नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चुनावी वित्त पोषण में पारदर्शिता का प्रश्न

  • 01 Jun 2017
  • 10 min read

संदर्भ
वर्तमान सरकार द्वारा हाल ही में जन प्रतिनिधित्व कानून एवं कंपनी अधिनियम में कुछ संशोधन किये गए हैं। इसके अनुसार राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड (election bond) के माध्यम से चंदा लेने की छूट दी गई है और कॉर्पोरेट  कंपनियों से प्राप्त होने वाले राजनीतिक चंदे  की ऊपरी सीमा को भी खत्म कर दिया गया है।

उक्त संशोधनों के संदर्भ में निर्वाचन आयोग ने विधि एवं न्याय मंत्रालय के समक्ष अपनी असहमति जताते हुए शिकायत दर्ज कराई है। इसके अतिरिक्त, आयोग ने इस पर भी अपनी चिंता प्रकट की है कि सरकार के द्वारा उक्त संशोधन को धन विधेयक के रूप में लोकसभा में लाया गया तथा इस प्रक्रिया से पूर्व आयोग से कोई परामर्श  भी नहीं लिया गया। अतः आयोग ने इस धन को राजनीतिक चंदों में पारदर्शिता को कम करने वाला कदम  बताते हुए सरकार से  इस पर पुनर्विचार करने व सुधार करने  का आग्रह किया है। 

संशोधन से प्रभावित होने वाले प्रावधान  

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम
1. धारा- 29(b)- राजनीतिक दलों द्वारा चंदा स्वीकारने की  पात्रता 
2. धारा- 29(c)- राजनीतिक दलों द्वारा लिये गए चंदों की  घोषणा करना  

कंपनी अधिनियम 
धारा- 182(3)- कॉर्पोरेट कंपनियों के द्वारा दिये जाने वाले राजनीतिक चंदे का विवरण राजनीतिक दलों के नाम के साथ अपने-अपने लेखाओं में अंकित करना एवं उस सूचना को ज़रूरत पड़ने पर उपलब्ध करवाना।

 मुख्य बिंदु

  • इस वर्ष के बजटीय भाषण में “चुनावी फंड में पारदर्शिता” (transparency in  election funding)  शीर्षक के अंतर्गत राजनीतिक चंदों को पारदर्शी बनाने हेतु वित्त मंत्री द्वारा चुनावी बॉण्ड की घोषणा की गई थी।  
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा- 29(b) की पूर्व की व्यवस्था के अनुसार राजनीतिक दलों को विदेशी कंपनियों एवं सरकारी कंपनियों से चंदा लेने पर रोक है, परन्तु चुनावी बॉण्ड के माध्यम से लिये गए चंदों की रिपोर्टिंग न होने की दशा में इसका पता लगा पाना मुश्किल होगा कि उक्त दल के पास किस स्रोत से चंदे की  रकम आ रही है। इस प्रकार, इस दशा में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन होगा।
  • इसके अतिरिक्त, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-29(c) के अंतर्गत राजनीतिक दलों को 20,000 रुपए से अधिक के किसी भी योगदान के लिये दाताओं के विवरण से युक्त कुल वित्तीयन की रिपोर्ट दर्ज करवानी होती है, परन्तु सरकार ने इस धारा में  संशोधन प्रस्तुत करते हुए एक नया प्रावधान बनाया है जिसके अंतर्गत राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉण्ड के माध्यम से लिये गए चंदों का ब्यौरा नहीं देना होगा। इसके बावजूद कि चंदे की राशि  20000 रुपए  से अधिक ही क्यों न हो।
  • कंपनी अधिनियम- 2013 की धारा 182(3) की पूर्व की व्यवस्था के अंतर्गत राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट  क्षेत्र द्वारा दिये जाने वाले चंदे की एक सीमा तय है जो कंपनी के पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभांश के 7.5% से अधिक नहीं हो सकती थी। साथ ही, कंपनियों के द्वारा विभिन्न दलों को दिये गए ब्यौरे के अनुसार कुल चंदों का ब्यौरा देने का प्रावधान था, परन्तु उक्त  संशोधन से इस प्रावधान को खत्म करने संबंधी संशोधन किया गया है। इससे, अब कंपनी को राजनीतिक दलों दिये गए चंदों का ब्यौरा नहीं देना होगा एवं कितनी भी राशि चंदे के रूप में दी जा सकेगी।

क्या है चुनावी बॉ?

  • चुनावी बॉण्ड केवल अधिसूचित बैंकों द्वारा ही जारी किये जा सकेंगे।
  • ये बॉण्ड कुछ विशिष्ट मूल्य वर्ग (Specified  Denomination) में ही होंगे।
  • बॉण्ड को किसी भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल को ही दिया जा सकेगा जिसे वे अपने अकाउंट के माध्यम से मुद्रा में रूपांतरित कर पाएंगे।
  • यह बॉण्ड मूलतः एक बीयरर बॉण्ड (Bearer Bond)  के रूप में होगा।    

वर्तमान संशोधनों के संभावित परिणाम

  • चुनाव आयोग ने मुख्य रूप से यह चिंता प्रकट की है कि चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दिये जाने वाले योगदान की स्थिति में चंदा लेने वाले दल का नाम बताने की शर्त से छूट मिलने के कारण विशेष रूप से इसी कार्य के लिये शेल कंपनी (Shell  Company) बनाने का प्रचलन बढ़ेगा।
  • साथ ही, अब नाम न बताने की शर्त से छूट मिलने के कारण आयकर विभाग को सूचित करने की भी आवश्यकता नहीं रह जाएगी।
  • अब 20000 रुपए या उससे अधिक के सिर्फ उन्ही योगदानों के संदर्भ में आयकर विभाग एवं चुनाव आयोग को सूचित करने की आवश्यकता होगी जो चेक के माध्यम से अथवा डिजिटल तरीके से हस्तानांतरित किये गए हों।
  • इससे पूर्व, 1987 में भी इस प्रकार के एक बेयरर बॉण्ड, इंदिरा विकास पत्र को जारी किया गया था जिसमें  बेयरर (धारक) की पहचान की गोपनीयता बनी रहती थी। परिणामस्वरूप इसे काले धन को छिपाने के लिये उपयोग में लाया जाता था। अंततः सरकार ने इसे वापस ले लिया था। उक्त बॉण्ड की व्यवस्था भी कुछ ऐसे ही परिणाम दे सकती है।

आलोचना

  • आलोचना मूल रूप से इस बात को लेकर हो रही है कि इन संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पेश किया गया, जिस पर राज्यसभा की कोई अधिकारिता नहीं है, यानी सरकार इस तरह से संविधान में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप कार्य नहीं कर रही है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद-110 में स्पष्ट शब्दों में वर्णित है कि धन विधेयक में केन्द्र व राज्य की संचित निधि व नए कर लगाने से संबंधित विषय को छोड़कर अन्य कोई भी विषय इसकी परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा।
  • दूसरा, सरकार इन संशोधनों के माध्यम से चुनाव में पारदर्शिता लाने की बात कर रही है, लेकिन बॉण्ड से चंदा दिये जाने के कारण काले धन के प्रयोग को और अधिक बल मिल सकता है, जिससे स्पष्ट तौर पर पारदर्शिता बाधित होगी। 

चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए अन्य उपाय?

  • राजनीतिक दलों के लिये नकद योगदान पूरी तरह से खत्म हो जाना चाहिये। गौरतलब है कि नकद रूप में 2000 रुपए से कम चंदा स्वीकार करना अभी भी कानूनी है। अतः नकदी की व्यवस्था खत्म कर देने से न केवल 2,000 रुपए की नकदी सीमा के दुरुपयोग को रोकने में सहायता मिलेगी बल्कि इससे डिजिटल इंडिया के प्रचलन को भी धक्का नहीं लगेगा।
  • पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने सुझाव दिया है कि चुनाव आयोग को बॉण्ड जारी करने की बजाय अवैध धन के उपयोग की रोकथाम के लिये एक राष्ट्रीय चुनाव निधि (National Election  Fund) स्थापित करने पर विचार करना चाहिये। इस निधि को दान करने वाले सभी कॉर्पोरेट को 100% कर छूट मिल सकती है। 1998 में इंद्रजीत गुप्त समिति के द्वारा भी कुछ इसी प्रकार का सुझाव दिया गया था जिसमें  सबके लिये राज्य के द्वारा ही वित्त पोषण करने का प्रस्ताव दिया गया था।
  • सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक अधिकारियों के रूप में सभी राजनीतिक दलों को लाना, जिससे चुनाव वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।

निष्कर्ष
चुनावी वित्तीयन का विषय सिर्फ चुनावों के संदर्भ में ही नहीं बल्कि समूची प्रजातांत्रिक व्यवस्था का स्वरूप निर्धारण करने वाला विषय है। इसलिये सरकार को भी इस पर कोई संशोधन करने से पहले महत्त्वपूर्ण पक्षकारों यथा निर्वाचन आयोग, एन.जी.ओ. तथा सिविल सोसाइटी आदि सभी से परामर्श करना चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow