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सर्वोच्च न्यायालय ने किया 'न्यायिक समीक्षा' के दायरे का विस्तार

  • 03 Jan 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ

अध्यादेश राज को हतोत्साहित करने वाले एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा की शक्ति में विस्तार करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायपालिका इस बात की जाँच कर सकती है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अध्यादेश प्रख्यापित करने के पीछे कहीं कोई अप्रत्यक्ष मकसद तो नहीं है? गौरतलब है कि शीर्ष अदालत का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा हाल के कुछ वर्षों में अध्यादेश एक श्रृंखला में जारी किये गए हैं|


निर्णय से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिन्दु 

  • संविधान पीठ ने यह फैसला बिहार में अध्यादेश के ज़रिये शिक्षकों की भर्ती से जुड़े मामले में सुनाया है| विदित हो कि बिहार की पूर्व सरकार द्वारा सात बार अध्यादेश जारी करके राज्य में शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन बाद की सरकार ने उस अध्यादेश को जारी करने से इन्कार कर दिया| इससे अध्यादेश के आधार पर बहाल किये गए शिक्षकों की नियुक्ति खत्म हो गई| 
  • गौरतलब है कि इस निर्णय में, केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा एक ही अध्यादेश को बार-बार जारी करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय ने गहरी नाराज़गी जताते हुए कहा कि किसी अध्यादेश को दोबारा जारी करना संविधान से धोखा है|
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अध्यादेश लागू करने को लेकर संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति और अनुच्छेद 213 के तहत राज्यपाल की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर नहीं है|
  • पीठ के अनुसार, अध्यादेश में भी वही शक्तियाँ निहित हैं, जो विधायिका द्वारा पारित किसी कानून में होती हैं, साथ ही किसी भी अध्यादेश को कानून बनाने के लिये विधेयक के रूप में संसद या विधानसभा में पेश न किया जाना संविधान का घोर उल्लंघन है|
  • इसी क्रम में संविधान पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अध्यादेश समाप्त होने या दोबारा जारी होने पर इसके लाभार्थियों को कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता है|

क्या होता है अध्यादेश?

  • दरअसल, जब संसद या विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा होता है तो केंद्र और राज्य सरकार तात्कालिक ज़रूरतों के आधार पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की अनुमति से अध्यादेश जारी करती है|
  • अध्यादेश में संसद/विधानसभा द्वारा पारित कानून जैसी शक्तियाँ होती हैं, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद या राज्य विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश करना अनिवार्य होता है।
  • यदि सदन उस विधेयक को पारित कर दे तो यह कानून बन जाता है, जबकि निर्धारित समय में सदन से पारित नहीं होने की स्थिति में अध्यादेश स्वतः समाप्त हो जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि सरकारें एक ही अध्यादेश को बार-बार जारी करती रही हैं।

क्या होती है न्यायिक समीक्षा?

  • न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायपालिका को प्राप्त वह शक्ति है जिसके तहत वह संविधान तथा विधायिका द्वारा पारित अधिनियमों की जाँच अथवा पुनर्व्याख्या करता है और वह ऐसे किसी भी विधि को लागू करने से इन्कार कर सकता है, अथवा उसके उन प्रावधानों को अविधिमान्य घोषित कर सकता है, जो संवैधानिक प्रावधानों से असंगत हों।
  • न्यायिक समीक्षा की शक्ति उच्च न्यायालयों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 में समाहित है, वहीं उच्चतम न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्तियाँ अनुच्छेद 32 और 136 में निर्दिष्ट हैं|
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