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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में बढ़ता धर्म का व्यवसाय

  • 19 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ 
हाल ही में हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा के पश्चात उत्तराखंड के मुख्यमंत्री राज्य में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं को लेकर आशावादी बने हुए हैं; परन्तु यहाँ प्रश्न यह उठता है कि भारतीयों में धार्मिक पर्यटन कितना लोकप्रिय है? क्या धर्म और वर्ग तीर्थयात्राओं पर जाने वाले लोगों की संख्या को प्रभावित करते हैं?

प्रमुख बिंदु

  • दिल्ली स्थित केंद्र में ‘लोकनीति’ द्वारा किये गए एक अध्ययन से यह पता चला कि दो भारतीयों में से तकरीबन एक आगामी दो वर्षों में धार्मिक पर्यटन पर जाने की योजना बना रहा है तथा विगत वर्षों में भी ऐसा कई बार हो चुका है|
  • विदित हो कि सभी बड़े धार्मिक वर्गों में जनसंख्या के एक बड़े हिस्से ने पिछले दो वर्षों में धार्मिक पर्यटन किया है| धार्मिक पर्यटन का तात्पर्य तीर्थयात्रा पर जाने से है, हालाँकि इसमें वहाँ रात भर ठहरने या न ठहरने को शामिल नहीं किया गया है| गौरतलब है कि धार्मिक पर्यटन के प्रसार में कई महत्त्वपूर्ण अंतर-धार्मिक भिन्नताएँ थीं; जहाँ सिक्खों में से तीन-चौथाई लोग तीर्थस्थलों पर जाते हैं वहीं मुसलमानों और ईसाइयों में एक-तिहाई लोग ही तीर्थयात्रा को वरीयता देते हैं|
  • क्या वर्ग धार्मिक पर्यटन का निर्धारण करने में कोई भूमिका निभाता है? हिन्दुओं में वर्ग का धार्मिक पर्यटन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| यह परिणाम लोकनीति के बहुविमीय आर्थिक वर्ग सूचकांक पर आधारित है जिनमे आय, संपति, निवास स्थान और पेशे को ध्यान में रखकर अध्ययन किया गया था|
  • एक लोकप्रिय धारणा कि वृद्ध लोग तीर्थयात्रा पर जाना अधिक पसंद करते हैं, अब गलत साबित हो रही है| अब इसमें आय की कोई भूमिका नहीं रह गई है क्योंकि अब वृद्धों के साथ-साथ बच्चे तथा युवा भी तीर्थ स्थानों को प्राथमिकता दे रहे हैं| मुस्लिमों में 56 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु वर्ग के लोग धार्मिक स्थानों पर जाना अधिक पसंद करते हैं| हालाँकि, हिन्दुओं में इस प्रकार का कोई भी लिंग आधारित अंतर नहीं है, परन्तु मुसलमानों में धार्मिक स्थानों पर महिलाओं से अधिक पुरुषों को ही देखा जाता है|
  • इसी प्रकार के एक अन्य अध्ययन में यह पाया गया कि 25% से अधिक भारतीय विगत 4-5 वर्षों में अधिक धार्मिक बन चुके हैं| यह प्रवृत्ति अन्य धर्मों में भी पाई गई है| वर्ष 2007 और 2015 के मध्य भारत में धर्म को महत्त्वपूर्ण मानने वाले लोगों की संख्या 11% की बढ़ोतरी के साथ 80%  हो गई है|
  • भारतीयों द्वारा धार्मिक स्थानों को पर्यटन स्थलों के रूप में उच्च वरीयता दी गई है| वर्ष 2008 में 39% लोगों ने छुट्टियों के दिनों में पर्यटन के लिये तीर्थ स्थानों और पवित्र स्थानों में जाने को प्राथमिकता दी|
  • हालाँकि, ये आँकड़े राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा वर्ष 2008-09 के लिये घरेलू पर्यटन पर किये गए अध्ययन के आँकड़ों से थोड़े ही भिन्न थे| रिपोर्ट में पाया गया कि सभी यात्राओं में से तीन-चौथाई यात्राएँ धार्मिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की जाती हैं, जबकि इस सर्वेक्षण से पूर्व के वर्ष में मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर की गई यात्राओं का आँकड़ा 10 में से एक था| यद्यपि एनएसएसओ ने ऐसी ही एक रिपोर्ट वर्ष 2014-15 में भी जारी की थी, परन्तु इसकी तुलना लोकनीति के अध्ययन के आँकड़ों से नहीं की जा सकती है| 
  • एनएसएसो की रिपोर्ट यह प्रदर्शित करती है कि धार्मिक यात्रा पर होने वाला औसत खर्च इस अवधि के दौरान दोगुने से भी अधिक हो गया है तथा इसे प्रत्येक घर से ऐसी यात्राओं पर जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के औसत के मामले में शीर्ष से दूसरे स्थान पर रखा गया है|
  • अतः यह कहा जा सकता है कि धार्मिक पर्यटन को भारत की पर्यटन नीति में प्राथमिकता दी जानी चाहिये|

क्या है धार्मिक पर्यटन?

  • इसे सामान्यतः विश्वास पर्यटन (faith tourism ) भी कहा जाता है| 
  • यह पर्यटन का एक प्रकार है जहाँ लोग व्यक्तिगत रूप से या समूहों  में तीर्थ स्थानों पर जाते हैं| 
  • विश्व का सबसे बड़ा सामूहिक धार्मिक पर्यटन मक्का (सऊदी अरब) में प्रतिवर्ष हज के दौरान होता है।
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