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भारतीय राजव्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे प्रभावशाली निर्णय

  • 19 Sep 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आम कानून व्यवस्था में न्याय देने के लिये आधार का कार्य करने के साथ ही, एक उदाहरण स्थापित करने का भी कार्य करता है। इसी संदर्भ में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के मामले और धारा 377 पर दिये गए फैसले को निस्संदेह इतिहास में ऐतिहासिक निर्णय के रूप में गिना जाएगा और यह भविष्य के कई मामलों को प्रभावित भी करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख प्रगतिशील निर्णय

  • मेनका गांधी मामले ने 1970 के दशक के अंत में कानूनी न्यायशास्त्र में बदलाव का जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अधिक सक्रिय भूमिका निभाई और आपातकाल के बाद अपनी वैधता पर ज़ोर देने की कोशिश की।
मेनका गांधी बनाम संघ 1978
  • वर्ष 1977 में मेनका गांधी (वर्तमान महिला और बाल विकास मंत्री) का पासपोर्ट वर्तमान सत्तारूढ़ जनता पार्टी सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था।
  • इसके जवाब में उन्होंने सरकार के आदेश को चुनौती देने के लिये सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की।
  • हालाँकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार का पक्ष न लेते हुए एक अहम फैसला सुनाया।
  • यह निर्णय सात न्यायाधीशीय खंडपीठ द्वारा किया गया, जिसमें इस खंडपीठ द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को दोहराया गया, जिससे यह फैसला मौलिक अधिकारों से संबंधित मामलों के लिये एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण बना।
केशवानंद भारती मामला 1973
  • वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की अब तक की सबसे बड़ी संविधान पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि भारत में संसद नहीं बल्कि संविधान सर्वोच्च है।
  • साथ ही, न्यायपालिका ने टकराव की स्थिति को खत्म करने के लिये संविधान के मौलिक ढाँचे के सिद्धांत को भी पारित कर दिया। इसमें कहा गया कि संसद ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती है जो संविधान के मौलिक ढाँचे को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित करता हो।
  • न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के तहत न्यायपालिका संसद द्वारा किये गए संशोधन की जाँच संविधान के मूल ढाँचे के आलोक में करने के लिये स्वतंत्र है।  
  • इसी तरह, केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने संसद को अपनी 'मूल संरचना' को बदलने से रोका, जो भारतीय राज्य को अपने कई दक्षिण एशियाई समकक्षों (चाहे अधिनायकवादी शासन हो या अन्य अतिरिक्त संवैधानिक माध्यमों से) के समान गिरने से बचाने के लिये व्यापक रूप से जाना जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट एक अभिलेखीय अदालत होगी और इस तरह की अदालत को सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जिसमें स्वयं की अवमानना ​​के लिये दंडित करने की शक्ति भी शामिल है।
  • अभिलेख न्यायालय से आशय उस उच्च न्यायालय से है, जिसके ‘निर्णय’ सदा के लिये लेखबद्ध होते हैं और जिसके अभिलेखों का प्रमाणित मूल्य होता है। 
  • उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में प्रक्रियात्मक मुद्दों से निपटने के लिये सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उदाहरण महत्त्वपूर्ण हैं।
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