विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सिकुड़ रही चंद्रमा की सतह
- 15 May 2019
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चर्चा में क्यों ?
चंद्रमा करीब 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व अस्तित्त्व में आया था, तब से लेकर आज तक उसमें होने वाली विवर्तनिक क्रियाओं के कारण उसकी ऊर्जा का धीरे-धीरे ह्रास (अर्थात ठंडा होने से) हो रहा है।
इसी कारण चंद्रमा की सतह लगातार सिकुड़ रही है। यह ठीक वैसे ही है जैसे अंगूर का किशमिश में रूपांतरण होता है। इसके परिणामस्वरूप बीते कई सैकड़ों वर्षों में चंद्रमा की सतह लगभग 150 फीट तक पतली हो चुकी है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिका के नासा संस्थान के चन्द्र टोही कृत्रिम उपग्रह (Lunar Reconnaissance Orbiter-LRO) से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ कि चंद्रमा तेज़ी से सिकुड़ रहा है। इसका कारण उसकी सतह पर उपस्थित झुर्रियाँ और आने वाले भूकंप है।
- लगभग 12000 से अधिक तस्वीरों का सर्वेक्षण करने से पता चला है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास उपस्थित लूनर बेसिन मारे फ्रिगोरिस (Lunar Basin Mare Frigoris) में दरार पड़ रही है और यह अपनी जगह से खिसक रही है। चंद्रमा पर कई विशाल बेसिनों में से मारे फ्रिगोरिस एक है। भूगर्भीय दृष्टिकोण से इन बेसिनों को मृत माना जाता है।
- हमारे ग्रह (पृथ्वी) की तरह चंद्रमा के नीचे विवर्तनिक प्लेटें (Tectonic Plates) नहीं पाई जाती हैं जिस कारण से चन्द्रमा पर विवर्तनिक क्रियाओं के फलस्वरूप ऊर्जा का ह्रास हो रहा है।
- चन्द्रमा की सतह काफी नाज़ुक हो रही है, साथ ही इस पर घटित होने वाली क्रियाओं से आरोपित बल के कारण इसकी सतह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर इसकी नजदीकी सतह पर एकत्रित हो रही है जिसके कारण यह सिकुड़ रहा है।
- 1960-70 के दशक में अपोलो के अंतरिक्षयात्री ने सर्वप्रथम चन्द्रमा पर भूकंपीय गतिविधियों का पता लगाया था। एक अध्ययन में उन्होंने पाया कि ऊपरी सतहों की तुलना में आतंरिक सतहों पर बहुत अधिक संख्या में भूकंप आए।
- अपोलो मिशन द्वारा किये गए विश्लेषण को प्राकृतिक भू-विज्ञान ने प्रकाशित किया एवं इसने चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन किया।
- भूगर्भ विज्ञानी एवं मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर निकोलस शिमर ने कहा कि लाखों वर्ष पूर्व घटित होने वाली घटनाओं की पुनरावृत्ति आज भी हो रही हैं।
लूनर रेकांनैस्संस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbitor-LRO)
LRO भविष्य में चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मानवयुक्त मिशन की तैयारी की दिशा में लूनर प्रीकर्सर एंड रोबोटिक प्रोग्राम (Lunar precursor and Robotic program-LPRP) के अंतर्गत चंद्रमा के लिये शुरू किया नासा का एक मिशन है।
उद्देश्य-
- चंद्रमा पर संभावित संसाधनों की पहचान करना।
- चन्द्र की सतह के विस्तृत नक्शे एकत्र करना।
- चंद्रमा के विकिरण स्तरों पर आँकड़े एकत्र करना।
- उन संसाधनों के लिये चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar regions) का अध्ययन करना जो भविष्य के मानवयुक्त मिशन या रोबोटिक सैंपल रिटर्न मिशन (Robotic Sample Return Mission) में इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
- भविष्य के रोबोटिक एक्सप्लोरर्स (Robotic Explorers), ह्यूमन लूनर लैंडिंग साइटों (Human Lunar Landing Sites) को चिह्नित करने तथा भविष्य की चन्द्र मानव अन्वेषण प्रणाली (human exploration of the Moon) हेतु उपयोग किये जा सकने वाले उपायों/तकनीकियों को ग्रहण करने के लिये मानक तय करना।
अपोलो मिशन (Apollo Mission)
- अपोलो नासा का एक कार्यक्रम था जिसका उद्देश्य पृथ्वी के अलावा अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों तक पहुँच बढ़ाना था।
- पहली बार वर्ष 1968 में अपोलो मिशन के तहत उड़ान भरी गई। चंद्रमा पर पहला मानवयुक्त अभियान अपोलो 8 था, जिसने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाया था। हालाँकि, अपोलो 8 चंद्रमा पर नहीं उतरा और वापस पृथ्वी पर आ गया था।
- मिशन अपोलो 11 पहली बार 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर उतरा। इस मिशन का नील आर्मस्ट्रोंग भाग थे। वह चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले पहले व्यक्ति थे।