 अक्तूबर को एक नए सार्वजानिक अवकाश की शुरुआत की है, गौरतलब है कि यह अवकाश 26 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्य के भारतीय डोमिनियन में प्रवेश के उपलक्ष्य में दिया जा रहा है।

छुट्टियों से संबधित इतिहास और उनका महत्त्व

  • वर्ष 1846 में अमृतसर की संधि (Treaty of Amritsar) के तहत अंग्रेज़ों ने जम्मू-कश्मीर राज्य को डोगरा राजा महाराजा गुलाब सिंह को बेच दिया था। जम्मू में डोगरा शासन लगभग एक सदी तक चला। 1931 में जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों ने डोगरा शासन की निरंकुशता के खिलाफ आवाज़ उठाई और विद्रोह कर दिया, जिसके कारण 22 मुसलमानों की हत्या कर दी गई। इस विद्रोह को जम्मू- कश्मीर में मुस्लिम पहचान के पहले दावे के रूप में देखा जाता है।
  • 5 दिसंबर का दिन शेख मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ एकीकृत करने के प्रयासों के कारण महत्त्वपूर्ण है। अब्दुल्ला, जवाहरलाल नेहरू के करीबी दोस्त और राजनीतिक सहयोगी थे, जिन्होंने 1939 में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में बदल दिया। मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के विपरीत नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पाकिस्तान के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारत के साथ अपने भविष्य की वकालत की।

उपर्युक्त छुट्टियों को खत्म करने के मायने

  • इस कदम को जम्मू-कश्मीर के वर्ष 1939 की राजनीति से एक प्रस्थान के रूप में देखा जा रहा है। कई लोग इसे शेख अब्दुल्ला की भूमिका को खत्म करने के प्रयास और जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम एकाधिकार के दावे की समाप्ति के रूप में देख रहे हैं।
  • यह जम्मू-कश्मीर में एक राजनीतिक प्रक्रिया के पुनरुद्धार पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (J&K Reorganization Act) के माध्यम से राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन के बाद सरकार ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों पर भी शिकंजा कसा है। गौरतलब है कि यह कदम उस समय उठाया गया है जब जम्मू-कश्मीर विभाजन के पाँच महीने बाद भी यहाँ की स्थिति सामान्य नहीं हुई है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2