भारत-आसियान संबंधों के परिप्रेक्ष्य में उत्तर-पूर्व | 10 Mar 2018

संदर्भ

  • जब से भारत ने अपनी ‘लुक ईस्ट’ नीति को ‘एक्ट ईस्ट’ में बदला है, तब से भारत-आसियान संबंधो को परिणामोन्मुख और व्यावहारिक बनाने के लिये निरंतर प्रयास किये गए हैं।
  • देश का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील होने के साथ अल्प-विकास का भी शिकार रहा है और इस दृष्टि से भारत-आसियान संबंधों में प्रगति उत्तर-पूर्व भारत के विकास के लिये किये जा रहे प्रयासों हेतु पूरक सिद्ध हो सकती है। 

उत्तर-पूर्व भारत 

  • उत्तर-पूर्व क्षेत्र देश की कुल आबादी का 3.8% और कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 8% भाग का निर्माण करता है।
  • इसके अलावा 5,300 किमी. से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • भूमि की एक संकीर्ण पट्टी जिसे चिकन नेक गलियारा के नाम से भी जाना जाता है, इस क्षेत्र को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ती है। इस कारण भारत सामरिक दबाव की स्थिति में रहता है।
  • इसके समाधान हेतु भारत की मुख्य भूमि के साथ अवसंरचनात्मक कनेक्टिविटी और सीमावर्ती देशों के साथ कनेक्टिविटी के अपग्रेडेशन की आवश्यकता है जिसके लिये बड़ी मात्रा में निवेश आवश्यक है।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (DONER) के अनुसार चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार के सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिये 45,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है।

आसियान (Association of Southeast Asian Nations-ASEAN)

  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी।
  • वर्तमान में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके दस सदस्य देश हैं।
  • इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है।
  • भारत और आसियान अपने द्विपक्षीय व्यापार को $100 अरब के लक्ष्य तक ले जाने के लिये जूझ रहे हैं।
  • इसके लिये अन्य बातों के साथ-साथ स्थल, समुद्र और वायु कनेक्टिविटी में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ताकि माल और सेवाओं के आवागमन की लागत में कटौती की जा सके।

अभी तक किये गए प्रमुख प्रयास 

  • म्याँमार के माध्यम से भारत (मणिपुर के मोरेह) को थाईलैंड से जोड़ने वाला चार-लेन त्रिपक्षीय राजमार्ग एक प्रमुख कनेक्टिविटी परियोजना है जिसे लाओस, कंबोडिया और वियतनाम तक विस्तारित किया जाएगा।
  • इस राजमार्ग के माध्यम से माल और आर्थिक गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये भारत के उत्तर-पूर्व के विकास और कनेक्टिविटी पर ध्यान देना जरूरी है।
  • भारत-आसियान के बीच समुद्री संपर्क स्थापित करने में कलादान मल्टी-मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना एक क्रांतिकारी कदम है।
  • यह परियोजना कोलकाता को म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह से लिंक करने के साथ ही मिज़ोरम को भी नदी और स्थल मार्ग से जोड़ेगा।

उत्तर-पूर्व की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये हाल के कुछ निर्णय 

  • उत्तर-पूर्वी राज्यों को जोड़ने वाली 4,000 किलोमीटर लंबी रिंग रोड का निर्माण।
  • 2020 तक सभी राज्यों की राजधानियों को जोड़ने वाली रेलवे परियोजनाओं में तेज़ी लाना और इसका 15 नए गंतव्यों तक विस्तार।
  • म्यांमार सीमा पर अंतिम छोर तक रेल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।
  • बांग्लादेश के साथ रेल संपर्क बहाल करना।
  • अंत:क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिये ब्रह्मपुत्र और बराक नदी प्रणालियों के पास 20 बंदरगाह आवासीय परियोजनाओं का विकास किया जाएगा।
  • आसियान के साथ व्यावसायिक संबंधों में सहयोग के लिये इस क्षेत्र में हवाई संपर्क बढ़ाना। 
  • विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये कम-से-कम 50 आर्थिक एकीकरण और विकास केंद्रों के साथ परिवहन गलियारों का विकास किया जाएगा।
  • दीमापुर और कोहिमा के बीच चार-लेन राजमार्ग के अलावा अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर के लिये राजमार्गों और विकास योजनाओं को मंज़ूरी के साथ रणनीतिक उद्देश्यों के लिये भी सीमावर्ती इलाकों में कनेक्टिविटी का उन्नयन किया जा रहा है।

अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में जापान की भूमिका 

  • उत्तर पूर्व के विकास और आसियान के लिये कनेक्टिविटी संवर्द्धन के प्रयासों में जापान एक प्रमुख भागीदार के रूप में उभरा है।
  • इस दिशा में ‘जापान इंडिया एक्ट ईस्ट फोरम’ की स्थापना की गई है।
  • यह भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और एशियाई विकास बैंक में स्थापित जापान के पार्टनरशिप फॉर क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के बीच सहक्रिया सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है और इसे जापान की ’फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफ़िक रणनीति’ से जोड़ता है।

उत्तर-पूर्व में अवसंरचनात्मक विकास के लाभ 

  • क्षेत्र में कानून-व्यवस्था में सुधार लाने और अप्रयुक्त पर्यटन संभावनाओं का दोहन करने में भी सहायता मिलेगी।
  • इससे भारत को सस्ते चीनी उत्पादों का आयातक बनने की बजाय वह अपने उत्पादों के निर्यातों को बढ़ा सकता है।
  • त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड उत्तर-पूर्व के साथ कनेक्टिविटी के लिये महत्वपूर्ण राज्य हैं। इन राज्यों में परिवर्तनकारी नीतियां और सहयोगी सरकारें केंद्र सरकार को विकास योजनाओं और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के त्वरित क्रियान्वयन के लिये सक्षम कर सकती हैं।  
  • इससे उत्तर-पूर्व राज्यों की तरफ अंतर-राज्य सीमा विवाद तथा अन्य जातीय संघर्षों पर सामूहिक रूप से फोकस करने, आसियान के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने और व्यापार सुगमता बढ़ाने मे मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

  • दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र आर्थिक रूप से अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र का आर्थिक-वाणिज्यिक महत्त्व इसलिये भी बढ़ जाता है, क्योंकि भारत द्वारा इस क्षेत्र में भारी निवेश किया गया है।
  • आसियान देशों द्वारा भी उत्तर-पूर्व क्षेत्र में कई विकासात्मक परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है। उदाहरण के लिये, आसियान में शामिल सिंगापुर द्वारा उत्तर-पूर्व में स्थित असम में कई कौशल विकास केंद्र खोले गए हैं।इसलिये उत्तर-पूर्व क्षेत्र के विकास और आसियान के साथ संबंधों के संदर्भ में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये। इस क्षेत्र में नई सड़क और रेल लिंक परियोजनाओं के साथ रिवर नेविगेशन, मल्टी मॉडल परिवहन परियोजनाओं, औद्योगिक गलियारों की स्थापना करने जैसे प्रयासों के साथ ही हस्तशिल्प तथा खाद्य प्रसंस्करण पर ज़ोर देते हुए अन्य आर्थिक गतिविधियों जैसे-हाट या स्थानीय बाजार, कृषि, बागवानी, हथकरघा आदि को भी बढ़ावा देना ज़रुरी है।