99 वर्षों बाद अमेरिकी महाद्वीप में पूर्ण सूर्य ग्रहण | 21 Aug 2017
चर्चा में क्यों ?
वर्ष 2017 का दूसरा सूर्य ग्रहण आज रात दिखाई देगा। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। भारतीय समय के अनुसार यह रात में 9.15 मिनट में शुरू होगा और रात में 2.34 बजे समाप्त होगा। पहला सूर्य ग्रहण 26 फरवरी को लगा था।
यह यूरोप, उत्तर-पूर्व एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा आर्कटिक क्षेत्र में दिखेगा। अमेरिका में इसे सदी का “सबसे महान” सूर्य ग्रहण (The Great American Solar Eclipse) बताया जा रहा है। 99 वर्षों बाद अमेरिकी महाद्वीप में यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा।
प्रमुख विशेषताएँ
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आईआईएसईआर कोलकाता तथा दुनिया भर के वैज्ञानिक अपने सिद्धांतों को सत्यापित करने के लिये इस ग्रहण का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं।
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ग्रहण के दौरान सूर्य के बाह्य कोरोना पर खगोलशास्त्रियों की नज़र होगी। वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश करेंगे कि कोरोना का संबंध अंतरिक्ष के मौसम से कैसे है?
कोरोना (Corona) क्या है ?
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कोरोना सूर्य की बाहरी परत है। सूर्य ग्रहण के दौरान यह बहुत चमकती है।
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वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करके कोरोना के आकार की भविष्यवाणी की है। यदि उनकी भविष्यवाणी सही सिद्ध होती है तो उनके द्वारा दिया गया सूर्य का मॉडल मान्य होगा और फिर वे अंतरिक्ष में मौसम की सटीक भविष्यवाणियाँ कर सकते हैं।
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भारतीय विज्ञान अध्ययन और अनुसंधान संस्थान, कोलकाता (Indian Institutes of Science Education and Research, IISER) के तहत सीईएसएसआई (Centre for Excellence in Space Sciences India-CESSI) भी इसी कार्य में लगी हुई है।
चित्र- चुंबकीय क्षेत्र संरचना, कोरोना
अंतरिक्ष में मौसम
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वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष में मौसम आधुनिक प्रौद्योगिकियों जैसे- उपग्रह का संचालन, दूरसंचार, जीपीएस नेविगेशन नेटवर्क और इलेक्ट्रिक पॉवर ग्रिड पर प्रभाव डालता है।
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इसलिये सूर्य ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाएँ, जो कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र के बारे ज्ञान प्राप्त करने का मौका प्रदान करती है, सौर भौतिकविदों के लिये उनके सैद्धांतिक विचारों और मॉडलों का परीक्षण एवं परिष्कृत करने का सुअवसर भी प्रदान करती हैं।
आइंस्टीन की सापेक्षता
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सापेक्षता के सिद्धांत (1915) के अनुसार जिसे गुरुत्वाकर्षण माना जाता है, दरअसल वह अंतरिक्ष और समय की वक्रता (curvature) है।
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आइंस्टीन ने के अनुसार इसे सिद्ध करने का तरीका यह है कि ग्रहण के दौरान यह दिखाया जाए कि दूर से किसी तारे से आती प्रकाश की किरण ग्रहण के दौरान झुक जाती है। वर्ष 1919 के ग्रहण के दौरान आर्थर एडिंगटन ने प्रकाश के झुकाव को देखा था, तब आइंस्टीन की यह बात सत्य सिद्ध हुई।
हिलियम की खोज
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1868 में फ्रांस के एक वैज्ञानिक पियरे जॉनसन ने आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले से एक स्पेक्ट्रोस्कोप के माध्यम से ग्रहण के दौरान एक नए तत्त्व हीलियम की पहचान की थी।
चन्द्रमा की दूरी
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ईसा पूर्व 150 में सूर्य ग्रहण के दौरान, एक यूनानी खगोलविज्ञानी हिपर्कसस ने निरीक्षण किया कि तुर्की में चंद्रमा ने सूर्य को पूरी तरह से ढक लिया था, जबकि वहाँ से करीब 1,000 किलोमीटर दूर स्थित मिस्र में सूर्य लगभग 80% ढका हुआ था। उसने त्रिकोणमिति का उपयोग करके धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी की गणना की।