संसद सदस्यों के विशेषाधिकार | 10 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत का उपराष्ट्रपति, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), आयकर विभाग (आईटी), अनुच्छेद 105 मेन्स के लिये:संसद सदस्यों के विशेषाधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने संसदीय विशेषाधिकारों के बारे में संसद सदस्यों की गलत धारणाओं पर प्रकाश डाला कि संसदीय सत्र के दौरान जाँच एजेंसियों द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
- राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को फँसाने के लिये सरकार द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग (आईटी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के खिलाफ कुछ राजनीतिक दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया है।
संसदीय विशेषाधिकार:
- परिचय:
- संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करने से है।
- इन विशेषाधिकारों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में परिभाषित किया गया है।
- इन विशेषाधिकारों के तहत संसद सदस्यों को उनके कर्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व नहीं) से छूट दी गई है।
- विशेषाधिकारों का दावा तभी किया जाता है जब व्यक्ति सदन का सदस्य हो।
- जब वह सदस्य नहीं रहता है तो उसके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया जाता है।
- संसदीय विशेषाधिकारों को व्यापक रूप से संहिताबद्ध करने के लिये कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है बल्कि वे पाँच स्रोतों पर आधारित हैं:
- संवैधानिक प्रावधान
- संसद द्वारा बनाए गए विभिन्न कानून
- दोनों सदनों के नियम
- संसदीय सम्मेलन
- न्यायिक व्याख्या
- संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करने से है।
विशेषाधिकार:
- संसद में बोलने की स्वतंत्रता:
- अनुच्छेद 19 (2) के तहत एक नागरिक को दी गई वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संसद के प्रत्येक सदस्य को प्रदान की गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अलग है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(1) के तहत इसकी गारंटी दी गई है लेकिन स्वतंत्रता उन नियमों और आदेशों के अधीन है जो संसद की कार्यवाही को विनियमित करते हैं।
- सीमाएँ:
- संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार और संसद के नियमों एवं प्रक्रियाओं के अधीन होनी चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 121 के तहत संसद के सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा करने से प्रतिबंधित किया गया है।
- गिरफ्तारी से मुक्ति:
- किसी भी सदस्य को दीवानी मामले में सदन के स्थगन के 40 दिन पहले और बाद में तथा सदन के सत्र के दौरान भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी सदस्य को उस सदन की अनुमति के बिना संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जिससे वह संबंधित है।
- यदि संसद के किसी सदस्य को हिरासत में लिया जाता है, तो गिरफ्तारी के कारण के बारे में संबंधित प्राधिकारी द्वारा अध्यक्ष को सूचित किया जाना चाहिये।
- लेकिन किसी सदस्य को उसके खिलाफ आपराधिक आरोपों में निवारक निरोध अधिनियम, आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (ESMA), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), या ऐसे किसी भी अधिनियम के तहत आपराधिक आरोपों में सदन की सीमा के बाहर गिरफ्तार किया जा सकता है।
- कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाने का अधिकार:
- संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत सदन के सदस्य के अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को सदन की कोई रिपोर्ट, चर्चा आदि प्रकाशित करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- सर्वोपरि और राष्ट्रीय महत्त्व के लिये यह आवश्यक है कि संसद में क्या हो रहा है, इसके बारे में जनता को जागरूक करने के लिये कार्यवाही के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत सदन के सदस्य के अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को सदन की कोई रिपोर्ट, चर्चा आदि प्रकाशित करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- अजनबियों को बाहर करने का अधिकार:
- सदन के सदस्यों के पास अजनबियों यानी जो सदन के सदस्य नहीं हैं, को कार्यवाही से बाहर करने की शक्ति और अधिकार है। सदन में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चर्चा सुनिश्चित करने के लिये यह अधिकार बहुत आवश्यक है।
- उपराष्ट्रपति के अनुसार:
- उपराष्ट्रपति के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने संसदीय कर्तव्यों का पालन कर सकें।
- विशेषाधिकारों में से एक यह है कि संसद सदस्य को संसदीय सत्र या समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले और उसके 40 दिन बाद तक सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
- यह विशेषाधिकार पहले से ही सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A के तहत शामिल है।
- हालाँकि आपराधिक मामलों में संसद सदस्य और आम नागरिक पर समान कानून लागू होते हैं।
- इसका अर्थ है कि संसद सदस्य को सत्र के दौरान या अन्यथा किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से कोई छूट नहीं है।
- विशेषाधिकारों में से एक यह है कि संसद सदस्य को संसदीय सत्र या समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले और उसके 40 दिन बाद तक सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
- केराज्य बनाम के. अजीत और अन्य (2021) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने के लिये प्रवेश द्वार नहीं हैं, खासकर इस मामले में आपराधिक कानून प्रत्येक नागरिक की कार्रवाई को नियंत्रित करता है।
- जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें विधानसभा में आरोपित अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की मांग की गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार प्रतिरक्षा का माध्यम नहीं हैं और जो विधायक बर्बरता एवं अपराध में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिका रतथा आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं।
आगे की राह
- संसद के सुचारू संचालन के लिये सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किये जाते हैं लेकिन ये अधिकार हमेशा मौलिक अधिकारों के अनुरूप होने चाहिये क्योंकि ये हमारे प्रतिनिधि हैं और हमारे कल्याण हेतु काम करते हैं।
- यदि विशेषाधिकार मौलिक अधिकारों के अनुरूप नहीं हैं, तो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये लोकतंत्र का महत्त्व ही खो जाएगा।
- यह संसद का कर्तव्य है कि वह संविधान द्वारा गारंटीकृत किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन न करे। सदस्यों को भी अपने विशेषाधिकारों का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिये, उनका दुरुपयोग नहीं करना चाहिये।