भूगोल
कोलकाता बंदरगाह का महत्त्व
- 15 Jan 2020
- 5 min read
प्रीलिम्स के लिये:कोलकाता बंदरगाह मेन्स के लिये:कोलकाता बंदरगाह का ऐतिहासिक महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार द्वारा कोलकाता बंदरगाह का नाम बदल कर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखने की घोषणा की गई है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2020 कोलकाता बंदरगाह की स्थापना का 150वाँ वर्ष है।
- भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इस बंदरगाह का नाम बदलने संबंधी घोषणा युवा दिवस (12 जनवरी) के अवसर पर कोलकाता में की गई।
कोलकाता पोर्ट का इतिहास:
- 16वीं शताब्दी की शुरुआत में पुर्तगालियों ने पहली बार इस बंदरगाह के वर्तमान स्थान का उपयोग अपने जहाज़ों को आश्रय देने के लिये किया था, क्योंकि हुगली नदी कोलकाता के ऊपरी क्षेत्र नौवहन के लिये असुरक्षित थे।
- माना जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के एक कर्मचारी और प्रशासक जॉब चारनॉक ने वर्ष 1690 में इस स्थान पर एक व्यापारिक केंद्र की स्थापना की थी।
- यह क्षेत्र तीन तरफ से जंगल से घिरे होने के कारण दुश्मन के आक्रमणों से सुरक्षित माना जाता था।
- वर्ष 1833 में ब्रिटिश साम्राज्य में दासता के उन्मूलन के बाद इस बंदरगाह का उपयोग लाखों भारतीयों को गिरमिटिया मज़दूर के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा शासित विभिन्न दूरदराज़ के स्थानों पर भेजने के लिये किया गया था।
- जैसे-जैसे कोलकाता का आकार और व्यापारिक महत्व बढ़ा, यहाँ के व्यापारियों ने 1863 में एक पोर्ट ट्रस्ट की स्थापना की मांग की।
- वर्ष 1866 में औपनिवेशिक सरकार ने एक नदी ट्रस्ट (River Trust) का गठन किया लेकिन यह जल्द ही विफल हो गया और इस पोर्ट का प्रशासनिक अधिकार फिर से सरकार ने ले लिया।
- अंततः वर्ष 1870 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कलकत्ता पोर्ट अधिनियम (1870 का 5वाँ अधिनियम) पारित किया गया और यहाँ कलकत्ता पोर्ट कमिश्नर के कार्यालय का निर्माण हुआ।
- वर्ष 1892 में कोलकाता के खिदिरपुर में बंदरगाह का निर्माण किया गया। खिदिरपुर में दूसरे बंदरगाह का निर्माण वर्ष 1902 में हुआ था।
- कुछ समय बाद पोर्ट पर सामान की आवाजाही अधिक होने के कारण केरोसिन की अधिक आवश्यकता हुई जिसके फलस्वरूप वर्ष 1896 में कोलकाता के बज-बज (Budge Budge) में एक पेट्रोलियम घाट का निर्माण हुआ।
- वर्ष 1925 में, मालवाहक यातायात को समायोजित करने के लिये गार्डन रीच नामक गोदीबाड़े की स्थापना की गई।
- वर्ष 1928 में किंग जॉर्ज नामक एक नए डॉक का निर्माण किया गया। वर्ष 1973 में इसका नाम नेताजी सुभाष डॉक (Netaji Subhash Dock) रख दिया गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान द्वारा इस बंदरगाह पर बमबारी की गई थी।
- स्वतंत्रता के बाद मुंबई, कांडला, चेन्नई और विशाखापत्तनम बंदरगाहों का उपयोग मालवाहक यातायात के लिये किये जाने के कारण कोलकाता बंदरगाह ने अपना प्रमुख स्थान खो दिया।
- वर्ष 1975 में मेजर पोर्ट ट्रस्ट्स एक्ट, 1963 (Major Port Trusts Act, 1963) के लागू होने के बाद बंदरगाह के आयुक्तों का इस पर नियंत्रण समाप्त हो गया।
कोलकाता बंदरगाह के सामने प्राकृतिक चुनौतियाँ:
(Natural challenges facing Kolkata Port)
- कोलकाता बंदरगाह देश का एकमात्र नदी बंदरगाह है जो समुद्र से 203 किमी. की दूरी पर स्थित है।
- यह हुगली नदी पर स्थित है। इस नदी में कई तीव्र मोड़ होने के कारण इसे एक कठिन नौवहन मार्ग माना जाता है।
- इस मार्ग को वर्ष भर नौवहन योग्य बनाए रखने के लिये निष्कर्षण (Dredging) संबंधी गतिविधियाँ चलती रहतीं हैं।
- वर्ष 1975 में निर्मित फरक्का बैराज ने इस बंदरगाह की समस्या को तब काफी कम कर दिया जब गंगा के पानी को भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली की तरफ मोड़ दिया गया।