उपासना स्थल अधिनियम | 17 May 2022
प्रिलिम्स के लिये:उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 मेन्स के लिये:भारतीय संविधान, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, संबंधित प्रावधान। |
चर्चा में क्यों ?
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में माँ शृंगारगौरी स्थल की वीडियोग्राफी सर्वेक्षण करने के वाराणसी के एक सिविल न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई करेगा.
- मुख्य तर्क यह है कि वाराणसी न्यायालय का आदेश जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा "स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित" है।
उपासना स्थल अधिनियम:
- यह अधिनियम किसी भी पूजा/उपासना स्थल की वस्तुस्थिति को उसी अवस्था में रोक देता/बनाए रखता है, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को थी।
- छूट:
- अयोध्या में विवादित स्थल को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इस छूट के चलते अयोध्या मामले में इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही।
- अयोध्या विवाद के अलावा इस अधिनियम में इन्हें भी छूट दी गई है:
- कोई भी पूजा स्थल जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या एक पुरातात्त्विक स्थल है जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित है।
- एक ऐसा वाद जो अंतत: निपटा दिया गया हो।
- कोई भी विवाद जो पक्षों द्वारा सुलझाया गया हो या किसी स्थान का स्थानांतरण जो अधिनियम के शुरू होने से पहले सहमति से हुआ हो।
- दंड:
- अधिनियम की धारा 6 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सज़ा का प्रावधान करती है।
- आलोचना:
- इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है, साथ ही यह एक "मनमाना तर्कहीन पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि" आरोपित करता है जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों के धार्मिक अधिकारों को सीमित करता है।
प्रावधान:
- धारा 3: इस अधिनियम की धारा 3 उपासना स्थलों के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
- धारा 4(1): यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए पूजा स्थलों की धार्मिक प्रकृति "पूर्ववत् बनी रहेगी"।
- धारा 4(2): इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
- इस उपखंड का प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही से बचाता है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि पर लंबित हैं, यदि वे कट-ऑफ तिथि के बाद पूजा स्थल के धार्मिक प्रकृति के रूपांतरण से संबंधित हैं।
- धारा 5: यह निर्धारित करता है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
अयोध्या फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट की क्या राय थी?
- संविधान पीठ ने 2019 के अयोध्या फैसले में कानून का हवाला दिया और कहा कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को प्रकट करता है और कार्यवाहीं पर प्रतिबंधित करता है।
- इसलिये कानून भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा हेतु बनाया गया विधायी साधन है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।