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स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन

  • 13 Feb 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज' (The Lancet Countdown on Health and Climate Change) के नए शोध में ग्लोबल वार्मिंग को ‘2 डिग्री सेल्सियस’ तक सीमित करने के पेरिस समझौते के अनुरूप जलवायु योजनाओं- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDC) को अपनाने से होने वाले स्वास्थ्य लाभों पर प्रकाश डाला गया है।

  • ‘द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज’ का प्रकाशन वार्षिक तौर पर किया जाता है,  यह एक अंतर्राष्ट्रीय और बहु-विषयक सहयोग है, जो मुख्य तौर पर जलवायु परिवर्तन की बढ़ती स्वास्थ्य प्रोफाइल की निगरानी करता है और साथ ही यह पेरिस समझौते के तहत विश्व भर में सरकारों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के अनुपालन का स्वतंत्र मूल्यांकन भी प्रदान करता है।
  • अध्ययन में बताया गया है कि विश्व की आबादी का 50% और उत्सर्जन का 70%  का प्रतिनिधित्व ब्राज़ील, चीन, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, यूके और अमेरिका द्वारा किया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

शोध के मुख्य बिंदु:

  • शोध के तीन प्रमुख पहलू: इस शोध के तहत  जिन तीन पहलुओं पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया गया है उनमें वर्तमान कार्यप्रणाली को जारी रखना, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु प्रयासों में वृद्धि तथा स्वास्थ्य को जलवायु परिवर्तन शमन हेतु किये जा रहे प्रयासों के केंद्र में रखना शामिल हैं।
    • स्वास्थ्य को NDC के केंद्र में रखने से महत्त्वकांक्षाओं और स्वास्थ्य सह-लाभों को बढ़ाने का अवसर मिल सकता है।
  • वर्ष 2040 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा कर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
    • पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त कर और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को अपनाने से बेहतर आहार के कारण 6.4 मिलियन लोगों की मृत्यु  हो सकती है। स्वच्छ हवा के परिणामस्वरूप 1.6 मिलियन तथा नौ देशों में प्रतिवर्ष व्यायाम के चलते 2.1 मिलियन लोगों के जीवन में वृद्धि होती है।
  • अध्ययन से प्राप्त संकेतों से पता चलता है कि यदि भारत पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करने में सफल रहता है तो यह स्वच्छ हवा के परिणामस्वरूप 4.3 लाख लोगों को और बेहतर आहार के चलते 17.41 लाख लोगों को बचाने में सक्षम होगा।

पेरिस समझौता: 

  • पेरिस समझौता के बारे में:
    • यह पहला वैश्विक रूप से बाध्यकारी वैश्विक जलवायु परिवर्तन समझौता है।
    • जिसे दिसंबर 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन (Paris climate conference- COP21) में अपनाया गया था।
  •  उद्देश्य:
    • पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से  नीचे लाना तथा इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना।
  • दीर्घकालीन लक्ष्य: 
    • शुद्ध शून्य उत्सर्जन हेतु एक दीर्घकालिक वैश्विक लक्ष्य। देशों ने वैश्विक उत्सर्जन को जल्द-से-जल्द चरम स्तर से नीचे लाने के प्रयास का वादा किया है। 
    • महत्त्वपूर्ण रूप से वैश्विक देशों द्वारा इस सदी के उत्तरार्द्ध में ग्रीनहाउस गैसों के स्रोत और मानवजनित उत्सर्जन के मध्य संतुलन स्थापित  करने का संकल्प लिया गया।
  • क्रिया विधि: 
    • सम्मेलन शुरू होने से पहले 180 से अधिक देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती या अंकुश लगाने हेतु राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (INDCs) के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता प्रस्तुत की ।
    • INDC को समझौते के तहत मान्यता प्रदान की गई थी, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
  • अनुदान: 
    • यह निर्धारित करता है कि विकसित देश शमन  (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) दोनों के संबंध में विकासशील देशों की सहायता हेतु वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएंगे। अन्य देशों को स्वेच्छा से इस प्रकार का समर्थन प्रदान करने या जारी रखने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।

लक्ष्य को प्राप्त करने में समस्याएँ:

  • कार्यान्वयन की धीमी गति: 
    • वर्ष 2025-2030 तक उत्सर्जन को कम करने के लिये अपने राष्ट्रीय योगदान को अद्यतन करने हेतु अधिकांश देशों की गति धीमी रही है, हालांकि कई देशों द्वारा हाल के दिनों में शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की घोषणा की गई है।
  • साख: 
    • राष्ट्रों की योजनाएंँ और नीतियाँ दीर्घकालिक शून्य लक्ष्यों को पूरा करने हेतु पर्याप्त रूप से विश्वसनीय नहीं हैं:
      • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) 1.5 डिग्री सेल्सियस रिपोर्ट ने इस बात का संकेत दिया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा इसे इस सीमा के भीतर  रखने के लिये वैश्विक CO2 उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक 45% कम करके वर्ष 2010 के स्तर पर लाना होगा , लेकिन वर्तमान राष्ट्रीय योगदान इस कमी को ट्रैक करने के लिये नहीं है।
      • वर्ष 2020 में पेरिस समझौते से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा स्वयं को अलग कर लेना इस समझौते की सार्वभौमिकता में कमी लाता  है जो जलवायु सहयोग में राज्यों के विश्वास को कम करता है। हालांँकि अमेरिका ने हाल ही में समझौते  को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया शुरू की है।
  • जवाबदेही: 
    • दीर्घकालिक शुद्ध शून्य लक्ष्यों और अल्पकालिक राष्ट्रीय योगदान हेतु किसी भी प्रकार की कोई सीमित या जवाबदेही निर्धारित नहीं की गई है।
    • पारदर्शिता ढांँचे में किसी भी प्रकार के ठोस समीक्षा कार्य  (Robust Review Function) को शामिल नहीं किया गया है। अनुपालन समिति का कार्य बाध्यकारी प्रक्रियात्मक दायित्वों की एक छोटी सूची के साथ अनुपालन सुनिश्चित करने तक सीमित है।
  • निष्पक्षता:
    • निष्पक्षता और न्याय दोनों मुद्दे पीढ़ियों के मध्य अपरिहार्य हैं।
    • नेट शून्य लक्ष्य (Net Zero Targets) और नेट शून्य (Net Zero) को प्राप्त करने हेतु अपनाए गए विकल्पों की निष्पक्षता की जाँच करने हेतु किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है कि राज्यों द्वारा अन्य राज्यों की तुलना में कितना उत्सर्जन किया जा रहा है या उन्हें कितना उत्सर्जन करना चाहिये।

भारतीय परिदृश्य

भारत द्वारा वर्तमान उत्सर्जन:

  • संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वास्तव में वैश्विक औसत से 60% कम है।
  • वर्ष 2019 में देश में उत्सर्जन 1.4% बढ़ा है, जो पिछले एक दशक में प्रतिवर्ष 3.3% के औसत से काफी कम है।

भारत द्वारा वर्ष  2030 तक INDC के लक्ष्यों को  प्राप्त करना:

  • उत्सर्जन तीव्रता को जीडीपी के लगभग एक-तिहाई तक कम करना।
  • बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
  • 2030 तक भारत द्वारा वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक (वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने का एक साधन) के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।

उत्सर्जन को नियंत्रण  करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए उपाय:

  • भारत स्टेज (बीएस) VI मानक: ये वायु प्रदूषण की निगरानी हेतु सरकार द्वारा जारी उत्सर्जन नियंत्रण मानक हैं।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन: भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से स्थायी विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक बड़ी पहल है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर संकर नीति 2018: इस नीति का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे और भूमि के इष्टतम और कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) संकर प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा प्रदान करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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