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उत्तर प्रदेश में पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में हुआ इज़ाफ़ा

  • 19 Jan 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

हाल ही में, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) “प्रथम” द्वारा जारी ‘ग्रामीण शिक्षा की स्थिति (ग्रामीण) पर वार्षिक रिपोर्ट, 2016’ [Pratham's Annual Status of Education (Rural) report, 2016] के अनुसार, उत्तर प्रदेश में शिक्षा का दिनोंदिन गिरता स्तर राज्य की उन्नति एवं बहुगामी विकास के लिये एक बड़ी चिंता का सबब बनता जा रहा है| इस रिपोर्ट के अंतर्गत शामिल किये गए आकलन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्तमान में राज्य में बीच सत्र में ही विद्यालय छोड़ने वाले 6 - 14 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या वर्ष 2014 के 4.9% से बढ़कर वर्ष 2016 में 5.3% हो गई है|

प्रमुख बिंदु

  • सबसे चिंताजनक बात यह है कि उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के दो अन्य राज्यों (मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़) में भी यही स्थिति देखने को मिल रही है|
  • एक ओर, जहाँ मध्य प्रदेश में बीच सत्र में ही विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में वर्ष 2014 के 3.4% की तुलना में वर्ष 2016 में 4.4% की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है, वहीं दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ राज्य में भी बीच सत्र में विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में वर्ष 2014 के 2% की तुलना में वर्ष 2016 में 2.8% की वृद्धि देखने को मिली है| 
  • उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल तथा मध्य प्रदेश में भी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति दर (50-60%) तक कम पाई गई है|
  • राष्ट्रीय स्तर पर छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों का स्कूलों में नामांकन अनुपात वर्ष 2014 में 96.7% की तुलना में वर्ष 2016 में बढ़कर 96.9% हो गया है, परन्तु कुछ राज्यों का प्रदर्शन स्तर निरंतर गिरता जा रहा है|
  • उक्त रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश (9.9%), राजस्थान (9.7%) तथा मध्य प्रदेश (8.5%) में ग्यारह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों में बीच सत्र में विद्यालय छोड़ने वाली बालिकाओं का अनुपात भी 8% से अधिक पाया गया है|

चिंता के क्षेत्र

  • गौरतलब है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में गणितीय योग्यता तथा पाठन की क्षमता के सन्दर्भ में कुछ साधारण सुधारों के अतिरिक्त कोई खास परिवर्तन देखने को नहीं मिला है जो विद्यार्थी की योग्यताओं के बहुआयामी विकास तथा उज्ज्वल भविष्य के विषय में एक गंभीर चिंता की ओर ध्यान केन्द्रित करता है|
  • उदाहरण के तौर पर, एक अंक से तीन अंक में भाग देने वाले प्रश्नों को हल करने में सक्षम कक्षा आठ के विद्यार्थियों के अनुपात में वर्ष 2010 (68.4%) की तुलना में वर्ष 2014 में (44%) कमी दर्ज़ की गई है जो कि वर्ष 2016 में भी जारी रही| वर्ष 2016 में इस अनुपात में 43.3% की कमी दर्ज़ की गई|
  • हालाँकि, दो अंकों का घटाव करने में सक्षम कक्षा तीन के विद्यार्थियों के अनुपात में वर्ष 2014 (25.7%) की तुलना में वर्ष 2016 (27.7%) में वृद्धि हुई है| 
  • इसके साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा तीन के विद्यार्थियों की अंग्रेज़ी पढ़ने की क्षमता में भी वृद्धि दर्ज़ की गई है| साथ ही, आसान शब्दों को पढ़ने में सक्षम विद्यार्थियों की संख्या में भी वर्ष 2014 (28.5%) की तुलना में वर्ष 2016 में (32%) वृद्धि दर्ज़ की गई है|
  • हालाँकि, यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि कक्षा पाँच में अंग्रेज़ी पढ़ने में सक्षम विद्यार्थियों की संख्या में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है|
  • इसके विपरीत, विद्यार्थियों की अंग्रेज़ी पढ़ने की क्षमता में निरंतर कमी ही दर्ज़ की गई है| वर्ष 2009 में कक्षा आठ के 60.2% विद्यार्थी अंग्रेज़ी के आसान वाक्यों को पढ़ सकने में सक्षम थे, वहीं वर्ष 2014 एवं 2016 में यह संख्या घटकर क्रमशः 46.7% तथा 45.2% हो गई है|
  • इस सबके अतिरिक्त ,विद्यालयों में शौचालयों के उपयोग में अच्छी खासी वृद्धि देखने को मिली है| ध्यातव्य है कि वर्ष 2010 (47.2%) की तुलना में वर्ष 2016 में (68.7%) विद्यालयों में अवस्थित शौचालयों की संख्या में व्यापक वृद्धि देखने को मिली है| वर्ष 2016 में पूरे देश में मात्र 3.5% विद्यालय शौचालय रहित पाए गए|
  • हालाँकि, वर्तमान में भारत सरकार द्वारा देश में एक डिजिटल पहल आरंभ किये जाने के बावजूद कई ग्रामीण विद्यालयों में कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है| जहाँ वर्ष 2014 में देश में मात्र 19.6% विद्यालयों में ही कंप्यूटर उपलब्ध थे, वहीं वर्ष 2016 में तकरीबन 20% विद्यालयों में कंप्यूटरों की उपलब्धता पाई गई|  
  • यद्यपि केरल के तकरीबन 89% विद्यालयों में कंप्यूटर की सुविधा पाई गई, जबकि गुजरात में यह संख्या 75.2%, महाराष्ट्र में 55.1% और तमिलनाडु में 57.3% है|
  • हालाँकि, वर्ष 2014 से 2016 के मध्य राष्ट्रीय स्तर पर निजी विद्यालयों में नामांकन कराने वाले विद्यार्थियों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है|
  • ध्यातव्य है कि इस रिपोर्ट में अध्ययन हेतु भारत के तकरीबन 589 ग्रामीण ज़िलों को आधार बनाया गया है|
  • इस रिपोर्ट में देश के तकरीबन 17,473 गाँवों (3,50,232 घरों एवं 3-16 वर्ष की आयु वर्ग के तकरीबन 5,62,305 बच्चों) को अध्ययन का आधार बनाया गया है|
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