स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन | 26 Oct 2022

प्रिलिम्स के लिये:

WHO, WMO, Covid-19, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदुषण, हीट एक्सपोज़र, COP-27।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन, पेरिस समझौता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य पर लैंसेट काउंटडाउन (The Lancet Countdown on Health and Climate Change) ने ‘जीवाश्म ईंधन की निर्भरता’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दिखाया गया था कि वर्ष 2000-2004 से 2017-2021 तक भारत में गर्मी से संबंधित मौतों में 55% की वृद्धि हुई है।

स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट पर लैंसेट काउंटडाउन:

  • ‘द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज’ का प्रकाशन वार्षिक तौर पर किया जाता है, यह एक अंतर्राष्ट्रीय और बहु-विषयक सहयोग है, जो मुख्य तौर पर जलवायु परिवर्तन की बढ़ती स्वास्थ्य प्रोफाइल की निगरानी करता है, साथ ही यह पेरिस समझौते के तहत विश्व भर में सरकारों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के अनुपालन का स्वतंत्र मूल्यांकन भी प्रदान करता है।
  • अध्ययन में बताया गया है कि विश्व की आबादी का 50% और उत्सर्जन का 70% का प्रतिनिधित्व ब्राज़ील, चीन, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, यूके और अमेरिका द्वारा किया जाता है।
  • लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट 2015 के स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट आयोग के बाद स्थापित की गई थी।
  • यह पाँच प्रमुख डोमेन में 43 संकेतकों को ट्रैक करती है:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जोखिम और सुभेद्यता, स्वास्थ्य के लिये अनुकूलन, योजना एवं लचीलापन; शमन कार्रवाई तथा स्वास्थ्य सह-लाभ, अर्थव्यवस्था वित्त व सार्वजनिक और राजनीतिक जुड़ाव।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • वैश्विक समस्याएँ पैदा करने वाली सब्सिडी:
    • कई देशों में जीवाश्म ईंधन की खपत के लिये सब्सिडी वैश्विक समस्याएँ पैदा कर रही है, जिसमें वायु की गुणवत्ता में गिरावट, खाद्य उत्पादन में गिरावट और उच्च कार्बन उत्सर्जन से जुड़े संक्रामक रोग का खतरा बढ़ रहा है।
      • वर्ष 2021 में 80% देशों ने कुल 400 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के रूप में प्रदान किये।
      • वर्ष 2019 में भारत ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर कुल 34 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च किये, जो कुल राष्ट्रीय स्वास्थ्य खर्च का 5% है।
    • भारत में वर्ष 2020 में जीवाश्म ईंधन प्रदूषकों के संपर्क में आने के कारण 3,30,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
  • आयु समूहों पर बढ़ते तापमान का प्रभाव:
    • वर्ष 1985-2005 की तुलना में वर्ष 2012-2021 तक एक वर्ष से कम उम्र के शिशुओं ने प्रति वर्ष औसतन 72 मिलियन से अधिक व्यक्ति हीटवेव का अनुभव किया।
    • भारत में 65 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों ने इसी अवधि के दौरान 301 मिलियन अधिक व्यक्ति हीटवेव का अनुभव किया।
    • वर्ष 2000-2004 से वर्ष 2017-2021 तक भारत में गर्मी से होने वाली मौतों में 55% की वृद्धि हुई।
  • जीडीपी पर प्रभाव:
    • 2021 में भारतीयों ने राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 5.4% के बराबर आय के नुकसान के साथ गर्मी के संपर्क में आने के कारण 167.2 बिलियन संभावित श्रम घंटे खो दिये।
  • डेंगू संचरण:
    • वर्ष 1951-1960 से वर्ष 2012-2021 तक, एडीज एजिप्टी द्वारा डेंगू संचरण के लिये उपयुक्त महीनों की संख्या में 1.69% की वृद्धि हुई, जो प्रत्येक वर्ष 5.6 महीने तक पहुँच गई।

सिफारिशें:

  • वायु की गुणवत्ता में सुधार से जीवाश्म ईंधन से निकलने वाले पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में आने से होने वाली मौतों को रोकने में मदद मिलेगी।
  • समस्य के समाधान के लिये जलवायु समाधान विकसित करना । जलवायु संकट न केवल ग्रह के स्वास्थ्य के लिये बल्कि हर जगह लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है,इसका कारण है ज़हरीला वायु प्रदूषण, खाद्य सुरक्षा में कमी, संक्रामक रोग के प्रकोप के बढ़ते जोखिम, अत्यधिक गर्मी, सूखा, बाढ़, आदि।
  • इसलिये सरकारों को पर्यावरण संरक्षण पर अधिक ध्यान देना चाहिये और अधिक संसाधनों का निवेश करना चाहिये।
  • स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिये अस्वच्छ ईंधन के उपयोग को को जल्द से जल्द कम करने की आवश्यकता है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु सरकार द्वारा की गई पहलें:

स्रोत: द हिंदू